रविवार, 13 दिसंबर 2020

   भारतीय संसद पर 2001 के

 आतंकी हमले को याद रखें

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साथ ही अंतध्र्वंसकों -भितरघातियों को पहचानें

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  --सुरेंद्र किशोर--

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13 दिसंबर, 2001 को जेहादियों-आतंकियों ने 

भारतीय संसद भवन पर जोरदार हमला किया था।

संसद सत्र में थी।

  आतंकवादियों से संसद को बचाने के लिए 5 सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जानें दे दीं।

एक माली और एक नागरिक भी शहीद हुए ।

 इस क्रम में पांच आत्मघाती आतंकी मारे गए।

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कल्पना कीजिए कि तब सुरक्षाकर्मी विफल हो गए होते तो क्या होता ?

अनेक तथाकथित सेक्युलर और गैर सेक्युलर सांसद भी मारे जाते।

  पर, उस तरह की घटना को लेकर भी हमारे देश के कई वोटलोलुप तथाकथित सेक्युलर नेताओं ने कैसा 

रवैया अपनाया ?

   इस कांड को लेकर अफजल गुरु को 2013 में ही फांसी दी जा सकी,

यानी लंबी सुनवाई के बाद।

इस देश में अफजल गुरु की कुछ लोग बरखी मनाते हैं और भारत तेरे टुकड़े होंगे,जैसे नारे भी लगाते हैं।

उन तत्वों के साथ हमारे देश के कौन -कौन नेता खुलेआम एकजुटता दिखाते हैं,यह सबको मालूम है।

  वैसों के खिलाफ भी मुकदमा चलाने की अनुमति इस देश के एक राज्य का मुख्यमंत्री जल्दी नहीं देता।

काफी दबाव में बाद ही देने को बाध्य होता है।

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   संसद पर उस हमले के बाद भारत और पाक के बीच तब भारी तनाव पैदा हो गया था।

दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर पहुंच गई थीं।

  हालांकि युद्ध नहीं हुआ।

  बाद में इस देश के एक बड़े नामी वोटलोलुप सेक्युलर नेता ने बयान दिया कि पाकिस्तान को अपनी सेनाओं को भारतीय सीमा पर पहुंचाने में जो खर्च आया है,उसकी भरपाई,भारत सरकार  करे ।

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ऐसा तो जयचंद ने भी नहीं कहा था कि पृथ्वीराज चैहान को हराने में मुहम्मद गोरी की सेना को जो खर्च करना पड़ा था, उसकी भरपाई होनी चाहिए।

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आज के कुछ नेताओं की हरकतों को देखकर लगता है कि बेचारा जयचंद तो नाहक बदनाम हो गया !

बाद में गोरी के हाथों उसकी भी जान गई।

(आधुनिक जयचंद इसे खास तौर पर याद रखें।)

जयचंद का आखिर कसूर क्या था ?

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किसी की बहन-बेटी को कोई उठा ले जाएगा तो वह अपहरणकत्र्ता की मदद करना छोड़ देगा,यह स्वाभाविक है।

कम से कम इतना तो वह करेगा ही।

पहले जयचंद, चैहान की मदद करता था।

उस कारण मुहम्मद गोरी, 

चैहान से बार -बार हारता रहा।

अपहरण की घटना के बाद जयचंद ने मदद करनी छोड़ दी।

चैहान हार गया।

जयचंद ने युद्ध में गोरी का साथ नहीं दिया था।

गोरी की ओर से  नहीं लड़ा था।

दूसरी ओर अकबर की सेना में शामिल होकर मान सिंह (जयपुर)राणा प्रताप के खिलाफ लड़ा था। 

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किंतु आधुनिक भारत में हमारे यहां के कुछ वोटलोलुप नेता व बुद्धिजीवी लगातार क्या-क्या  करते जा रहे हैं ?

लगातार हमलावरों-जेहादियों का साथ दे रहे हैं।

मन -वचन - कर्म से !

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इस अवसर पर ‘जागृति’ फिल्म का यह गाना याद आता है

--हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकाल के !

इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के !!

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अब तो कुछ ‘तत्व’ जागृति जैसी फिल्में भी नहीं बनने देते।

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--सुरेंद्र किशोर--13 दिसंबर 20


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