शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

   भारत की अर्थ व्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त 
   बनाए बिना अब देश का कल्याण नहीं,
अनेक कोरोना मरीजों की दुर्दशा ने सरकारी 
स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार को पूरी 
तरह उजागर कर दिया है।
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इस देश के अर्थ -तंत्र के साथ  संस्थागत रूप से जुड़ चुके भ्रष्टाचार को 
काफी हद तक कम किए बिना अर्थ व्यवस्था में सुधार संभव नहीं है ।
  अब सवाल यह है कि क्या केंद्र व राज्य सरकारों के अधिकतर स्तरों पर व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार को कभी कम किया भी जा सकता है ?
जब केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल स्तर से घोटालों-महा घोटालों  को खत्म किया जा सकता है।
जब इस देश के कई मुख्य मंत्री अपने लिए नाजायज पैसे नहीं कमाते। यदि यह सब संभव हो सका है तो उसके नीचे के विभिन्न सरकारी स्तरों से भी इसे काफी कम किया जा सकता है।
पर उसके लिए सर्जिकल स्टाइक की जरूरत पड़ेगी।
पर, इसके लिए नरंेद्र मोदी को कुछ अधिक ही साहस का परिचय देना होगा।
आज जितना विशाल जन समर्थन उन्हें हासिल है,उसके बल पर वे यह साहस भी कर सकते हैं।
चीन व कोरोना संकट के तत्काल बाद उन्हें यह कदम उठाना चाहिए। 
साहस इसलिए कह रहा हूं क्योंकि पिछले दशकों में इस देश के अच्छी मंशा वाले कई प्रधान मंत्रियों व मुख्य मंत्रियों को भी इस बात का डर 
सताता रहा  कि भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक व परिणामजनक  कार्रवाई  करने पर उनकी सरकार गिर जाएगी।
अच्छी मंशा वाले एक मुख्य मंत्री ने मुझसे एक बार कहा था कि इस देश के अधिकतर आई.ए.एस. अफसर भ्रष्टाचार कम होने ही नहीं देना चाहते।
यदि यह सच है तो वैसे आई.ए.एस. पर नकेल कसने के लिए नरेंद्र मोदी व संसद को कड़ा कदम उठाना पड़ेगा।
पर यह देख कर दुख होता है कि नरेंद्र मोदी जैसे ईमानदार नेता के  राज में भी सांसद फंड यानी ‘‘भ्रष्टाचार के रावणी अमृत कुंड’’ का नाश नहीं हो पा रहा है।
  सांसद फंड में जारी अबाध कमीशनखोरी को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि इसी के साथ अधिकतर सांसद व अफसर 
अपने प्रारंभिक काल से ही एक खास ‘‘कार्य शैली’’ सीख जाते  हैं। 
भ्रष्टाचार को जारी रखने के पक्ष में कितनी बड़ी-बड़ी शक्तियां इस देश में सकिंय हैं, उनका एक नमूना पेश है।-- 
राहुल गांधी को ‘न्याय योजना’ का विचार देने 
वाले नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी की भ्रष्टाचार के बारे में राय जानिए।
यही राय कांग्रेस तथा कुछ अन्य संगठनों व मीडिया सहित विभिन्न क्षेत्रों की अनेक हस्तियों की भी रही है।
   दैनिक हिन्दुस्तान से बातचीत में अक्तूबर, 2019 में नोबल विजेता बनर्जी ने कहा था कि 
‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,शायद भ्रष्टाचार अर्थ व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था, इसे काट दिया गया है।
मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।.............’’
   आज यदि हजारों-हजार करोड़ रुपए का घोटाला करने वाले किसी नेता,अफसर या व्यापारी पर कानूनी कार्रवाई होती है तो वे व उनके समर्थक व लाभुक यह राग अलापने लगते है कि ‘‘बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है।’’
ऐसे में इस गरीब देश की अर्थ व्यवस्था भला कैसे सुधरेगी ?
सरकार के पैसों को लूट से कैसे बचाया जा सकेगा ?
1985 के राजीव गांधी के आंकड़े के अनुसार सरकार के सौ पैसों में से 85 पैसे बीच में ही लूट लिए जाते हैं।
अब सीधे बैंक खातों में पैसे डालने के बाद अब कुछ फर्क तो आया है,पर बहुत फर्क नहीं आया है।
बैंकों के लाभुक खातेदारों के आसपास मंड़राते दलालों पर अभी शासन की नजर नहीं जा रही है।
यह भी दुखद है।
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  ---सुरेंद्र किशोर--20 जुलाई 20 

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