कभी के अपने ही शीर्ष नेता
के प्रति निष्ठुर होते नेतागण
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28 जून को पूर्व प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव की जयंती मनाई गई।
क्या उस अवसर पर राव के योगदान से संबधित मनमोहन सिंह के किसी उद्गार पर आपकी नजर पड़ी ?
मेरी तो नहीं पड़ी।
मनमोहन सिंह तथा अन्य कांगेसी नेताओं ने संभवतः इसलिए चुप्पी साधी क्यांेकि संभवतः सोनिया गांधी राव को पसंद नहीं करतीं।
कभी प्रधान मंत्री राव के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह नरसिंह के
कदमों में बैठकर राय -मशविरा करते थे।-चित्र देखें ।
पर, बाद में राजनीतिक स्थिति बदली तो सरदार जी ने गत साल एक रहस्योद्घाटन कर दिया।
राव को सिख दंगा नहीं रोकने के लिए दोषी ठहरा दिया।
यह बात तब की है कि जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में पुलिस के सरंक्षण में सिखों का एक तरफा नर संहार हो रहा था।
मनमोहन सिंह के अनुसार गृह मंत्री नरसिंह राव ने तब गुजराल की बात मानी होती तो दंगा इतना भयावह नहीं होता।
याद रहे कि पूर्व केंद्रीय मंत्री आई.के. गुजराल ने राव से मिलकर कहा था कि सेना जल्द बुलाइए।
पर जल्द नहीं बुलाई गई।
मन मोहन जी ने यह बात छिपा ली कि नरसंहार के समय तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी राष्ट्रपति जैल सिंह और पत्रकार खुशवंत सिंह के फोन भी नहीं ले रहे थे।
क्या राजीव गांधी को सूचना नहीं मिल रही थी कि सिखों का तीन दिनों तक संहार होता रहा ?
पुलिस मूकदर्शक थी या दंगाइयों का सहयोग कर रही थी ?
क्या तत्काल सेना बुलाने के लिए वे राव को निदेश नहीं दे सकते थे ?
उल्टे राजीव ने तो बाद में यह भी कह दिया था कि ‘जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।’
इस धरती के हिलने से रोकने में सिर्फ नरसिंह राव कैसे सहायक हो सकते थे ?
इस पोस्ट के साथ में प्रस्तुत हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक चित्र बहुत कुछ कह देता है।
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अपनी ही पार्टी के किसी प्रधान मंत्री की ऐसी उपेक्षा ध्यान देने लायक है।
इस बार तेलांगना के मुख्य मंत्री ने पी.वी.नरसिंह राव के बारे में
देश भर के अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन देकर नई पीढ़ी को कुछ जानकारियां दीं।
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--सुरेंद्र किशोर--2 जुलाई 20
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