शनिवार, 16 मई 2020

राष्ट्रीय प्रवासी मजदूर नीति निर्धारित करने की सख्त जरूरत

सुरेंद्र किशोर


राष्ट्रीय स्तर पर प्रवासी मजदूर कल्याण नीति निर्धारित करने की जरुरत महसूस की जाती रही है। कोरोना महामारी ने इसकी जरूरत बढ़ा दी है। केंद्र सरकार को इस दिशा में जल्द ठोस कदम उठाना चाहिए। इस बार प्रवासी मजदूरों को अपार कष्ट का सामना करना पड़ रहा है।

लाॅकडाउन के बाद से ही उनकी परेशानियां शुरू हो गईं। जब उन्होंने घर लौटने की कोशिश की तो रास्ते में उन्हें अपार कष्ट हुआ और हो रहा है। संकट में न तो उनके नियोक्ता काम आए और न ही वे राज्य सरकारें जहां वे काम करने गए थे। परदेश में मजदूरों को उनकी तकदीर के हवाले कर दिया गया। अपवादों की बात और है।

मजदूरों ने अपने घरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर जाकर आपके काम-धंधे चमकाने में मदद की। उनसे नियोजकों ने मुनाफा कमाया और राज्य सरकारों ने राजस्व। उनके बिना आपका आगे भी काम चलने वाला नहीं। फिर भी संकट में उनपर किसी ने जरूरत के अनुसार खर्च नहीं किया। किसी संकट की स्थिति में नियोक्ता व सरकारें प्रवासी मजदूरों को मदद करने को बाध्य हों, ऐसा नियम-कानून बनाया जाना चाहिए।

यदि इस संबंध में आज कोई कारगर नीति, नियम और कानून होते तो नियोजकगण ऐसी विपत्ति में मजदूरों की देखभाल करने को मजबूर होते। लौटने वाले लाखों मजदूरों में से बड़ी संख्या में ऐसे मजदूर भी हैं जिनकी मानसिकता कष्ट के बाद बदली हुई लग रही है। वे कह रहे हैं कि दुबारा दूसरे प्रांतों में हम नहीं जाएंगे। पर संभव है कि बाद में उनमें से कुछ लोग अपने विचार बदल लें। दुबारा जाएं।

यदि इस बीच कोई नीति निर्धारित नहीं होगी तो आशंका है कि दुबारा कोरोना जैसी विपत्ति आई तो उनका फिर वही हाल होगा। वैसे फिलहाल बिहार लौटे प्रवासी मजदूरों की बिहार सरकार भरसक देखभाल कर रही है।
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अब याद आ रहीं बुजुर्गों की बातें

कुछ ही दशक पहले सामूहिक परिवारों में हमारे बुजुर्ग हमें स्वास्थ्य संबंधी कई बातों के लिए हमें सावधान किया करते थे। एकल परिवार के दौर में हमें ऐसी बातें भला अब कौन बताए! कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में वहीं बातें हमें फिर सुनने को मिल रही हैं। हम अब उसका भरसक पालन भी करने को बाध्य हैं।

परंपरागत विवेक के आधार पर हमारे बुजुर्ग बताते थे कि ‘एक बार पहना हुआ कपड़ा धोए बिना फिर मत पहनो।’ यह परंपरागत विवेक उन्हें हमारे प्राचीन ग्रंथों से मिला था। 

कभी हमें यह बताया जाता था कि 
  • ‘बाल कटाने और श्मशान से लौटने के बाद स्नान जरुर करो।’ 
  • ‘पूजा के समय का कपड़ा अलग हो।’ 
  • ‘घर से बाहर जाने पर अलग कपड़ा पहनो।’
  • ‘सोने के समय का कपड़ा अलग होना चाहिए।’
  • ‘भोजन करने से पहले हाथ,पैर और मुंह धो लो।’
  • ‘गीला कपड़ा मत पहनो।’


कई बातों को लेकर चर्चित रही पुस्तक ‘मनुस्मृति’ में लिखा गया है कि ‘अकारण कान, आंख या नाक मत छुओ।’ बुजुर्ग यह भी बताते थे कि स्नान के बाद ऐसे कपड़े से देह मत पोछो जिसका इस्तेमाल किसी अन्य ने किया है। दूसरे का पहना कपड़ा मत पहनो। आदि आदि......।

अच्छा है कि कोरोना महामारी के दौर में हमें वही सब बातें आधुनिक चिकित्सक भी बता रहे हैं।

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सुदृढ सुरक्षा बल जरूरी


देश की भीतरी-बाहरी सुरक्षा के लिए सेना-पुलिस की सुदृढता अत्यंत जरूरी है। यह अच्छी बात है कि भारत सरकार इस जरुरत के प्रति जागरूक है। गृह मंत्री अमितशाह ने गत अक्तूबर में कहा था कि सरकार पुलिसकर्मियों के लिए अच्छा माहौल सुनिश्चित करेगी। पुलिसकर्मियों की स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी चिंताओं को दूर किया जाएगा।

उन्होंने कहा था कि एक लाख नागरिकों पर न्यूनत्तम 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए। पर अभी इस देश में सिर्फ 144 हैं। इसलिए उनके काम के घंटे अधिक हैं। उम्मीद है कि गृह मंत्री ने अक्तूबर के बाद इस स्थिति में सुधार की दिशा में जरूर कदम उठाया होगा।

इस बीच जिस तरह देश भर के पुलिसकर्मी कोराना महामारी के बीच कठिन परिस्थितियों में अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं, उसे भी ध्यान में रखना चाहिए। इस बीच आम नागरिकों को तीन साल के लिए सेना में शामिल करने के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार विचार कर रही है। थल सेना में सुधार के लिए ऐसा किया जा रहा है। बाहर-भीतर के देश विरोधी तत्वों से मुकाबले के लिए यह सब जरूरी है।  

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और अंत में 


लाॅकडाउन के शुरुआती दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जो जहां हैं, वे वहीं रहें। पर तरह-तरह के राजनीतिक-गैर राजनीतिक दबावों के बाद वह निर्णय उन्हें बदलना पड़ा। प्रवासियों की वापसी के बाद कोरोना के मामले बढ़े। यानी पिछला फैसला बदलना सही साबित नहीं हुआ।

राष्ट्रीय स्तर पर प्रवासी मजदूर कल्याण नीति या कानून की गैरमौजूदगी के कारण प्रवासी मजदूरों को अपने कार्यस्थलों पर रोके रखना संभव नहीं हुआ। इस संबंध में कोई नियम-कानून होता तो संबंधित राज्य सरकार और नियोक्तागण मिलकर प्रवासी मजदूरों का वहीं ठीक से देखभाल करते।यदि आप लाखों की संख्या में मजदूर अपने यहां बुलाते हैं तो किसी विपत्ति की स्थिति में उनकी देखभाल का भी इंतजाम कीजिए। 

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कानोंकान, प्रभात खबर, पटना, 15 मई, 2020

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