गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

 सन 1950 की ‘गोदी मीडिया’ ?!!

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देश के एक बड़े संपादक संविधान सभा का सदस्य बनना चाहते थे।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी.बी.पंत ने उनके नाम की सिफारिश भी कर दी थी।

पर, प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनका नाम काट दिया।

उस पर संपादक जी बहुत -बहुत नाराज हो गए।

फिर तो वे जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के खिलाफ 

तरह- तरह की पुष्ट-अपुष्ट बातें अपने काॅलम में लिखने लगे।

(वैसी -वैसी बातें लिखने लगे जिस तरह की बातें उन दिनों 

अन्य पत्रकार नहीं लिखते थे।) 

 प्रधान मंत्री ने उस संपादक को इस पर बुरी तरह फटकारा।

फटकार के बाद थोड़े दिनों के लिए तो वे शांत रहे।

किंतु फिर उसी तरह की 

बातें लिखने लगे।

इस पर अखबार के मालिक से प्रधान मंत्री ने पूछवाया कि क्या आप उस संपादक के लेखन से सहमत हैं ?

स्थिति की गंभीरता समझते हुए मालिक ने उस संपादक की छुट्टी की दी।

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-- उपर्युक्त जानकारी प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के 13 साल तक निजी सचिव रहे एम.ओ.मथाई की पुस्तक(पेज-102) पर आधारित है।

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  प्रधान मंत्री के हस्तक्षेप से उस संपादक की नौकरी गई,इसकी दबी जुबान में चर्चा दिल्ली के पूरे मीडिया जगत में हुई।

किंतु इस बात का कोई जिक्र कहीं नहीं मिलता कि इस पर मीडिया में प्रधान मंत्री के खिलाफ कोई बात छपी हो।

यदि आपके पास कोई जानकारी हो,तो मेरा सामान्य ज्ञान जरूर बढ़ाइएगा।

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दरअसल आजादी के बाद के वर्षों में इस देश की मीडिया का अधिक अंश नेहरू पर मोहित था।

कुछ तो भावना से,

कुछ विचारधारा के कारण 

 और कुछ दूसरे, अघोषित कारणों से।

क्या तब की मीडिया को किसी ने ‘गोदी मीडिया’ कहा ?

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पुनश्चः

एक बार बिहार के कुछ कांग्रेसी नेता,जो अनुग्रह बाबू के समर्थक थे, लाल बहादुर शास्त्री के यहां गए।

उनसे कहा कि आप जयप्रकाश नारायण को नेहरू के खिलाफ बयान देने से रोकिए।

क्योंकि जब वे बोलते हैं तो कुछ कांग्रेसी नेता नेहरू जी को यह बताते हैं कि वे डा.अनुग्रह नारायण सिंह के कहने पर ही आपके खिलाफ बोलते हैं ।

जबकि, ऐसी कोई बात नहीं।

  इस पर शास्त्री जी ने क्या कहा ?

आपको जानकार हैरानी होगी।

उन्होंने कहा कि जेपी जब बोलते हैं तो पंडित जी को अपनी गलतियों का एहसास होता है।

क्योंकि पंडित जी मानते हैं कि जेपी का कोई निजी स्वार्थ नहीं होता।

किंतु जब जेपी भी नहीं बोलेंगे तो पंडित जी कैसे जानेंगे कि वे गलत काम कर रहे हैं या सही ?

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शास्त्री जी की इस टिप्पणी से क्या इस बात की पुष्टि नहीं होती है कि तब ‘‘नेहरू मगन’’ मीडिया (अपवाद को छोड़कर)अपना काम नहीं कर रही थी ?

 और , इसीलिए जेपी के आलोचनात्मक बयानों की जरूरत शास्त्री जी जैसे अच्छी मंशा वाले कांग्रेसी नेता को भी महसूस हो रही थी ?

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--सुरेंद्र किशोर

--21 दिसंबर 20 


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