शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

     ऐतिहासिक सच के साथ भी खिलवाड़ !
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         --सुरेंद्र किशोर- 
 नेताओं के वंशज-परिजन के बीच से निकले अयोग्य उत्तराधिकारियों के कारण आज इस देश के 
कुछ राजनीतिक दल संकट में हैं।
डूब रहे हैं।
आगे उनकी  स्थिति और भी खराब हो सकती है।
   इसके साथ ही, उन राजनीतिक-गैर राजनीतिक लोगों की उम्मीदें भी डूब रही हैं जो उन दलांे के अच्छे दिनों में मजे में थे।
आगे भी अच्छे दिन आने की वे प्रतीक्षा कर रहे थे।
पर, वे अब निराश हो रहे हैं।
 स्थिति सुधरती नहीं देख कर बीते दिनों के कुछ लाभुक व इच्छुक बुद्धिजीवी भी लंबे -लंबे लेख लिख रहे हैं।
लेख क्या है,विधवा विलाप मानिए।
पर, उन में से कुछ लेखों में अब भी डंडी मारी जा रही है।
झूठ परोसा जा रहा है।
पार्टी के पराभव के मूल कारणों की चर्चा कोई नहीं कर रहा है।
क्योंकि उसके कारण हाईकमान के यहां से उनकी गुड्डी कट जाएगी।
साथ ही, लेखों  के जरिए गलत तथ्य पेश करके नई पीढ़ी को गुमराह भी किया जा रहा है।
  आज के एक अखबार में छपे उसी तरह के एक लेख में वंशवाद की शुरूआत के लिए इंदिरा गांधी को जिम्मेदार ठहराया गया।
खैर, वह भी  जिम्मेदार तो थी हीं।
पर लेखक जरा उनके ऊपर भी झांक लेते !
उपलब्ध  दस्तावेजों के अनुसार कांग्रेस में वंशवाद मोतीलाल नेहरू ने शुरू किया था।
कांग्र्रेस अध्यक्ष मोतीलाल जी ने 1928 में महात्मा गांधी को बारी -बारीे से तीन चिट्ठयां लिखीं।
उनमें उन्होंने गांधी से आग्रह किया कि वे 1929 में जवाहरलाल को कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दें।
पहली दो चिट्ठयों पर गांधी नहीं माने थे।
वे तब जवाहर को उस योग्य नहीं मानते थे।
पर, तीसरे पर गांधी मान गए।
सारी चिट्ठयां मोतीलाल पेपर्स के रूप में नेहरू मेमोरियल में उपलब्ध हैं।
   अब आइए ,1958-59 में।
1958 में इंदिरा गांधी कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य बनीं।
  कल्पना कीजिए,कितने बड़े -बड़े स्वतंत्रता सेनानी तब सदस्य बनने के काबिल थे।
पर उन्हें नजरअंदाज किया गया।
यही नहीं,इंदिरा गांधी 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष बना दी गईं।
कांग्रेस संासद व पूर्व केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी ने इंदिरा गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने के विरोध में जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा।
नेहरू ने जवाब दिया,
‘‘ .......मेरा यह भी ख्याल है कि बहुत तरह से इस वक्त उसका (इंदु का) कांग्रेस का अध्यक्ष बनना मुफीद हो सकता है।’’
----पुस्तक -आजादी का आंदोलन -हंसते हुए आंसू--लेखक -महावीर त्यागी-पेज नंबर-230
प्रकाशक-किताब घर,नई दिल्ली।
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सुरेंद्र किशोर --20 जुलाई 20
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नोट-किसी का वंशज या परिजन राजनीति में आगे आए,इसमें किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए।
पर अयोग्य वंश को किसी दल के शीर्ष पर थोपा न जाए।
लगातार विफलताओं के बावजूद उसे शीर्ष पर ही बनाए नहीं रखा जाए।
क्योंकि राजनीतिक दल किसी व्यापारी का कारखाना नहीं होता।
उससे  लाखों-करोड़ों  लोगों व हजारों कार्यकत्र्ताओं की उम्मीदें जुड़ी होती हैं।
स्वस्थ लोकतंत्र का विकास का भी उससे संबंध है।


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