मंगलवार, 7 जुलाई 2020

संदर्भ - फरार गैंगेस्टर विकास दुबे
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बचपन में मैंने सुना था कि
 ‘‘कुत्ते और क्रिमिनल का आयु 10 से 15 साल ही होती है।’’
  पर जब से क्रिमिनलों को  मजबूत राजनीतिक संरक्षण मिलने लगा,
तब से उनकी आयु बढ़ती चली गई।
  किंतु जो  क्रिमिनल  पुलिसकर्मियों की हत्या करता है,वह 
असली या नकली मुंठभेड़ों में बाद में मारा ही जाता है।
अपवादों की बात और है।
हां, कोई क्रिमिनल इस देश के किसी राज्य के मुख्य मंत्री का दुलरूआ हुआ, तब तो पता चलने पर शासक पुलिस मुठभेड़ को बीच में ही रुकवा कर भी उसे बचा लेता  है।
पर ऐसा कम ही हुआ है।
  जो नहीं बच पाता ,उसके लिए कुछ खास तरह के नेता सार्वजनिक रूप से भी अफसोस जाहिर करने से खुद को नहीं रोक पाते।
1982 में उत्तर प्रदेश का एक दुर्दांत डाकू पुलिस मुंठभेड़ में मारा गया था।
इंडिया टूडे के अनुसार, उस डाकू ने कई किस्तों में 24 पुलिकर्मियों को मारा था।
उस पर करीब 100 डकैतियों का आरोप था।
   असली या नकली पुलिस मुंठभेड़ में उस डाकू के मारे जाने के तत्काल बाद संयोगवश  राष्ट्रीय स्तर के एक नेता  पटना में थे।
तब प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा था कि  चंबल में जब ऊंची जातियों के डाकू  हुआ करते थे तो वे दसियों साल तक राज करते थे।
पर जब पिछड़ी जाति के डाकू होने लगे तो पांच साल, छह साल में मार दिए जाते हैं।
तब मैं दैनिक आज का संवाददाता था।
मैं उस प्रेस कांफ्रेंस में गया था।
उस नेता का बयान ‘आज’ में तब छपा भी था।
अब देखना है कि विकास दुबे का क्या हश्र होता है !
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सुरेंद्र किशोर--6 जुलाई 20
  

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