शनिवार, 11 जुलाई 2020

महाजनो येन गतः स पन्थाः
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यानी,महापुरुष जिस पथ से जाते हैं,
वही मार्ग अनुकरणीय है।
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बात सन 1950 से पहले की है।
जो  कुछ मैं यहां लिख रहा हूं,वह मैंने एम.ओ.मथाई की संस्मरणात्मक
पुस्तक में पढ़ी है।
मथाई 13 साल तक प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू का निजी सचिव था।
एक केंद्रीय मंत्री के पु़त्र ने उत्तर प्रदेश में एक व्यक्ति की हत्या कर दी।
वह गिरफ्तार भी हो गया।
मंत्री जी दौड़े -दौड़े प्रधान मंत्री के यहां गए।
जवाहर लाल नेहरू ने 
साफ-साफ कह दिया कि हम आपके पुत्र की कोई मदद नहीं कर सकते।
मंत्री एक अन्य प्रभावशाली केंद्रीय मंत्री के यहां गए।
उन्होंने पूरी मदद कर दी।
पुत्र जेल से छूट गया।
उसे तत्काल विदेश भेज दिया गया।
 वह वी.आई.पी.पुत्र बाद में कभी कचहरी में हाजिर तक नहीं हुआ।
केस रफा -दफा हो गया।
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सवाल है कि सिर्फ मंत्री पुत्र ही हत्या कांड से बचाया जा सकेगा ?
कत्तई नहीं।
इसलिए अन्य प्रभावशाली लोगों ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया।
यदि कोई केंद्रीय मंत्री पुत्र मोह में कानून तोड़ेगा तो पुलिस धन लोभ में किसी अपराधी का क्यों नहीं बचाएगी ?
समय बीतने के साथ खूंखार अपराधियों के भी सजा से बच जाने की गति बढ़ती चली गई।
इसके लिए कौन -कौन लोग जिम्मेदार रहे हैं ,इस पर बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है।
उसे यहां दुहराना आवश्यक नहीं।
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2 अक्तूबर, 2019 के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश के आरोपित अपराधियों में से सिर्फ 10 प्रतिशत को ही अदालतों से सजा हो पाई।
जिस राज्य में 90 प्रतिशत अपराधी छूट जाएं, उस राज्य में विकास दुबे पैदा नहीं होगा तो कौन पैदा होगा ? !!
बगल के राज्य बिहार में भी अदालती सजा का प्रतिशत लगभग इतना ही है।
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यानी, आपराधिक न्याय व्यवस्था में आमूल चूल परिवत्र्तन की सख्त जरूरत है।
पर, यह काम कौन करेगा ?
पता नहीं।
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--सुरेंद्र किशोर--11 जुलाई 20


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