दलीय आधार पर पंचायत चुनाव करवाने
के कुछ सकारात्मक फायदे
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--सुरेंद्र किशोर--
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बिहार में ग्राम पंचायतों के चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है।
राज्य की कुल 8387 ग्राम पंचायतों में अगले साल चुनाव
होंगे।
अच्छा होगा ,यदि चुनाव दलीय आधार पर करवाने की परंपरा शुरू की जाए।
इससे शायद पंचायत स्तर पर जारी भ्रष्टाचार पर कुछ
अंक़़ुश लगे।अभी तो भ्रष्टाचार का विस्तार देख कर ऐसा लगता है कि पंचायत व्यवस्था विफल हो रही है।
कम ही लोग जानते हैं कि पंचायत स्तर के भ्रष्टाचार का विपरीत असर हाल के विधान सभा चुनाव पर भी पड़ा।
यह भी संभव है कि शायद तब भी अंकुश न लगे।
पर, एक प्रयोग करके देख लेने में क्या हर्ज है ?
यदि पंचायतों के उम्मीदवार किसी दल के होंगे तो वे विजयी होने के बाद अपने दल के हाईकमान की परवाह करेंगे।
यदि सब नहीं तो कुछ तो करेंगे ही।
यदि कोई दलीय नेता मुखिया बन गया तो वह अपने दल से विधान सभा का टिकट मांग सकता है।
यदि ऐसी महत्वाकांक्षी किसी की होगी तो मुखिया बनने पर वह खुद पर संयम रखने की भी कोशिश करेगा।
अपने क्षेत्र में विकास कार्यों में ईमानदारी से काम करवाने की कोशिश कर सकता है।
इसके विपरीत अभी जो हालत है,वह किसी से छिपा नहीं है।हां,अपवाद के तौर पर अब भी जहां -तहां ईमानदार मुखिया -सरपंच आदि जरूर मौजूद हैं।
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व्यवस्थित ढंग से शहरीकरण की उम्मीद
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पटना के आसपास के कई इलाकों को भी पटना नगर निगम में शामिल कर लिया गया है।
मास्टर प्लान के तहत उन इलाकों का व्यवस्थित ढंग से नगरीकरण किया जाना है।
पटना एम्स जिस पंचायत में अवस्थित है,अब वह भी पटना नगर निगम के तहत आ गया।
एम्स के आसपास के इलाके में व्यवस्थित ढंग से मुहल्ला बसाने की कोशिश खुद बिहार सरकार को करनी चाहिए।
राज्य सरकार निजी क्षेत्र के किसी डेवलपर से सहयोग कर सकती है।
उसी तरह का मुहल्ला बसाया जाना चाहिए जिस तरह बारी -बारी से कभी श्रीकृष्णा पुरी,राजेंद्र नगर और लोहिया नगर आदि बसाए गए।
अभी निजी प्रयासों से जो मुहल्ले बस रहे हैं,वे किसी गांव की तरह ही अव्यवस्थित हैं । न तो नाली के लिए जगह छोड़ी जा रही और न ही सड़क के लिए।
स्कूल,अस्पताल व खेल के मैदान का तो कहीं नामो निशान तक नहीं।
यदि सब कुछ निजी प्रयासों पर ही छोड़ दिया जाए तो भारी वर्षा की स्थिति में यह नया इलाका भी वैसे ही डूबेगा जिस तरह मुख्य पटना कभी -कभी डूबता रहा है।
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पंजाब के किसानों के दर्द
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पंजाब तथा देश के कुछ अन्य राज्यों में एक खास तरह की
जानलेवा समस्या गहराती जा रही है।
वह समस्या है खेतों की मिट्टी की पौष्टिकता में निरंतर
कमी। साथ ही जमीन का लवणीकरण।
यह समस्या पंजाब में सर्वाधिक गंभीर है।भूजल जहरीला हो रहा है।
रासायनिक खाद के जरूरत से अधिक इस्तेमाल के कारण यह समस्या पैदा हो रही है।
इससे पंजाब में कैंसर पीड़ितों की संख्या बढ़ती जा रही है।
अगली पीढ़ियों का भविष्य अनिश्चित सा हो गया है।
क्या पंजाब के किसान नेतागण इस समस्या पर भी कभी गौर करेंगे ?
क्या वे कभी इस मांग के लिए भी दिल्ली का घेराव करेंगे कि सरकार रासायनिक खाद पर से निर्भरता घटाकर जैविक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दे ?
एक जानकारी के अनुसार पंजाब के किसान अपने खेतों में 39-9-1 के अनुपात में क्रमशःनाइट्रोजन,फास्फोरस और पोटेशियम डाल रहे हैं। जबकि, आदर्श अनुपात 4-2-1 का माना जाता है।
यदि रासायनिक खाद का इतनी अधिक मात्रा में इस्तेमाल जारी रहा तो एक दिन दूसरे राज्यों के लोग पूछेंगे कि सरकार जो अनाज हमें दे रही है,वह कहीं पंजाब से तो नहीं !
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कैसी होगी प्रस्तावित फिल्म सिटी !
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उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत सितंबर में
यह घोषणा की कि गौतम बुद्व नगर में देश की सबसे बड़ी फिल्म सिटी स्थापित होगी।
संभवतः अब तक उस पर कुछ आरंभिक काम शुरू भी हो गए होंगे।
उम्मीद की जाती है कि वह सिटी जब बन कर तैयार होगी तो वहां से साफ-सुथरी हिन्दी फिल्मों का ही निर्माण होगा।
यदि सेंसर नियमों का कड़ाई से पालन हो तो
इस देश में सिर्फ साफ-सुथरी फिल्में ही बन सकती हैं।
उसी तरह की फिल्में जिस तरह की फिल्में पचास-साठ के दशकों में बनती थीं।
‘बागवान’ और ‘नदिया के पार’ जैसी साफ सुथरी फिल्में तो हाल के वर्षों में भी बनीं।
सेंसर बोर्ड के नियमों को अंगूठा दिखाते हुए इन दिनों अनावश्यक ंिहंसा व सेक्स प्रधान फिल्में मुम्बई में बनाई जा रही हैं।इससे नई पीढ़ियों पर खराब असर पड़ रहा है।
याद रहे कि सेंसर के जो नियम साठ के दशक में थे,वही नियम आज भी हैं।
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और अंत में
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पटना हाईकोर्ट में जजों के 30 पद खाली हैं।
स्वीकृत पदों की कुल संख्या 53 है।
कार्यरत 23 जजों में से भी कुछ जज जल्द ही रिटायर होने वाले हैं।
इतने अधिक खाली पद देश के किसी अन्य हाईकोर्ट में नहीं हैं।
एक तो बिहार की आबादी बढ़ रही है।
साथ ही ,मुकदमों की संख्या बढ़ रही है।
शराबबंदी को लेकर बड़ी संख्या में मुकदमे लोअर कोर्ट में दाखिल हो रहे हैं।
वे भी बारी -बारी से हाईकोर्ट आ सकते हैं।
जिला तथा अनुमंडल स्तरों की
अदालतों में भी न्यायाधीशों की संख्या की कमी है।
पटना हाईकोर्ट में करीब डेढ़ लाख मुकदमे लंबित हैं।
मौजूदा जजों पर काम का बोझ है।
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--कानोंकान,
दैनिक प्रभात खबर
पटना-25 दिसंबर 20
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