बुधवार, 27 मई 2020

असंभव है सबको खुश करना

एक पिता अपने पुत्र के साथ बाजार जा रहा था। उसके साथ उसका गधा भी था। वे थोड़ी दूर गये तो किसी राहगीर ने कहा कि ‘‘अरे भई,गधा सवारी के लिए है। और, तुम बाप-बेटा पैदल ही जा रहे हो। कैसे बेवकूफ आदमी हो ?’’ यह सुनकर पिता ने पुत्र को गधे की पीठ पर बैठा दिया।

आगे बढ़ा तो कुछ अन्य लोग मिले। उनमें से एक ने कहा, ‘‘देखो यह लड़का कितना आलसी है! बेटा गधे की पीठ पर बैठ गया। और, इसका बाप पैदल ही जा रहा है! इस पर पिता ने अपने पुत्र को उतार दिया। खुद गधे की पीठ पर बैठ गया।

अब भी इस कहानी का अंत नहीं हुआ। आगे दो महिलाएं मिलीं। एक ने तंज कसा, ‘‘शर्म करो,आलसी गंवार! बेटा पैदल जा रहा है और खुद बाप गधे की पीठ पर बैठा है।’’ पिता अब क्या करे ! उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। फिर भी उसने एक तरकीब लगाई। अपने साथ बेटे को भी गधे की पीठ पर बैठा लिया।

अब तो हद हो गई।

आगे के एक राहगीर ने तो पशु क्रूरता का आरोप लगा दिया। कहा कि बेचारे अनबोलता पशु पर इतना अधिक बोझ क्यों डाल दिया है ?

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यह प्राचीन कथा आगे भी बढ़ती है। पर, मैं यहीं विराम दे रहा हूं।

इस कहानी का ‘मोरल’ क्या है ?

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यही कि सबको खुश करना असंभव है। उसकी कोशिश भी मत करो। सबको खुश करने के चक्कर में किसी को भी खुश नहीं कर पाओगे। सिर्फ अच्छा काम करते जाओ। बेसिरपैर की आलोचनाओं की परवाह मत करो।

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पुनश्चः-इस नीति कथा को दुहराने के पीछे मेरी मंशा आज के किसी नेता को दुःख पहुंचाना तो कत्तई नहीं है। 

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सुरेंद्र किशोर-27 मई 2020

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