विजय दिवस पर
------------
1962 में जब हम चीन से हारे तो उसके लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री वी.केे.कृष्ण मेनन को बलि का बकरा बना दिया गया।
किंतु जब हमने 1971 में पाकिस्तान को धूल चटा दी तो
उसके लिए प्रधान मंत्री को दुर्गा की उपाधि दे दी गई।
............................................
दरअसल 1962 की हार के लिए न तो सिर्फ रक्षा मंत्री दोषी थे और न ही 1971 की जीत का श्रेय सिर्फ इंदिरा गांधी को दिया जा सकता है।
....................................
जीत भी सभी संबंधित लोगों की थी तो हार भी सबकी !
...............................
श्रेय लेने की होड़ के कारण 1971 के रक्षा मंत्री भी नाराज रहे और सेना प्रमुख भी।
...............................................
दो टिप्पणियां पढ़िए-
विजय का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता--जगजीवन राम
............................
यदि मैं पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष होता तो जीत उसी देश की होती--जनरल मानिक शाॅ
....................................
बंगला देश युद्ध में विजय के श्रेय
को लेकर चली थी खींचतान
सुरेंद्र किशोर
महारथियों के बीच अजीब खींचतान चली थी।
यह खींचतान बंगला देश को लेकर भारत -पाक युद्ध में भारत की विजय का श्रेय देने के सवाल पर हुई थीं।
दक्षिण भारत के एक कांग्रेसी सासंद ने लोक सभा में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ कह दिया था।
(किंतु मीडिया ने ‘दुर्गा’ शब्द अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह में डाल दिया।
अटल जी ने स्पीकर से कहा कि आप खंडन करें।किंतु उनकी बात नहीं मानी गई।
क्योंकि, अटल जी द्वारा दुर्गा कहलाना तब की सत्ता को बेहतर लगा।)
धार्मिक भावना उभारने के लिए ही तो दुर्गा कहा
गया था !
आज कुछ लोग नरेंद्र मोदी पर यह आरोप लगाते रहते हंै कि पाक के खिलाफ कार्रवाई करके भाजपा हिन्दू भावना भड़काती है।
जबकि नरेंद्र मोदी को कोई किसी भगवान के नाम से नहीं जोड़ रहा है।
खैर जो हो, इस देश के आम लोग 1971 के युद्ध में जीत का पूरा श्रेय इंदिरा गांधी को दे रहे थे।
पर रक्षा मंत्री जगजीवन राम और सेना प्रमुख मानेक शाॅ इसे मानने को तैयार नहीं थे।
युद्ध में विजय के बाद जब इंदिरा गांधी को ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया तो सेना में प्रतिक्रिया हुई।
उसे शांत करने के लिए सेना प्रमुख सैम मानिक शाॅ को ‘फील्ड मार्शल’ का ओहदा दिया गया।
बंगला देश युद्ध के बाद एक खेमे की ओर से यह सवाल भी उठाया गया कि सन 1962 में चीन से पराजय के लिए इस देश के रक्षा मंत्री वी.के.कृष्ण मेनन जिम्मेदार थे तो पाकिस्तान पर जीत के लिए सिर्फ प्रधान मंत्री को श्रेय क्यों दिया जाना चाहिए ?जगजीवन राम को क्यों नहीं ?
