कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
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अपराध कम होने से राजनीति के अपराधीकरण पर भी लगेगी लगाम
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मुख्य मंत्री नीतीश कुमार अपराध पर काबू पाने के लिए सख्त कदम उठा रहे हैं।
कानून -व्यवस्था पर उच्चस्तरीय बैठक में उन्होंने निदेश दिया कि पेशेवर अपराधियों पर नकेल कसी जाए ।
उन्होंने यह भी कहा कि जहां अपराध बढ़ रहे हैं,वहां के पुलिस अफसरों पर सख्त कार्रवाई होगी।
मुख्य मंत्री ने सही कदम उठाया है।
हालांकि इस सख्ती के निदेश को कार्यान्वित भी करना होगा।
काम कठिन है।पर असंभव नहीं।
क्योंकि यही सरकार 2005 से 2010 तक सुशासन लाने का काम कर चुकी है।
याद रखना होगा कि
अपराध में बाहर-भीतर के बड़े -बड़े लोगों के निहितस्वार्थ है।
अपराध पर काबू पाने से राजनीति के अपराधीकरण
पर भी काबू पाया जा सकेगा।
आपराधिक न्याय व्यवस्था में
कमजोरी आ जाने से ही जहां -तहां राबिनहुड सरीखे डाॅन मजबूत होते जाते हैं।
बाद में वे चुनाव भी जीत जाते हैं।
आपराधिक न्याय व्यवस्था की पहली कड़ी पुलिस है।
पुलिस थाना चाहे तो अपराध पर काबू रहेगा।
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लाॅटरी के आधार पर
हो दारोगा की तैनाती
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‘पक्षपात’ के बिना ही थानेदार की तैनाती अब जरूरी है।
ऐसा होने लगे तो
वैसे थानेदारों से कत्र्तव्यनिष्ठा की उम्मीद की ही जा सकती है।
इसके लिए जरुरी है कि राज्य स्तर पर लाॅटरी निकाल कर पूरे राज्य में थानेदारों की तैनाती हो हो।
लाॅटरी से निकले थानेदारों की सूची में से अधिकत्तम दस प्रतिशत थानेदारों के नामों में फेरबदल करने की छूट एस.पी.को दी जा सकती है।
इस तरह तैनात किए गए थानेदारों की रोज -ब-रोज की भौतिक जरूरतों को पूरा किया जाना भी जरूरी है।
कहीं -कहीं तो पेट्रोलिंग करने के लिए थानों के पास पर्याप्त साधन ही नहीं होते।
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पुनर्वास के लोभ में बढ़ता है अतिक्रमण
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कल्पना कीजिए कि किसी बड़े नगर के बड़े अस्पताल
तक जाने के लिए 30 फीट चैड़ी सड़क निर्मित है।
उस सड़क के दोनों किनारों पर 10-10 फीट जगह घेर कर अतिक्रमणकारी काबिज हैं।
जाहिर है कि उस सड़क पर अक्सर जाम की मारक समस्या रहेगी।
अब जरा उस सड़क से गुजरने वाले मरीजों की गाड़ियांे का
अंदाज लगाइए।
क्या होगा यदि किसी दिन गंभीर मरीज लिए दो एम्बुलेंस बारी -बारी से उस जाम में फंस जाएं।
घंटों तक फंसे रहें।
दुर्भाग्यवश मरीजों की मौत हो जाए !
फिर बताइए कि उस मौत की सजा किसे मिलनी चाहिए ?
दूसरी ओर, आज अतिक्रमणकारियों के साथ कैसा सलूक किया जाता है ?
एक तो अतिक्रमण हटता नहीं ।
हटता भी है तो अतिक्रमणकारियों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था सरकार करती है।
वैकल्पिक व्यवस्था के लोभ में अतिक्रमण बढ़ता रहता है।
संभवतः इन्हीं सब बातों पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी, 2006 में सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण को लेकर एक जजमेंट दिया था।
न्यायमूत्र्ति एस.बी.सिन्हा और पी.क.बाला सुब्रह्मण्यन के पीठ ने कहा कि ‘‘अतिक्रमणकारियों को किसी तरह का यह अधिकार नहीं है कि वे सरकार से अपने पुनर्वास की मांग करें।’’
दूसरी ओर, सरकारें फुटपाथ दुकानदारों की गरीबी से अक्सर द्रवित रहती है।
रहना भी चाहिए।
पर दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जाए ?
ताकि जाम में फंसकर किसी की जान न जाए।
साथ ही, फुटपाथी दुकानदारों की रोजी-रोटी की व्यवस्था भी हो !
ध्यान रहे कि यह समस्या पूरे बिहार की है।
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‘हल्ला गाड़ी’ की जरूरत
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पटना के आयुक्त ने निदेश दिया है कि जहां से अतिक्रमण हटा दिया जाता है,वहां सतत निगरानी होनी चाहिए।
ऐसा करने से दुबारा अतिक्रमण नहीं होगा।
पुलिस,नगर निगम और जिला प्रशासन की टीम प्रतिदिन
निगरानी करंे।
पर ऐसे आदेश-निदेश पहले भी दिए जाते रहे हैं।
कोई असर नहीं हुआ।
इस देश के कुछ नगरों में ‘हल्ला गाड़ी’ यानी अतिक्रमण निरोधक मोबाइल दस्ते सड़कों पर दौड़ते रहते हैं।
वहां ‘हल्ला गाड़ी’ की आहट सुनते अतिक्रमणकारी अपने सामान समेट कर भागने लगते हैं।
क्योंकि हल्ला गाड़ी किसी के प्रति नरमी नहीं बरतती।
पटना व बिहार के अन्य नगरों में भी ‘कत्र्तव्यनिष्ठ कर्मचारियों के नेतृत्व में ‘हल्ला गाड़ियां’ चलाई जानी चाहिए।
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कैसे बढ़े मतदान का प्रतिशत !
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इस बार भी बिहार में जो विधान सभा गठित हुई है,उसके सदस्यों को औसतन 25 प्रतिशत वोट ही मिले हैं।
करीब 57 प्रतिशत मतदान हुए।
यदि किसी न किसी उपाय से कम से कम 75 प्रतिशत मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर पहुंचाया जा सके तो फर्क पड़ेगा।
विजयी उम्मीदवारों के वोट प्रतिशत बढ़ जाएंगे।
तब लगेगा कि वे अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इससे उनकी ही प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
अब सवाल है कि अधिकतर मतदाताओं को वोट डालने के लिए आखिर कैसे प्रेरित किया जाए ?
सरकार तत्संबंधी कानून बनाए या भौतिक प्रोत्साहन दे ?
कुछ तो करना ही चाहिए।
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और अंत में
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नीतीश सरकार ने पुलिस और सामान्य प्रशासन को बेहतर और भ्रष्टाचारमुक्त बनाने की बड़ी पहल शुरू की है।
इसके साथ ही एक और काम की ओर उसे ध्यान देना चाहिए।
कहीं भीषण आग लगती है तभी अग्नि शामक सेवा की कमजोरियों की ओर शासन का ध्यान जाता है।
इस बार पहले से ही ध्यान जाए तो बेहतर होगा।
देखना होगा कि कहां -कहां अग्नि शमन नियमों का पालन हो रहा है ?
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11 दिसंबर 20-प्रभात खबर,पटना
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