सोमवार, 14 दिसंबर 2020

 संदर्भ--कृषि कानूनों के खिलाफ आंदेालन 

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मैं किसान भी हूं,

जरा मेरी व्यथा जानिए !

--सुरेंद्र किशोर

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मेरा परिवार एक मझोला किसान परिवार रहा है।

सारण जिले में प्रति व्यक्ति जमीन की उपलब्धता के हिसाब से 

हमारे पास अच्छी -खासी जमीन रही है।

सब पुश्तैनी है।

पर, हम कुल जमीन में से करीब एक तिहाई जमीन में ही  खेती कर पाते हैं।

आखिर क्यों ????

इसलिए कि खेती उन लोगों के घाटे का सौदा है जो मजदूरों पर निर्भर हैं।

मजदूर भी कम ही मिल पाते हैं।

क्योंकि बिहार सरकार से उन्हें तरह -तरह की सुविधाओं मिल जाती हैं।

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   हम चाहते हैं कि हमारी जमीन में कोई छोटा-मोटा उद्योग लगे।

  चूंकि हमारी सारी जमीन पक्की सड़क पर है,इसलिए वहां अस्पताल भी खुल सकता है।

कुछ जमीन स्टेट हाईवे स्थित बाजार पर है तो अन्य ग्रामीण सड़क पर। 

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मैंने पटना के एक बड़े डाॅक्टर साहब को संदेश भेजा।

दिघवारा से तीन किलोमीटर उत्तर स्टेट हाईवे पर अपने अस्पताल की शाखा खोलिएगा ?

सुना है कि उस स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे में परिणत करवाने के लिए स्थानीय संासद राजीव प्रताप रूडी भी सक्रिय हैं।

उधर केंद्रीय मंत्री गडकरी भी अपने विभाग में धुआंधार काम कर रहे हैं।

नेशनल हाईवे का बजट बढ़ रहा है।

  वैसे भी प्रस्तावित शेरपुर-दिघवारा गंगा पुल की गाड़ियों को दिघवारा-भेल्दी स्टेट हाईवे को भी संभालना पड़ेगा।

संभलेगा ?

नहीं।

नेशनल हाईवे की जरूरत पड़ेगी ही।

 कहावत भी है-

अमेरिका ने सड़कें बनाईं।

बाद में उन सड़कों ने अमेरिका को बना दिया।

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किंतु डाक्टर साहब ने कहा कि हम तो वहीं अस्पताल बनाएंगे जहां बगल में पुलिस स्टेशन हो।

  आपके यहां नहीं है।

ठीक है।

तो हम स्कूल,गोदाम,सोलर एनर्जी संयंत्र,एग्रो इंडस्ट्री आदि की राह देख रहे हैं।

  याद रहे कि मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने सार्वजनिक रूप से  कह दिया है कि दिघवारा से नयागंाव तक ‘न्यू पटना’ होगा।

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चूंकि जमीन लीज पर लेकर या खरीद कर स्कूल,सोलर एनर्जी गोदाम, अस्पताल या एग्रो इंडस्ट्री वहीे लगा सकते हैं जिनके पास पैसे हैं।

यह सब करने के लिए पैसे वालों की कितनी व कब रूचि जगेगी ?

पता नहीं।

हम तो इतना ही कर सकते हैं कि अपनी जमीन में फलदार वृक्ष लगवा दें।

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अन्यथा, कृषि कानूनों के लागू हुए बिना हमारी एक तिहाई जमीन से भी कम में ही खेती होती रहेगी !!!

क्या यह राष्ट्रीय क्षति नहीं मानी जाएगी ?

पर आंदोलनकारी किसानों को राष्ट्रीय क्षति से क्या मतलब !

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--सुरेंद्र किशोर-- 14 दिसंबर 20 


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