शुक्रवार, 8 मई 2020


 ताजा गैस रिसाव ने बताई देश की पाइपलाइनों की निगरानी की जरूरत-सुरेंद्र किशोर 
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लगता है कि सन् 1984 की भोपाल गैस त्रासदी से भी हमने 
कम ही सबक सीखा है।
तब वहां उस कारण हजारों लोगों की जानें गई थीं।
 उसके असली गुनहगार को तौल कर सजा मिल गई होती तो 
बाद के वर्षों में कठोर सावधानी बरती जाती।
पर ऐसा नहीं हो सका।
नतीजतन बाद के वर्षों में भी ऐसी घटनाएं होती जा रही हैं।
ताजा दुःखद खबर विशाखापतनम से आई है।
  सतत निगरानी की कमी और कई अन्य तरह की असावधानियों के कारण ऐसी घटनाएं होती रही हैं।
  इससे मिलती -जुलती एक अन्य बात।
 हाल के वर्षों में बिहार सहित देश में गैस व तेल पाइपलाइनों का विस्तार हुआ है।
हो भी रहा है।
कई जगह पाइपलाइन घनी बस्तियों से गुजरती हैं।
 उन्हें किसी जानी-अनजानी  दुर्घटना से बचाने के लिए सतत निगरानी की जरूरत होगी। 
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  बिहार के प्रवासी मजदूरों
  के लिए अच्छी खबर
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बिहार सरकार ने राज्य में लौटे प्रवासी मजदूरों को काम पर लगाने के लिए बड़ी संख्या में योजनाएं बनाई हैं।
 बहुत अच्छी बात है।
पर, इससे भी अच्छी  बात यह होगी कि जो भी योजनाएं बनें,उनका ठीकठाक ढंग से कार्यान्वयन भी हो।
तभी मजदूरों व अंततः राज्य का भला होगा।
  योजनाएं तो पहले भी बनती रही हैं।
 किंतु उनके कार्यान्वयन को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
सबसे बड़ी समस्या यह रहती है कि कार्यान्वयन की ईमानदार शासकीय निगरानी नहीं होती।
नतीजतन न तो उससे मजदूरों को पूरा लाभ मिल पाता और न ही लाभुक को।
वैसे थर्ड पार्टी निगरानी की जरूरत है।
  ऐसे में जरूरत इस बात की है कि नई योजनाओें को शुरू करने से  पहले पिछली योजनाओं के कार्यान्वयन को लेकर हुए कटु -मधु अनुभवों से भी दो-चार हुआ जाए।
उसके अनुभवों का लाभ नई योजनाओं के कार्यान्वयन में उठाया जाए। 
   कम से कम अब तो कार्यशैली में ठोस बदलाव आए !
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     कौशल को सम्मान
    मिलने का अवसर 
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 प्रवासी मजदूरों में से अनेक कुशल मजदूर भी हैं।
 वे अब बिहार में ही रहकर काम करना चाहते हैं।
उनके लिए यहीं और अनेक बेहतर अवसर उपलब्ध होने वाले हंै।
 इस राज्य के कई हिस्सों से यह सूचनाएं आती रहती हैं कि कुशल मजदूर उपलब्ध नहीं हैं। 
लोग अपेक्षाकृत कम कुशल मजदूरों से काम चला रहे हैं।
 मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने प्रवासी मजदूरों का कौशल सर्वेक्षण कराने निदेश दिया है। 
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     किसानों से मनरेगा को जोड़ने 
    से कम हांेगी अनियमितताएं 
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क्या मनरेगा मजदूरों को किसानों की खेती-बाड़ी से कभी 
जोड़ा जा सकेगा ?
क्या यह संभव हो पाएगा कि मजदूरगण खेती और खेती से 
जुड़े खादी जैसे उद्योग धंधों में काम करें ?
ऐसी मांग पहले से उठती रही  है।
उन्हें कुछ पैसे मनरेगा फंड से मिले और बाकी किसानों से मिले ?
  अभी यह शिकायत आ रही है कि मनरेगा के पैसों का कम ही सदुपयोग हो पा रहा है।
  कितना सदुपयोग हो रहा है ?
क्या इस बात की किसी प्रामाणिक एजेंसी से जांच कराई जाएगी ?
कोरोना विपत्ति के कारण देश-प्रदेश की अर्थ व्यवस्था को भारी चोट पहुंची है।
अब छोटे -बड़े घोटालेबाजों के खिलाफ सरकार को चाहिए कि वह ‘युद्ध’ छेड़ दे ताकि लूट में पहले की अपेक्षा अब तो कम पैसे जाया हों ! 
कोरोना के बाद के वर्षों में आर्थिक पुनर्जीवन व विकास के कामों के लिए भारी धनराशि की जरुरत पड़ेगी।
ऐसे में यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि सरकारी पैसों की अब पहले जैसी बंदरबांट न हो।
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   सरकारी योजनाओं की निगरानी 
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मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि जदयू कार्यकत्र्ता सरकारी योजनाओं की निगरानी करेंगे।
यह भी एक सामयिक पहल है।
खास कर सरकारी योजनाओं को अधिक से अधिक भ्रष्टाचारमुक्त बनाया जाना ही चाहिए।
 निगरानी भी राजनीतिक कार्यकत्र्ता करें जो गांव-गांव में फैले होते हैं।
घूसखोरों को पकड़वाने वालों को इनाम देने की घोषणा मुख्य मंत्री पहले ही कर चुके हैं।
  कोई दल यदि वैसे  ही कार्यकत्र्ताओं को चुनावी टिकट
दे या कोई अन्य पद देने पर विचार करे जिसने कम से कम दो रिश्वतखोरों को पकड़वाया हो तो शासन व राजनीति में फर्क आ सकता है।
  आज की राजनीति की जो हालत है,उसमें यह कठिन काम जरुर है।पर  संभव है कि अपने कैरियर को आगे बढ़ाने के लिए कुछ कार्यकत्र्ता  सख्ती से निगरानी करें।
  पंचायतों के चुनाव यदि दलगत आधार पर हो,तो भी फर्क पड़ेगा।क्योंकि 
पंचायतों के लिए चुने गए प्रतिनिधियों पर दल का अंकुश रहेगा।
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     और अंत में 
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बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग ने टाॅल फ्री नंबर जारी किया है।
इस नंबर पर मजदूर शिकायत कर सकता है।
यह कि उसे सरकारी योजनाओं में काम मांगने के बावजूद नहीं मिल रहा है।
   शासन यदि कहता है कि अब तक ऐसी शिकायत नहीं आई तो उसे उसके कारण का पता लगाना चाहिए।आखिर क्यों नहीं आई ?
  क्या मजदूर दबंगों के डर से शिकायत नहीं करते ?
यदि ऐसा है तो शासन को  चाहिए कि वह उसका निदान करे।
 याद रहे कि ग्रामीण इलाकों में मजदूरों के लिए आवाज उठाने वाली राजनीतिक शक्तियों की धीरे -धीरे कमी होती जा रही है।
इससे भी शासन की जिम्मेदारी बढ़ गई है।
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--कानोंकान,
प्रभात खबर,
पटना,8 मई 2020

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