बुधवार, 22 जुलाई 2020

   श्रद्धांजलि
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राम अवधेश सिंह एक निरंतर 
उबलता समाजवादी
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सुरेंद्र किशोर  
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पी.टी.आई.के पटना ब्यूरो प्रमुख एस.के.घोष उर्फ मंटू दादा ने
विधायक राम अवधेश सिंह के लिए इबूलिएंट मेम्बर शब्द द्वय के प्रयोग किया था।
वे ‘इंडियन नेशन’ में काॅलम लिखते थे।
 उसके बाद मैंने शब्दकोष देखा।
उसमें इबूलिएंट का अर्थ था-उबलता हुआ,खौलता हुआ आदि आदि।
मैं उन दिनों राम अवधेश के ही सरकारी आवास में  रहता था।
पढ़ने-लिखने वाले इस समाजवादी कार्यकत्र्ता को 
पटना में पहली बार किसी ने रहने के लिए मुफ्त में एक कमरा दिया था।
भोजन-नाश्ता अलग से।
बदले में मैं राम अवधेश के लिए कुछ लिखा-पढ़ी  का काम कर देता था।
  मैंने मंटू दादा का चित्रण सही पाया।
 यह बात उस समय की है कि जब राम अवधेश 1969 में आरा से संसोपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे।
राम अवधेश जब सदन में खड़ा हो जाते थे तो उन्हें बैठाना 
स्पीकर के लिए लगभग असंभव हो जाता था।
वे अपनी बात कह कर ही मानते थे।
उन दिनों मैं अक्सर स्पीकर दीर्घा का पास बनवा कर वहां बैठा करता था।
तब सदन में वैसा हंगामा नहीं होता है जैसा आज होता है।
राम अवधेश तथा उनके कुछ अन्य साथियों को तब लगता था कि इस देश में अब समाजवाद आने ही वाला है,इसलिए जरा हमें जोर लगा देना चाहिए।
 समाजवाद लाने के लिए 
उसी तरह बेचैन लोहियावादी विधायकों में पूरन चंद,विश्वनाथ मोदी और रामइकबाल बरसी प्रमुख थे।
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राम अवधेश बिहार के चैकीदारों और दफादारों के नेता थे।
तब चैकीदारों-दफादारों की सेवा अस्थायी थी।
उसे स्थायी करने की मांग पर राम अवधेश अड़े थे।
1970 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार मुख्य मंत्री बने थे।
अच्छा मौका था।
रामअवधेश ने राज्य भर से हजारों चैकीदारों -दफादारों को बुलाकर उनसे पटना सचिवालय को अनिश्चित काल के लिए 
घेरवा दिया।
 साथ ही, खुद राम अवधेश भूमिगत हो गए।
यानी अपने दल के नेताओं की पहुंच से भी बाहर।
वह घेरा डालो आंदोलन इतना जोरदार था कि मुख्य मंत्री के लिए भी सचिवालय जाना कठिन हो गया।
  घेरा एक से अधिक दिनों तक चला।
 कर्पूरी ठाकुर परेशान थे।
उन्होंने प्रणव चटर्जी की मदद से किसी तरह राम अवधेश को 
बुलवाया।
पूर्व स्पीकर धनिकलाल मंडल के आवास में कर्पूरी जी से राम अवधेश की गरमा गरम बहस शुरू हुई।
तब मैं भी उस कमरे में उपस्थित था।
राम अवधेश ने कहा कि ‘‘आप चैकीदारों की मांगें मान लीजिए।’’
कर्पूरी जी ने कहा कि वित्त मंत्री जनसंघ घटक के हैं।वे नहीं मान रहे हैं।
राम अवधेश ने कहा कि जिस मांग पत्र को लेकर आप मेरे साथ राज्यपाल से मिल चुके हैं,वही मांग आप कैसे नहीं मानिएगा ?
कर्पूरी जी ने कहा आपकी मांग अव्यावहारिक है।
मैंने ऐसी मांग का समर्थन कभी नहीं किया।
इस पर राम अवधेश ने ऊंचे स्वर में कहा कि 
‘‘आप झूठ बोल रहे हैं।’’
मुख्य मंत्री ने उससे भी अधिक ऊंची आवाज में कहा
 ‘‘आप झूठ बोल रहे हैं।’’
इस गरम माहौल में मुझे कमरे से बाहर जाने को कहा गया।
क्योंकि मैं तो एक छोटा कार्यकत्र्ता था।
खैर, बाद में क्या हुआ, मुझे नहीं मालूम।
पर इस तरह जीवन में 
राम अवधेश का उबाल जारी रहा।
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पिछड़ों के लिए आरक्षण समर्थन में राम अवधेश का आंदोलन भी जोरदार रहा था।
1993 में जब मंडल आरक्षण लागू हुआ तो उसमें आर्थिक सीमा लगा दी गई।
राम अवधेश ने उसका नाम दिया था--बधिया आरक्षण।
बाद के वर्षों में राम अवधेश से मेरा संपर्क नहीं रहा।जहां -तहां यदाकदा मुलाकात हो जाती थी।
मेरे घर भी आते थे। मुझसे वे स्नेह रखते थे।
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राम अवधेश एक बार लोक सभा और एक बार राज्य सभा के सदस्य भी हुए थे।
 1977 के लोक सभा चुनाव में राम अवधेश ने बिक्रमगंज में  पूर्व केंद्रीय मंत्री डा.रामसुभग सिंह(कांगे्रेस) को भारी मतों से हराया था।
जनता पार्टी ने पहले अम्बिका शरण सिंह को टिकट देने का निर्णय किया था।
पर अंततः टिकट राम अवधेश को मिल गया।
83 वर्षीय राम अवधेश का कल पटना में निधन हो गया।
ऐसे राम अवधेश को मेरा शत शत नमन !
वैसे समाजवादी अब पैदा होने बंद हो गए हैं। 
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 21 जुलाई 20

   
   


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