बिहार बोर्ड ने हाल में माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा रद कर दी। परीक्षा में भारी गड़बड़ी पाई गई थी। प्रश्नपत्र भी गलत सेट किए गए थे। देश -प्रदेश की अन्य अनेक परीक्षाओं के मामलों में भी अक्सर ऐसी शिकायतें मिलती रहती हैं। कहीं प्रश्न -सेटर में अयोग्यता पाई जाती है तो कहीं उत्तर पुस्तिकाओं की जांच करने वालों की अक्षमता। कहीं कुछ अन्य तरह की गड़बड़ियां।
पिछले साल ही यह खबर आई थी कि बिहार के सरकारी स्कूलों की कक्षा पांच के करीब 53 प्रतिशत बच्चे घटाव नहीं कर सकते। इस तरह के अन्य अनेक उदाहरण हैं। अपवादों को छोड़कर देश-प्रदेश के अधिकतर सरकारी स्कूलों की हालत भी कमोवेश यही है।
कुछ ही साल पहले बिहार के तत्कालीन गवर्नर ने कहा था कि ‘बिहार की उच्च शिक्षा ध्वस्त होने के कगार पर है।’ यानी, अपवादों को छोड़कर प्राथमिक से लेकर विश्व विद्यालय स्तर तक की शिक्षा-परीक्षा का हाल संतोषजनक नहीं है।
अधिकतर दाखिले और नौकरियों के लिए आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं का हाल भी असंतोषजनक पाए जाते हैं। ऐसे में हम कैसी पीढ़ियां तैयार कर रहे हैं !
इस पृष्ठभूमि में बिहार सरकार को चाहिए कि विशेष कदाचारमुक्त
परीक्षाएं आयोजित करके पहले वह योग्य शिक्षकों की एक मजबूत टीम तैयार करे। उस टीम में शामिल शिक्षकगण हर स्तर के लिए त्रुटिरहित प्रश्नपत्र तैयार करें। मौजूदा शिक्षकों में से ही अत्यंत योग्य शिक्षकों के चयन के लिए छोटी-छोटी जांच परीक्षाएं समय -समय पर ली जा सकती हैं।
पटना में ही पांच हजार व्यक्तियों के बैठने की जगह वाला हाॅल उपलब्ध है। ईमानदार अफसरों की देखरेख में कड़ी निगरानी कराई जाए तो उस हाॅल में कदाचारमुक्त परीक्षाएं संभव भी है।
साथ ही, उन चयनित योग्य शिक्षकों के जरिए उत्तर पुस्तिकाओं की सही जांच कराई जा सकती है। उत्तर पुस्तिकाओं के जांच कर्ताओं की टीम की निगरानी योग्यत्तम शिक्षकों की टीम से करवाई जा सकती है। प्रश्न पत्रों को सेट करने में जो गड़बड़ियां होती हैं, उन्हें भी दूर किया जा सकता है।
शिक्षा और परीक्षा के काम को कैसे सुधारा जाए,उसके लिए तो एक उच्चाधिकारप्राप्त आयोग बनाने की जरूरत है ताकि कुछ कारगर सुझाव आ सके।
हरियाणा सरकार की सदाशयता
बिहारी मजदूरों के साथ हरियाणा सरकार का व्यवहार सराहनीय रहा। यदि अन्य राज्यों ने भी प्रवासी मजदूरों के साथ वैसा ही अपनापन दिखाया होता तो इस अभूतपूर्व आकस्मिक समस्या को हल करने में सुविधा होती।
याद रहे कि बिहार सरकार ने श्रमिकों पर हुए खर्च के पैसों को हरियाणा सरकार को देने की पेशकश की थी। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने उसे ठुकराते हुए कहा कि प्रवासी मजदूरों की देखभाल की जिम्मेवारी हमारी है।
दरअसल कोरोना से उत्पन्न समस्याओं के मुकाबला करने में जब संपन्न देश विफल रहे तो हमारा देश तो अब भी विकासशील है।
यहां तक कि बेहतर प्रशासन वाले केरल राज्य से भी यह खबर आई कि वहां बिहार व यू.पी. के मजदूर पैदल ही निकल पड़े थे। केरल पुलिस ने उन्हें रोका और शिविरों में फिर पहुंचाया। मजदूरों की शिकयत थी कि उन्हें वहां पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल रहा था। याद रहे कि केरल सरकार ने अन्य कई राज्यों की अपेक्षा इस महामारी का बेहतर ढंग से मुकाबला किया है।
भूली-बिसरी याद
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की भारी भरकम लौह तिजोरी गामा पहलवान ने उठाई थी। सन् 1901-02 में भयंकर प्लेग की महामारी आई हुई थी। तब मैथिलीशरण गुप्त का परिवार उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के चिरगांव से पलायन कर दतिया चला गया था जो मध्य प्रदेश में है। उनके संग लोहे की एक भारी तिजोरी थी। मैथिलीशरण जी ससुराल दतिया में थी। उनकी ससुराल के परिवार में विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा का आना-जाना था।
तिजोरी को दसियों लोगों ने मिलकर किसी तरह बैलगाड़ी पर चिरगांव में चढ़ाया था। पर, उसे जब दतिया में उतारना हुआ तो गामा ने अपने भाई के साथ मिलकर आसानी से उतार लिया।
गामा का जन्म अमृतसर में 1880 में हुआ था। उनका निधन 22 मई 1963 को लाहौर में हुआ।
पहलवान गामा रूस्तम ए हिंद ही नहीं बल्कि रूस्तम ए बर्तानिया भी बने थे।
रीवां के महाराज बेंकटेश सिंह गामा के प्रतिपालक थे। रूस्तम ए हिंद का मुकाबला 1911 में प्रयाग में हुआ था। रीवां महाराज भी मौजूद थे। गामा का मुकाबला करीम पहलवान से थे।
कलियुगी भीम राममूर्ति करीम के पृष्ठपोषक थे। पर गामा विजयी हुए। उन्हें इनाम स्वरूप जो गदा मिली, उसे उन्होंने रीवां महाराज के चरणों में ले जाकर रख दिया। विभाजन के बाद गामा पाकिस्तान चले गए थे।
आज यानी 22 मई गामा की पुण्यतिथि है। गामा अपने जीवनकाल में ही संज्ञा से विशेषण बन चुके थे। हमारे बचपन में भी गांव में लोगबाग किसी की ताकत पर जब सवाल उठाते थे तो कह देते थे,‘‘तुम गामा पहलवान हो क्या ?’’
और अंत में
कोरोना महामारी ने हमारे देश के शासनतंत्र को और अधिक कार्यकुशल बनाने की जरुरत एक बार फिर रेखांकित कर दी है। जब विकसित देश का तंत्र इस समस्या से सफलतापूर्वक निपटने में नाकामयाब रहा है तो हमारा देश तो अब भी विकासशील ही है।
पर हमारे यहां के शासनतंत्र को और अधिक भ्रष्टाचारमुक्त और कार्यकुशल बनाने की गुंजाइश लगातार बनी हुई है। यदि शासनतंत्र बेहतर रहेगा तो अगली किसी विपत्ति का हम बेहतर ढंग से मुकाबला कर पाएंगे।
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22 मई, 20 के ‘प्रभात खबर’,पटना में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से।
पिछले साल ही यह खबर आई थी कि बिहार के सरकारी स्कूलों की कक्षा पांच के करीब 53 प्रतिशत बच्चे घटाव नहीं कर सकते। इस तरह के अन्य अनेक उदाहरण हैं। अपवादों को छोड़कर देश-प्रदेश के अधिकतर सरकारी स्कूलों की हालत भी कमोवेश यही है।
कुछ ही साल पहले बिहार के तत्कालीन गवर्नर ने कहा था कि ‘बिहार की उच्च शिक्षा ध्वस्त होने के कगार पर है।’ यानी, अपवादों को छोड़कर प्राथमिक से लेकर विश्व विद्यालय स्तर तक की शिक्षा-परीक्षा का हाल संतोषजनक नहीं है।
अधिकतर दाखिले और नौकरियों के लिए आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं का हाल भी असंतोषजनक पाए जाते हैं। ऐसे में हम कैसी पीढ़ियां तैयार कर रहे हैं !
इस पृष्ठभूमि में बिहार सरकार को चाहिए कि विशेष कदाचारमुक्त
परीक्षाएं आयोजित करके पहले वह योग्य शिक्षकों की एक मजबूत टीम तैयार करे। उस टीम में शामिल शिक्षकगण हर स्तर के लिए त्रुटिरहित प्रश्नपत्र तैयार करें। मौजूदा शिक्षकों में से ही अत्यंत योग्य शिक्षकों के चयन के लिए छोटी-छोटी जांच परीक्षाएं समय -समय पर ली जा सकती हैं।
पटना में ही पांच हजार व्यक्तियों के बैठने की जगह वाला हाॅल उपलब्ध है। ईमानदार अफसरों की देखरेख में कड़ी निगरानी कराई जाए तो उस हाॅल में कदाचारमुक्त परीक्षाएं संभव भी है।
साथ ही, उन चयनित योग्य शिक्षकों के जरिए उत्तर पुस्तिकाओं की सही जांच कराई जा सकती है। उत्तर पुस्तिकाओं के जांच कर्ताओं की टीम की निगरानी योग्यत्तम शिक्षकों की टीम से करवाई जा सकती है। प्रश्न पत्रों को सेट करने में जो गड़बड़ियां होती हैं, उन्हें भी दूर किया जा सकता है।
शिक्षा और परीक्षा के काम को कैसे सुधारा जाए,उसके लिए तो एक उच्चाधिकारप्राप्त आयोग बनाने की जरूरत है ताकि कुछ कारगर सुझाव आ सके।
हरियाणा सरकार की सदाशयता
बिहारी मजदूरों के साथ हरियाणा सरकार का व्यवहार सराहनीय रहा। यदि अन्य राज्यों ने भी प्रवासी मजदूरों के साथ वैसा ही अपनापन दिखाया होता तो इस अभूतपूर्व आकस्मिक समस्या को हल करने में सुविधा होती।
याद रहे कि बिहार सरकार ने श्रमिकों पर हुए खर्च के पैसों को हरियाणा सरकार को देने की पेशकश की थी। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने उसे ठुकराते हुए कहा कि प्रवासी मजदूरों की देखभाल की जिम्मेवारी हमारी है।
दरअसल कोरोना से उत्पन्न समस्याओं के मुकाबला करने में जब संपन्न देश विफल रहे तो हमारा देश तो अब भी विकासशील है।
यहां तक कि बेहतर प्रशासन वाले केरल राज्य से भी यह खबर आई कि वहां बिहार व यू.पी. के मजदूर पैदल ही निकल पड़े थे। केरल पुलिस ने उन्हें रोका और शिविरों में फिर पहुंचाया। मजदूरों की शिकयत थी कि उन्हें वहां पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल रहा था। याद रहे कि केरल सरकार ने अन्य कई राज्यों की अपेक्षा इस महामारी का बेहतर ढंग से मुकाबला किया है।
भूली-बिसरी याद
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की भारी भरकम लौह तिजोरी गामा पहलवान ने उठाई थी। सन् 1901-02 में भयंकर प्लेग की महामारी आई हुई थी। तब मैथिलीशरण गुप्त का परिवार उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के चिरगांव से पलायन कर दतिया चला गया था जो मध्य प्रदेश में है। उनके संग लोहे की एक भारी तिजोरी थी। मैथिलीशरण जी ससुराल दतिया में थी। उनकी ससुराल के परिवार में विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा का आना-जाना था।
तिजोरी को दसियों लोगों ने मिलकर किसी तरह बैलगाड़ी पर चिरगांव में चढ़ाया था। पर, उसे जब दतिया में उतारना हुआ तो गामा ने अपने भाई के साथ मिलकर आसानी से उतार लिया।
गामा का जन्म अमृतसर में 1880 में हुआ था। उनका निधन 22 मई 1963 को लाहौर में हुआ।
पहलवान गामा रूस्तम ए हिंद ही नहीं बल्कि रूस्तम ए बर्तानिया भी बने थे।
रीवां के महाराज बेंकटेश सिंह गामा के प्रतिपालक थे। रूस्तम ए हिंद का मुकाबला 1911 में प्रयाग में हुआ था। रीवां महाराज भी मौजूद थे। गामा का मुकाबला करीम पहलवान से थे।
कलियुगी भीम राममूर्ति करीम के पृष्ठपोषक थे। पर गामा विजयी हुए। उन्हें इनाम स्वरूप जो गदा मिली, उसे उन्होंने रीवां महाराज के चरणों में ले जाकर रख दिया। विभाजन के बाद गामा पाकिस्तान चले गए थे।
आज यानी 22 मई गामा की पुण्यतिथि है। गामा अपने जीवनकाल में ही संज्ञा से विशेषण बन चुके थे। हमारे बचपन में भी गांव में लोगबाग किसी की ताकत पर जब सवाल उठाते थे तो कह देते थे,‘‘तुम गामा पहलवान हो क्या ?’’
और अंत में
कोरोना महामारी ने हमारे देश के शासनतंत्र को और अधिक कार्यकुशल बनाने की जरुरत एक बार फिर रेखांकित कर दी है। जब विकसित देश का तंत्र इस समस्या से सफलतापूर्वक निपटने में नाकामयाब रहा है तो हमारा देश तो अब भी विकासशील ही है।
पर हमारे यहां के शासनतंत्र को और अधिक भ्रष्टाचारमुक्त और कार्यकुशल बनाने की गुंजाइश लगातार बनी हुई है। यदि शासनतंत्र बेहतर रहेगा तो अगली किसी विपत्ति का हम बेहतर ढंग से मुकाबला कर पाएंगे।
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22 मई, 20 के ‘प्रभात खबर’,पटना में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से।
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