‘‘रियाज नाइकू की नियति तो उसी दिन तय हो गई
जब उसने बंदूक उठाकर हिंसा और आतंक की राह चुनी थी।
उसकी मौत और अधिक लोगों को हिंसा के रास्ते पर लाने और विरोध -प्रदर्शन का पड़ाव बिल्कुल भी नहीं बननी चाहिए।
----- पूर्व मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला
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रियाज नायकू हिजबुल कमांडर था।
उस पर सरकार ने 12 लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा था।
हिजबुल मुजाहिदीन हथियारों के बल पर कश्मीर में इस्लामिक शासन कायम करने की कोशिश में लगा है।
उसे पाकिस्तान की मदद हासिल है।
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इसके बावजूद
एक हिन्दुस्तानी विश्लेषणकत्र्ता निशांत वर्मा ने कल रियाज नायकू पर ‘टाइम्स नाउ’ में आयोजित चर्चा के दौरान कह दिया कि यहां तो यह हो रहा है कि किसी को भी गोली मार दो और उसे आतंकवादी बोल दो।
इस पर एंकर राहुल शिवशंकर ने निशांत से माफी मांगने के लिए कहा।
पर, जब वर्मा ने माफी नहीं मांगी तो वर्मा की माइक डाउन कर दी गई।
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इन दिनों कई निजी इलेक्ट्रानिक चैनलों पर आने वालों में निशांत वर्मा जैसे विचार वालों की संख्या कम नहीं है।
अब सवाल यह है कि वर्मा जैसे लोगों को चैनल वाले बुलाते ही क्यों हैं ?
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बड़े -बड़े चैनलों पर वर्मा जैसे लोगों की ऐसी ही और इससे भी कड़ी टिप्पणियों से देश-विदेश के वैसे लोगों का हौसला बढ़ता है जो इस देश को नुकसान पहुंचाने के काम में लगे हुए हैं।
इस तरह के बयान प्रिंट मीडिया में आम तौर पर नहीं छपते।
इसके लिए हमें प्रिंट मीडिया का शुक्रगुजार होना चाहिए।
पर, दूसरी ओर कई निजी इलेक्ट्रानिक चैनलों को इस बात का अंदाजा ही नहीं है कि वे ऐसे लोगों को मंच देकर देश का जाने-अनजाने कितना नुकसान कर रहे हैं !
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--- सुरेंद्र किशोर - 7 मई 20
जब उसने बंदूक उठाकर हिंसा और आतंक की राह चुनी थी।
उसकी मौत और अधिक लोगों को हिंसा के रास्ते पर लाने और विरोध -प्रदर्शन का पड़ाव बिल्कुल भी नहीं बननी चाहिए।
----- पूर्व मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला
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रियाज नायकू हिजबुल कमांडर था।
उस पर सरकार ने 12 लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा था।
हिजबुल मुजाहिदीन हथियारों के बल पर कश्मीर में इस्लामिक शासन कायम करने की कोशिश में लगा है।
उसे पाकिस्तान की मदद हासिल है।
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इसके बावजूद
एक हिन्दुस्तानी विश्लेषणकत्र्ता निशांत वर्मा ने कल रियाज नायकू पर ‘टाइम्स नाउ’ में आयोजित चर्चा के दौरान कह दिया कि यहां तो यह हो रहा है कि किसी को भी गोली मार दो और उसे आतंकवादी बोल दो।
इस पर एंकर राहुल शिवशंकर ने निशांत से माफी मांगने के लिए कहा।
पर, जब वर्मा ने माफी नहीं मांगी तो वर्मा की माइक डाउन कर दी गई।
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इन दिनों कई निजी इलेक्ट्रानिक चैनलों पर आने वालों में निशांत वर्मा जैसे विचार वालों की संख्या कम नहीं है।
अब सवाल यह है कि वर्मा जैसे लोगों को चैनल वाले बुलाते ही क्यों हैं ?
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बड़े -बड़े चैनलों पर वर्मा जैसे लोगों की ऐसी ही और इससे भी कड़ी टिप्पणियों से देश-विदेश के वैसे लोगों का हौसला बढ़ता है जो इस देश को नुकसान पहुंचाने के काम में लगे हुए हैं।
इस तरह के बयान प्रिंट मीडिया में आम तौर पर नहीं छपते।
इसके लिए हमें प्रिंट मीडिया का शुक्रगुजार होना चाहिए।
पर, दूसरी ओर कई निजी इलेक्ट्रानिक चैनलों को इस बात का अंदाजा ही नहीं है कि वे ऐसे लोगों को मंच देकर देश का जाने-अनजाने कितना नुकसान कर रहे हैं !
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--- सुरेंद्र किशोर - 7 मई 20
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