भूली-बिसरी याद
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5 दिसंबर, 1980
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15 पुलिस अफसरों के निलंबन के खिलाफ
भागलपुर पूर्ण बंद रहा।
32 कथित अपराधियों का हुआ था अंधाकरण।
आरोप था कि कुछ की आंखों में क्रुद्ध जनता ने
‘गंगा जल’ (तेजाब) डाला तो बाकी काम पुलिस ने किया।
आपराधिक न्याय -व्यवस्था पर सवाल !
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--सुरेंद्र किशोर--
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चालीस साल पहले।
आज ही के दिन।
भागलपुर पूर्ण बंद रहा।
बंद का आह्वान व्यापारियों तथा शांतिप्रिय नागरिक समाज ने किया था।
बंद का कारण भी असामान्य था।
लोगबाग 32 कथित अपराधियों के अंधाकरण के आरोप में 15 पुलिस अफसरों के निलंबन के खिलाफ रोष प्रकट कर रहे थे।
तब मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अंधों के पक्ष व पुलिस अफसरों के खिलाफ अभियान चला रहा था।
मानवाधिकार संगठन तथा अदालत की सहानुभूति भी अंधों के पक्ष में थी।
किंतु खूंखार अपराधियों के अंधाकरण के आरोप में 15 पुलिस अफसरों के निलंबन के पक्ष में भागलुपर के लोग उद्वंलित थे।
आपराधिक न्यायिक व्यवस्था की विफलता का यह जीता-जागता सबूत था।
लोगबाग कह रहे थे कि बलात्कार का विरोध करने पर स्तन काट लेने वाले इन खूंखार अपराधियों के साथ किसी की सहानुभूति आखिर क्यों ?
ये अपराधी अपराध करके जेल जाते हैं।
थोड़े ही दिनों में जमानत पर छूट कर फिर जघन्य अपराधों में लग जाते हैं।
आपराधिक न्याय व्यवस्था ठीक करने की जवाबदेही आखिर किसकी है ?
याद रहे कि वही वक्त था जब बिहार में राजनीति के अपराधीकरण का बोलबाला बढ़ने लगा था।
1980 तक लगभग सारे प्रमुख दल बारी -बारी से सत्ता में आ चुके थे।
अपवादों को छोेड़कर चुनावी राजनीति से नैतिकता का लोप होने लगा था।
बड़े अपराधियों की छांह तले छोटे अपराधी पलने लगे थे ।
उन्हें अनेक छोटे -बड़े राजनेता संरक्षण दे रहे थे ताकि उनसे बूथ कब्जा करवा कर चुनाव जीता जा सके।
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--5 दिसंबर 20
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