मंगलवार, 7 जुलाई 2020

दल बदलुओं को टिकट देने से हतोत्साहित होंगे अपने कार्यकत्र्ता --सुरेंद्र किशोर




 बिहार विधान सभा चुनाव का माहौल गरमाने लगा है।
इसी के साथ दल -बदल का मौसम भी शुरू हो गया है।
स्वाभाविक ही है।
ऐसा हर बार होता है।
पर कुछ कारणवश इस बार कुछ अधिक ही होने वाला है।
क्योंकि सन 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में एक मजबूत 
गठबंधन के कारण अनेक ऐसे नेता चुनाव जीत गए जो गठबंधन 
के बिना नहीं जीत पाते।
 उनको फिर सहारा देने के लिए कोई मजबूत गठबंधन अब नहीं है।
इसलिए उनमें से अनेक नेता मजबूत गठबंधन यानी राजग की ओर रुख करेंगे।
ऐसे संकेत मिलने शुरू भी हो गए हैं।
 यदि उन्हें बड़े पैमाने पर राजग टिकट देने लगे तो उसके अपने दल के कार्यकत्र्ताओं का राजनीतिक भविष्य कैसा रहेगा  ?
आखिर वे किस उम्मीद में अपने दल के लिए आगे भी जी-जान से काम करेंगे ?
   वंशवाद,पैसावाद और जातिवाद पहले से ही अनेक 
कार्यकत्र्ताओं का हक मारते रहे हैं।
अब दल बदलुआंे को सम्मानित करने के लिए तो 
अपने  समर्पित कार्यकत्र्ताओं को  तिरस्कृत मत कीजिए !
हर नियम के कुछ अपवाद होते हैं।
पर अपवाद कुछ ही होते हैं।
उसी तरह अपवादस्वरूप ही दलबदलुओं को तरजीह 
दी जा सकती है।
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    तैयारी के बिना पुलिस छापामारी
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आए दिन यह खबर आती रहती है कि छापामारी करने गए पुलिस बल को
माफियाओं ने मार कर भगा दिया।
कई मामलों में पुलिस अफसर भी घायल हो जाते हैं।
 साथ-साथ यह भी खबर मिलती है कि पुलिस के लोग पूरी तैयारी के बिना ही गए थे।
इन दिनों आम तौर बालू 
और शराब माफियाओं के खिलाफ छापामारियां होती रहती हैं।
  याद रहे कि अपार नाजायज पैसों के बल पर राज्य में शराब -बालू माफिया काफी ताकवतर हो चुके हैं।
फिर बिना पूरी तैयारी के छापमारी क्यों ?
जब माफिया पुलिस को कहीं से मारकर भगा देते हैं 
तो आम पुलिस प्रशासन का मनोबल गिरता है ।
साथ ही, आम अपराधियों का मनोबल बढ़ता है।
इसका विपरीत असर कानून -व्यवस्था पर भी पड़ता है।
आश्चर्य है कि शासन  ऐसा होने देता है।
या तो छापामारी मत करो या करो तो इतनी ताकत के साथ
 करो कि माफियाओं को उनकी नानी याद आ जाए।
 यदि ऐसा नहीं होता है तो इन अधूरी तैयारी के पीछे लोगबाग कुछ खास मतलब भी लगाने को स्वतंत्र हो जाते हैं।
  सवाल उठ ही सकता है कि क्या छापामारी का उद्देश्य ही तो गैर -पेशेवर नहीं है ?
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  लोस और रास टी.वी को 
 मिलाकर बनेगा ‘संसद टी.वी.’
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  राज्य सभा टी.वी.और लोक सभा टी.वी.चैनलों का आपस 
में विलयन हो जाएगा।
इसकी प्रक्रिया चल रही है।
प्रक्रिया आखिरी दौर में है।
लोस टी.वी.चैनल की शुरूआत 2006 में हुई थी।
2011 में राज्य सभा टी.वी.चैनल का श्रीगणेश हुआ।
कुछ समय से कई लोग यह सवाल उठा रहे थे कि 
दो चैनलों की जरूरत 
क्यों पड़ी ?
तरह -तरह की बातें हो रही थीं।
हाल में दोनों सदनों के पीठासीन पदाधिकारियों ने इनके 
विलयन की जरूरत महसूस की।
सांसदों से भी राय ली गई।
तय हुआ कि विलयन हो जाए।
इससे खर्चों में बचत होगी।
खबर है कि यह काम जल्द ही पूरा हो जाएगा।
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भूली-बिसरी याद
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25 जून, 1975 की रात में देश में आपातकाल लागू हुआ।
 अगले दिन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने भारत सरकार के सचिवों 
की बैठक की।
प्रधान मंत्री के तब के संयुक्त सचिव रहे बिशन टंडन के अनुसार,
उस बैठक में श्रीमती गांधी ने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए 
यह कदम उठाया गया है।
प्रधान मंत्री ने  निम्नलिखित तर्क पेश किए थे।
यह आज की पीढ़ी को तय करना है कि वे तर्क सही थे या 
नहीं।
सन 1977 में तो मतदाताओं ने उनके तर्क को नकार दिया था।
हां, फिर भी आज कुछ लोग उस आपातकाल से आज की स्थिति की 
तुलना करते जरूर देखे जा रहे हैं।
तब श्रीमती गांधी के तर्क थे कि 
‘‘प्रतिपक्ष नाजीवाद फैला रहा है।
नाजीवाद केवल सेना व पुलिस के उपयोग से ही नहीं आता है।
कोई छोटा समूह जब गलत प्रचार करके जनता को गुमराह करे तो 
वह भी नाजीवाद का लक्षण है।
भारत में दूसरे दलों की सरकारें भले बन जाएं ,पर मैं माक्र्सवादी 
कम्ुनिस्टों और जनसंघ की सरकार नहीं बनने दूंगी।
जय प्रकाश के आंदोलन के लिए रुपया बाहर से आ रहा है।
अमरीकी खुफिया संगठन सी.आई.ए. यहां बहुत सक्रिय है।
के.जी.बी.का कुछ पता नहीं।
लेकिन उनके यानी के. जी. बी. के कार्य का कोई प्रमाण सामने 
नहीं आया  है।
प्रतिपक्ष का सारा अभियान मेरे विरूद्ध है।
मेरे अतिरिक्त मुझे कोई ऐसा व्यक्ति नजर नहीं आता जो इस 
समय देश के सामने आई चुनौतियों का सामना कर सके।’’
 बिशन टंडन के अनुसार प्रधान मंत्री जब के.जी.बी.की चर्चा कर रही थीं तो वह प्रकारांतर से यह भी कह रही थीं कि सोवियत संघ का यह खुफिया संगठन 
भारत में कोई गलत काम नहीं कर रहा था।
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और अंत में
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राजनीति के मौसमी पक्षी चुनाव विश्लेषण और आकलनकत्र्ताओं के 
काम को थोड़ा
 आसान कर देते हैं।
मौसमी पक्षी बेहतर ढंग से जानते हैं कि हवा का रुख किधर हैं।
नतीजतन वे पहले ही अपने लिए अनुकूल व मजबूत डाल पकड़ लेते हैं।
 पहले के हर चुनाव की तरह 
ही आगामी बिहार विधान सभा चुनाव से पहले भी यह हो रहा है।
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26 जून 2020 के प्रभात खबर ,पटना में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से

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