जिन लोगों को यह समझ में नहीं आता कि सोशल मीडिया में क्या और किस तरह लिखने से वे कानूनी लफड़े में नहीं फंसेंगे, तो वे मुख्यतः दो बातों का ध्यान रखें। पहली बात- किसी जिम्मेवार व शालीन अखबार में क्या किस तरह छपता है।
दूसरी बात--संसद की कार्यवाहियों को ध्यान से सुनें। कई बार किसी की बात को कार्यवाही से निकाल देने की मांग उठ जाती है। असंसदीय कह कर कई बार कुछ बातें निकाल भी दी जाती हैं।
जिस तरह की बातें विधायिका में बोलना वर्जित हैं, उस तरह की बातें सोशल मीडिया में लिखने से बचिए। अखबार में संपादक होते हैं। संसद के संपादक पीठासीन अधिकारी होते हैं। आप खुद के संपादक हैं। इसलिए सावधानी आप ही को बरतनी है।
अन्यथा ........!!!
समझ जाइए! थोड़ा कहना, अधिक समझना। आने वाले दिन कठिनाई के होंगे! शालीन भाषा-शैली में भी कोई भी महत्वपूर्ण बात कही जा सकती है। सूचना में शक्ति होती है। सूचनाओं से तर्क शक्ति बढ़ती है। जिनके पास तर्क नहीं होते, वे ही गाली-गलौज व शब्दिक या दैहिक हिंसा पर उतारू हो जाते हैं।
......................................
---सुरेंद्र किशोर--21 मई 2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें