संस्थागत विफलता की समस्या
का कहीं हल है तो वह सिर्फ
सुप्रीम कोर्ट के पास !
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--सुरेंद्र किशोर--
आज हम यह जान पाते हैं कि चुनाव के उम्मीदवारों के खिलाफ कितने आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं।
उनके पास कितनी सपत्ति है।
उनकी शैक्षणिक योग्यता क्या है।
यह सब सुप्रीम कोर्ट के करीब 20 साल पहले के एक आदेश के कारण ही संभव हो पा रहा है।
तब की केंद्र सरकार ऐसी सामान्य सूचनाएं भी जाहिर नहीं होने देना नहीं चाहती थी।
प्रतिपक्ष भी उस समय इस मामले में सत्ता पक्ष के ही साथ था-यानी, छिपाने के पक्ष में।
विकास दुबे एनकाउंटर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिसके खिलाफ इतने अधिक मुकदमे हों,वह यदि जमानत पा जाता है तो यह संस्थागत विफलता है।
कानून का शासन बहाल करने की जिम्मेदारी मुख्यतः राज्य सरकारों की होती है।
जिम्मेदारी तो है ही।
पर जहां संस्थागत विफलता की बात सामने आ रही है,वैसे में उसे ठीक करने के लिए खुद सुप्रीम कोर्ट को ही कोई कारगर कदम उठाना पड़ेगा।
संस्थागत विफलता के कारणों का पता लगाने व उसे समाप्त करने का उपाय खोजने के लिए एक अलग से न्यायिक आयोग के गठन की जरूरत पड़ेगी।
इसकी पहल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है।
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कानोंकान
प्रभात खबर
पटना
24 जुलाई 20
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