बुधवार, 30 दिसंबर 2020

   सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वाॅल से 

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   बहुत कठिन काम है कोई पद ठुकराना !

   पर, उससे भी अधिक कठिन  है पद

   ठुकराने वालों की सराहना करना,

  उनके नाम का इतिहास नई पीढ़ियों को पढ़वाना !!!

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कितना कठिन होता है यह कहना कि ‘‘मैं मुख्य मंत्री 

नहीं बनूंगा,आप ही बन जाइए !’’

बहुत कठिन।

किंतु यह कठिन काम भी नीतीश कुमार ने इस बार कर ही दिया।

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इस बात पर भी कुछ लोगों को तभी विश्वास हुआ जब भाजपा नेता सुशील मोदी ने इस आशय का बयान दिया।

सुशील मोदी ने 28 दिसंबर को कहा कि 

‘‘नीतीश कुमार मुख्य मंत्री बनने को तैयार नहीं थे।

कह रहे थे कि भाजपा ही अपना मुख्य मंत्री बना ले।

उन्हें राजी करने की कोशिश हुई।

उन्हें कहा गया कि प्रधान मंत्री भी चाहते हैं कि आप ही मुख्य मंत्री बनें।

बेशक मुश्किल से वे मुख्य मंत्री बनने के लिए राजी हुए।’’ 

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मुख्य मंत्री पद अस्वीकारना कठिन काम है। 

लेकिन मेरा तो मानना है कि उससे भी अधिक कठिन काम  है ऐसे अस्वीकार की सराहना करना।

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हालांकि आजादी के बाद इस देश में कुछ ऐसे नेता हुए हैं जिनके लिए पद ही सब कुछ नहीं था।

पर बहुत कम हुए हैं।

हुए भी हैं तो इतिहासकार या पत्रकार उस बात की चर्चा शायद ही करते हैं।

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आज की पीढ़ी में कितने लोगों को यह मालूम है कि 

डा.राजेंद्र प्रसाद ने 1949 में कह दिया था कि ‘‘मैं किसी पद का उम्मीदवार नहीं हूं।’’

सी.राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनवाने के लिए बेचैन जवाहरलाल नेहरू ने चतुराई से राजेन बाबू से यह बात लिखवा कर ले ली थी।

बाद में सरदार पटेल ने जब स्थिति संभाली तो राजेेन बाबू 1950 में राष्ट्रपति बन सके।

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डा.श्रीकृष्ण सिंह और डा.अनुग्रह नारायण सिंह के समर्थकों के बीच जब मुख्य मंत्री पद को लेकर भारी खींचतान हो रही थी तो नेहरू जी परेशान हो उठे थे।

तब लक्ष्मीनारायण सुधांशु प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे।

नेहरू जी ने सुधांशु जी से कहा था कि आप ही मुख्य मंत्री बन जाइए।

 सुधांशु जी ने इनकार करते हुए कहा कि जनता उन दोनों नेताओं के साथ है,मेरे साथ नहीं ।

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1970 में रामानंद तिवारी को बहुमत प्राप्त गठबंधन ने अपना नेता चुन लिया था।

 तिवारी जी को राज भवन में जाकर मुख्य मंत्री पद का शपथ ग्रहण करना था।

पर अंतिम समय में सैद्धांतिक सवाल उठाते हुए तिवारी जी ने कह दिया कि ‘‘मैं मुख्य मंत्री नहीं बनूंगा।’’

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दूसरी ओर का दृश्य देखिए

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घनघोर व घृणित पदलोलुपता - धनलोलुपता-वंशवाद-परिवारवाद के आज के गंदले राजनीतिक समुद्र में अर्थ लाभ -शान -शौकत - पेंशन देने वाले छोटे -छोटे पदों के लिए भी कभी- कभी कितनी नीच हरकतें होती रहती हैं,यह सब हम दशकों से देख रहे हैं।

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 लाभ के लिए दल या दलीय सुप्रीमो का भयादोहन करने वाली गिरगिटी शक्तियां भी बेशर्मी से सक्रिय रहती हैं।

ताकि, सुप्रीमो से अपने लिए पद हड़पे जा सकें। 

‘शांति स्थापना’ व गद्दी की सुरक्षा में लगे कुछ सुप्रीमो यदाकदा भयादोहन के शिकार भी होते रहते हैं।

  भयादोहन करने वालों को देने से ही जब पद नहीं बचते तो बेचारा सुप्रीमो उसे भी नहीं दे पाता जिसे देना वह चाहता है।

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-- 30 दिसंबर 20 


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