करीब डेढ़ दशक पहले बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सरदार बूटा सिंह ने पटना में कहा था कि ‘‘आजादी के समय से ही बिहार देश का निर्धनत्तम घोषित राज्य है। आजादी के 50 वर्षों से अधिक समय बाद भी इसकी स्थिति तस की तस बनी हुई है।’’
याद रहे कि पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री सरदार बूटा सिंह 5 नवंबर, 2004 से 29 जनवरी, 2006 तक बिहार के राज्यपाल थे। मनमोहन सिंह सरकार ने उन्हें राज्यपाल बनाया था। यानी, कांग्रेस से लंबे समय तक मजबूती जुड़े रहे एक राज्यपाल बिहार को लेकर कड़ी टिप्पणी कर गए।
वे केंद्र और राज्य की कांग्रेसी सरकारों पर परोक्ष रूप से गंभीर आरोप लगा रहे थे। वे इस तथ्य को जगजाहिर कर रहे थे कि देश के निर्धनत्तम राज्य बिहार के विकास के लिए कांग्रेसी सरकारों ने भी कुछ नहीं किया। नतीजतन बिहार की दयनीय स्थिति आजादी के बाद से ही जस की तस
बनी हुई है।
अपने तब के भाषण में बूटा सिंह ने बिहार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की भी चर्चा की थी।
उन्होंने कहा था कि ‘‘आजादी के बाद भारत सरकार ने विकास का जो प्रारूप अपनाया, वह बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों में कारगर नहीं हो सका। जबकि देश के लक्ष्य राज्यों में इसका परिणाम बेहतर निकला।’’
यानी बूटा सिंह ने यह भी कह दिया कि केंद्र सरकार ने जिन राज्यों को विकसित बनाना चाहा, वे विकसित हो गए। याद रहे कि देश में प्रवासी मजदूरों की संख्या सबसे अधिक बिहार और उत्तर प्रदेश से ही है।
लालू प्रसाद के प्रत्यक्ष-परोक्ष शासनकाल में विकास की क्या गति और नीति थी? जग जाहिर है।
खुद लालू प्रसाद सार्वजनिक रूप से यह कहा करते थे कि विकास से वोट नहीं मिलते बल्कि सामाजिक समीकरण से वोट मिलते हैं।
अब रह गई नीतीश सरकार।
जो लोग प्रवासी मजदूरों की आज की दुर्दशा के लिए नीतीश सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, वे यह उम्मीद कर रहे हैं कि जो काम 58 साल में नहीं हुए, वह काम 15 साल में ही हो जाना चाहिए था। याद रहे कि यदि बिहार और उत्तर प्रदेश का विकास हो गया होता तो इतनी बड़ी संख्या में रोजी-रोटी के लिए मजदूर दूसरे प्रदेशों में जाने को बाध्य नहीं होते।
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सुरेंद्र किशोर--18 मई 2020
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