शुक्रवार, 17 जुलाई 2020


हाईकमान में चुश्ती और सत्तर्कता के बिना कांग्रेस के अच्छे दिन मुश्किल-सुरेंद्र किशोर
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कांग्रेस पूरे देश में फैली है।ऐसे दल के सफल संचालन के लिए उसके हाईकमान में जिस तरह की चुश्ती और सत्तर्कता जरूरी होती है,उसका कांग्रेस में अभाव है।
इसके आंतरिक संकट व बिखराव का यह एक बड़ा कारण है।
नीतिगत विचलन दूसरा कारण है।
 लोकतंत्र में मुख्य प्रतिपक्षी दल की जिस तरह की प्रभावकारी
व जिम्मेदार भूमिका होनी चाहिए थी,इसी कारण उसका  अभाव खटकता है।
 स्वस्थ लोकतंत्र में प्रतिपक्ष का मजबूत और जिम्मेदार होना जरूरी है।
 पर किसी प्रतिपक्षी दल को मजबूत बनाने का दायित्व सत्ताधारी दल का तो नहीं हो सकता !
  हालांकि कांग्रेस की आंतरिक कमजोरियांे व फूट का लाभ भाजपा या कोई अन्य पार्टी उठाएगी ही।
किंतु कांग्रेस का यह कहना सही नहीं है कि भाजपा ही कांग्रेस में बिखराव का कारण बन रही है।
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   अपना और पार्टी का भविष्य उज्ज्वल
   हो तो क्यों कोई छोड़ेगा पार्टी !
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इस देश की राजनीति का आम चलन यह है कि जब किसी भी दल में कोई नेता अपना भविष्य नहीं देखता तो
वह दल त्याग कर देता है।
और यदि उस पार्टी का भविष्य भी अनिश्चित हो तब तो बिखराब अधिक ही होता है।
कांग्रेस में आज यही हो रहा है।
 विद्रोह के स्वर राजस्थान के अलावा भी कुछ अन्य राज्यों से भी आने लगे हैं।
झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने आरोप लगाया
है कि भाजपा राज्य सरकार को अस्थिर करना चाहती है।
उरांव साहब,यदि आपका घर ठीक रहेगा तो चाहते हुए भी बाहर से कोई भी आपकी सरकार को अस्थिर नहीं कर सकता।
   उधर अपने विधायकों को संतुष्ट बनाए रखने  के लिए छत्तीस गढ़ में भी कांग्रेस सरकार उपाय कर रही है।
बल्कि लगता है कि उसे उपाय करना पड़ रहा है। 
 खबर है कि मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने हाल में 15 संसदीय सचिव बनाए हैं।
अभी 20 अन्य प्रमुख कांग्रेस नेताओं को बोर्ड और निगमों में स्थान देने का प्रस्ताव है।
   पर यह सब अस्थायी उपाय है।
राजनीतिक प्रेक्षक बताते हैं कि कांग्रेस को चाहिए कि वह उसके पास से भाग रहे आम वोटरों को अपने पास बुलाने का प्रयास करे।
उसके उपाय क्या-क्या  हो सकते हैं,वह सब ए.के.एंटोनी कमेटी की रपट में दर्ज है।
2014 के लोक सभा चुनाव में ऐतिहासिक हार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने वह कमेटी बनायी थी।
पर उसकी रपट को आलमारी में बंद कर दिया गया।   
    
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   कांग्रेस की कार्य शैली !
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कांग्रेस हाईकमान की ‘कार्य शैली’ को राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत 
अच्छी तरह जानते-समझते हैं।
उसी के अनुसार वे काम भी करते हैं।
उनके पुत्र वैभव गहलोत भी उसी कार्य शैली को सीख रहे हैं।
जब ऐसा है तो अब राजस्थान में भावी मुख्य मंत्री पद के लिए किसी ‘पायलट’ की भला क्या जरूरत है ?
असम में तरुण गोगोई का कांग्रेस हाई कमान से पूर्ण तालमेल रहा है।
 उसी राह पर उनके पुत्र गौरव गोगोई हैं।
फिर वहां मुख्य मंत्री पद के लिए किसी हेमंत विश्व शर्मा की कांग्रेस में कहां जगह है ?
   कांग्रेस हाईकमान की नजर में यही स्थिति  मध्य प्रदेश से  कमलनाथ -नकुल नाथ की है।
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     चुनाव की तारीख को लेकर यक्ष प्रश्न 
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बिहार का चुनाव कार्यालय यह मानकर मतदान की तैयारी के काम में लगा हुआ है कि बिहार विधान सभा का चुनाव समय पर ही आगामी अक्तूबर-नवंबर में  होगा।
  इस बार पहले की अपेक्षा राज्य में करीब 34 हजार अतिरिक्त मतदान केंद्र होंगे ताकि मतदाताओं के बीच  शारीरिक दूरी बनायी रखी जा सके।
 यदि स्थिति बिलकुल ही अनुकूल नहीं रही तो चुनाव टालना ही पड़ेगा।
एक सुझाव यह भी आ रहा है कि बिहार विधान सभा की आयु छह महीने के लिए बढ़ा दी जाए।
ऐसी स्थिति में मौजूदा राज्य मंत्रिमंडल भी बना रहेगा।
ऐसा अन्य कारणों से पहले भी इस देश में हो चुका है।
यह सुझाव सही लगता है।
देखें ,अंततः क्या होता है !
वैसे कुछ राजनीतिक दल अपनी 
सुविधा और कुछ अन्य दल जनता की असुविधा को ध्यान में रखते हुए चुनाव के समय के बारे में अपनी तरह तरह की सलाह सार्वजनिक कर रहे हैं।
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और अंत में
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चीन यह प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहा है कि  दुनिया का अब वही सुपर पावर है। 
पर, भारत ने दिखा दिया कि हम भी दबने वाले नहीं हैं।
चीन को भी भारत की ताकत का
एहसास हुआ।
पर यह एहसास स्थायी हो,उसके लिए भारत को कुछ और करना पड़ेगा।
अधिक ताकतवर बनना पड़ेगा।
सरकारी पैसों के ‘लीकेज’ को यथासंभव बंद करके अपनी अर्थ व्यवस्था और मजबूत करनी होगी।साथ ही,बाहरी और भीतरी दुश्मनों का कड़ाई से मुकाबला करने के लिए सेना,पुलिस व  हथियारों के मामलों में हमें और भी ताकतवर बनना होगा।
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कानोंकान,
प्रभात खबर
17 जुलाई, 20

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