उधर रक्षा मंत्री जगजीवन राम मानिक शाॅ से नाराज रहा करते थे।
क्योंकि शाॅ तीनों सेनाध्यक्षों में खुद को सर्वोच्च होने का प्रयास करते रहे।
पर सर्वोच्च हो नहीं सके,ऐसा जगजीवन राम का कहना था।
अब इस संबंध में तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम ने 1977 में कहा था कि
‘1971 के युद्ध में भारत की विजय का बड़ा कारण यह था कि सेना के तीनों अंगों का सही और परस्पर पूरक सह कार्य और रक्षा सामग्री के उत्पादन से लेकर हर मोर्चे पर मेरा स्वयं जाकर सेना का हौसला बढ़ाना।
इसके अतिरिक्त निदेशन में सामंजस्य होना भी एक महत्व की बात थी।’
इसके विपरीत बंगला देश युद्ध के समय भारतीय सेनाध्यक्ष मानिक शाॅ ने 1974 में लंदन में साफ- साफ कह दिया था कि
‘अगर मैं उस युद्ध में पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष होता तो विजय पाकिस्तान की ही होती।’
मानिक शाॅ की इस गर्वोक्ति पर जगजीवन राम की टिप्पणी महत्वपूर्ण थी।
उन्होंने कहा कि
‘मैं शाॅ को नकली फील्ड मार्शल मानता हूं।
वह इस योग्य नहीं थे।’
जगजीवन राम को युद्ध के लिए अपनी तैयारी पर पूरा विश्वास था।
उन्होंने कहा कि ‘उस युद्ध को तो जीता ही जाना था भले ही जनरल कोई और होता ।
क्योंकि हमने तैयारी ही इतनी अधिक कर ली थी।’
उनकी यह भी राय थी कि यदि किन्हीं प्रकार के दबाव में आकर किसी को फील्ड मार्शल बना दिया जाए ,तोभी वह नकली फील्ड मार्शल ही होगा।
मानेक शाॅ पैरवी और खुशामद से फील्ड मार्शल बने थे।
जगजीवन बाबू की स्पष्ट राय थी कि उस समय जो भी सेनाध्यक्ष होता, वही युद्ध जीतता भले ही वह इस योग्य नहीं होता।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रजातांत्रिक प्रणाली में जिस ढंग से निर्णय किये जाते हैं,उसके अंतर्गत विजय का श्रेय किसी व्यक्ति विशेष को नहीं दिया जा सकता।
जगजीवन बाबू इस बात से सहमत नहीं थे कि बंगला देश युद्ध में विजय का सारा श्रेय इंदिरा गांधी को दिया जाए।
मानेक शाॅ के बारे में बात होने पर जगजीवन राम तीखे हो जाते थे।
उन्होंने कहा था कि वे तीनों सेना प्रमुखों में से खुद को सर्वोच्च दिखाने की कोशिश करते थे।
लेकिन हो नहीं सके।
नीति निर्धारण समिति की बैठकों मंे कई बार मानेक शाॅ अन्य दोनों सेनाध्यक्षों की बातों का विरोध करते थे ।
और, उनके बीच खुद को सर्वोच्च दिखाने की कोशिश करते थे।
पर,हम इस मान्यता के नहीं रहे कि तीनों सेनाओं का एक अध्यक्ष हो।
यह पूछे जाने पर कि क्या कभी आपसे उनका नीतिगत मतभेद रहा ,जगजीवन बाबू ने कहा कि ऐसा साहस वह नहीं कर सकते थे।
वैसे उनकी ख्वाहिश मनमानी करने की भी रहती थी।
पर वे कर नहीं सकते थे।
मानेक शाॅ की राय भी कुछ नेताओं के बारे में बहुत खराब थी।
मानेक शाॅ ने एक बार कहा था कि
‘मुझे शक है कि उस नेता को मोर्टार और मोटर के बीच के फर्क का पता तक नहीं होगा जिसे देश का रक्षा मंत्री बना दिया जाता है।’
जाहिर है कि मानिक शाॅ बंगला देश युद्ध में विजय का श्रेय भी प्रधान मंत्री या रक्षा मंत्री देने के बदले खुद ही लेना चाहते थे।
मानिक शाॅ ने बाद मेें कहा कि भारतीय फौज की जीत का खांका मैंने खींचा था।
याद रहे कि मानिक शाॅ पांच युद्धों में हिस्सा ले चुके थे।
मानिक शाॅ ने बंगला देश संकट के शुरूआती दौर में आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में प्रधान मंत्री से साफ -साफ कह दिया था कि हमारी सेना अभी युद्ध के लिए तैयार नहीं है।
प्रधान मंत्री को यह बुरा लगा था।
पर जब तैयारी हो गयी तो शॅा से पूछा गया कि इस युद्ध को जीतने में कितना समय लगेगा।
शाॅ ने कहा कि डेढ़ से दो माह तक लगेंगे।
बंगला देश फ्रांस के बराबर है।
पर, जब 14 दिनों में ही पाक फौज ने सरेंडर कर दिया तो मंत्रियों ने पूछा कि आपने 14 दिन क्यों नहीं कहे ?
इस पर शाॅ ने कहा कि यदि पंद्रह दिन हो जाते तो आप लोग ही मेरी टांग खींचने लगते।
...........................................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें