शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

छोटी जगहों में भी गुणवत्तापूर्ण स्कूलों की स्थापना 
कर पैसे वाले पीढ़ियां गढ़ने का युगांतरकारी काम करें  
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अगली पीढ़ियां उन्हें याद रखेंगी
अब तो बिहार के गांव- गांव तक बिजली
पहुंच चुकी है।
सड़कों की हालत भी पहले से काफी बेहतर है।
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सी.बी.एस.ई. ने कल 12 वीं का रिजल्ट घोषित किया।
पटना जोन के टाॅपर्स की चर्चा करना चाहता हूं।
आटर््स में बिहार के मुजफ्फर पुर की 
अनम्या वत्स (केंद्रीय विद्यालय) ने 99 प्रतिशत अंक लाए।
   विज्ञान में आमी (सारण जिला)
स्थित शक्ति शांति अकादमी के शिवम संजय ने 99 प्रतिशत अंक लाए।
  काॅमर्स में सेंट पाॅल, हाजी पुर की निधि सिंह को 98.6 प्रतिशत नंबर मिले।
  अब कहिएगा कि इसमें कौन सी खास बात है !
सब कुछ तो आज के अखबारों में छप चुका है।
  पर एक बात जरूर है।
 मैं आमी के, जहां मशहूर व पवित्र अम्बिका स्थान भी है,
 उस स्कूल की चर्चा करना चाहता हूं जो छोटी जगह में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रसार का नमूना बनता जा रहा है।
   कई साल पहले आमी के मूल निवासी व सरकारी अधिकारी रहे अवधेश कुमार सिंह ने अपने गांव में शक्ति शांति अकादमी नाम से  एक अच्छे स्कूल की स्थापना की ।
उस  इलाके के लोगों में प्रसन्नता हुई जो छोटी जगह में बेहतर शिक्षा की आस लगाए थे।
  शिवम संजय की उपलब्धि ने  सिर्फ इलाके का नाम रोशन किया,बल्कि यह बात भी साबित की कि छोटी जगहों की शिक्षण संस्थाएं भी अच्छी उपलब्धि हासिल कर सकती हैं।
   मेरा पुश्तैनी गांव आमी से अधिक दूर पर नहीं है।
मेरे इलाके के लड़के भी शक्ति शांति अकादमी में पढ़ते हैं।
पर आमी के आसपास के जिन दूर इलाकों से विद्यार्थी आमी तक नहीं पहुंच सकते,वहां एक ‘अवधेश कुमार सिंह’ की दरकार है।
ऐसे स्कूल में पढ़ाने में  पैसे तो लगते हैं,पर ये स्कूल पीढ़ियां गढ़ देते हैं।
  गरीब घर के लड़के निजी स्कूलों में अधिक फीस देकर नहीं पढ़ सकते।
पर, छोटी जगहों में गुणवत्तापूर्ण स्कूलों के अभाव में उनके बच्चे भी बेहतर शिक्षा नहीं पाते जो ऐसे स्कूलों की फीस देने की क्षमता रखते।
कई कारणों से अपवादों को छोड़कर सरकारी स्कूलों की हालत राम भरोसे है।
बिहार सरकार को चाहिए कि कोरोना संकट से उबरने के बाद वह सरकारी स्कूलों व अस्पतालों पर भी विशेष ध्यान दे।
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सुरेंद्र किशोर, 14 जुलाई 20

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