सांसद निधि पर हो सर्जिकल स्ट्राइक
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सांसद निधि उपयोग में गड़बड़ियां
तमाम प्रयासों के बावजूद दूर नहीं हो र्पाइं ।
इससे इसकी सार्थकता संदिग्ध हो गई है।
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--सुरेंद्र किशोर--
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केंद्र सरकार ने कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए सांसद क्षेत्र विकास निधि के तहत होने वाले कार्यों को दो साल के लिए बंद कर दिया है।
परंतु आने वाले समय में उसको इस मामले में कोई दो टूक निर्णय करना पड़ेगा।
यानी, इसे दोबारा शुरू किया जाए या हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए।
कई विवेकशील सांसदों,नेताओं तथा संस्थानों ने इसे हमेशा के लिए बंद कर देने के पक्ष में समय-समय पर अपनी राय दी हैं।
याद रहे कि इस निधि के उपयोग में गड़बड़ियां लाख कोशिशों के बावजूद दूर नहीं हो पा रही हैं।
इसके कारण राजनीति,राजनेता और सरकारी अधिकारियों की साख दिन प्रति दिन घटती जा रही है।
इसका दुष्परिणाम सरकार के अन्य कामों पर भी पड़ रहा है।
अपवादों को छोड़कर इससे अनाप-शनाप दामों पर चीजें खरीदी जा रही हैं।
हालांकि इसके व्यय को लेकर सरकार के दिशा-निदेश मौजूद हैं।
पर, जरूरत इसे कानूनी रूप रेखा प्रदान कराने की है।
अदालतें, कैग, कें्रदीय सूचना आयोग और पूर्ववर्ती योजना आयोग समय -समय पर सांसद निधि के दुरुपयोग के खिलाफ टिप्पणियां कर चुके हैं।
वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने तो 2007 में ही इसकी (इस सांसद फंड की) समाप्ति
की सिफारिश कर दी थी।
तब उसने कहा था कि सुशासन के लिए यह जरूरी है कि सांसद निधि को पूरी तरह बंद कर दिया जाए।
हालांकि इसके बावजूद लोक लेखा समिति के तत्कालीन प्रमुख और कांग्रेस नेता के.वी.थाॅमस ने कहा था कि कई दलों के तमाम सांसद यह चाहते हैं कि सांसद निधि की सालाना राशि को पांच करोड़ रुपए से बढ़ाकर 50 करोड़ रुपए कर दिया जाए।
शुक्र है कि ऐसा कुछ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने तो नहीं होने दिया ,ंिकतु इस निधि को समाप्त करने की मांग अभी पूरी नहीं हुई है।
हां, इस बीच इसके भविष्य पर विचार -विमर्श के लिए एक उच्चस्तरीय समिति जरूर बना दी गई है।
वैसे राजनीतिक हलकों में आम धरणा यह है कि अधिकतर सांसद इसे समाप्त करने के सख्त खिलाफ हैं।
जो सांसद गण इस निधि को लेकर अपनी बदनामी से बचना चाहते हैं,वे विश्व विद्यालय या फिर किन्हीं प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं को एकमुश्त राशि दे देते हैं।
आने वाले दिनों में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी संभवतः
इस निधि को लेकर कोई कड़ा कदम उठाना चाहेंगे।
क्योंकि वह इसके दुरुपयोग या फिर कम उपयोग की खबरों से अनभिज्ञ नहीं हैं।
साथ ही, वे राजनीति और प्रशासन में शुचिता लाने के लिए दिन -रात प्रयत्नशील भी हैं।
अब जरा इस निधि के इस्तेमाल को लेकर आए दिन मिल रही शिकायतों के बारे में विचार करें।
इस निधि को लेकर केंद्र सरकार ने एक नोडल एजंेंसी बना रखी है।
इसका काम राज्य व जिला स्तर पर समन्वय बनाए रखना है।
जांच से पता चला है कि आमतौर पर कोई समन्वय नहीं हो पाता।अपवादों की बात और है।
सांसद निधि के खर्चे की जब कैग ने जांच की तो उसे 90 प्रतिशत योजनाओं के कार्यों में अनियमितता नजर आई।
तत्कालीन योजना आयोग ने 2001 में ही कह दिया था कि
इस निधि के खर्चे की निगरानी का काम बहुत कमजोर है।
लोक लेखा समिति ने सन 2012 में कहा कि जितनी निधि उपलब्ध रहती है ,उसकी आधी ही खर्च हो पाती है।
खर्चे का हिसाब एवं प्रगति रिपोर्ट भी समय पर उपलब्ध नहीं होती।
इनमें पारदर्शिता का अभाव है।
याद रहे कि सांसद निधि में कमीशन लेने के कारण एक राज्य सभा सदस्य की सदस्यता तक जा चुकी है।
इसके अलावा विधायक निधि मंजूर करने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में बिहार के एक विधायक के खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र भी दाखिल किया जा चुका हैं
इन छिटपुट मामलों को छोेड़ भी दें तो सांसद -विधायक निधि को लेकर जो आम चर्चाएं होती रहती हैं,वे स्वस्थ प्रशासन के लिए बहुत चिंता पैदा करती हैं।
ऐसे में सवाल है कि जिस निधि में भ्रष्टाचार की आम चर्चा होती है,उसे रोकने के लिए जन प्रतिनिधि सामूहिक रूप से आवाज क्यों नहीं उठाते ?
विडंबना यह है कि कुछ बड़े नेता जब विपक्ष में रहते हैं तब तो वे इस निधि के खिलाफ खूब बोलते हैं।
किंतु सत्ता में आने पर उनका रुख ही अलग हो जाता है।
पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं।
सांसद निधि की शुरुआत 1993 में तत्कालीन प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव ने की थी।
उन्होंने इसकी सालाना राशि एक करोड़ रुपए रखी थी।
यह जब हो रहा था ,तब राव सरकार के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह विदेश दौरे पर थे।
बाद में उन्होंने (मनमोहन सिंह ने)कहा कि यदि मैं तब देश में होता तो इस सांसद क्षेत्र विकास योजना की शुरुआत ही नहीं होने देता।
याद रहे कि सांसद निधि से मिले चंदे का इस्तेमाल अनेक सांसद गण सियासी खर्चे पर करते हैं।
कुछ अन्य सांसद उसका उपयोग कुछ और काम में भी करते हैं।
मन मोहन सिंह ने तो उस समय सांसद निधि का विरोध किया,किंतु जब खुद प्रधान मंत्री बने तो उन्होंने इसकी राशि दो करोड़ से बढ़ाकर सालाना पांच करोड़ रुपए कर दी।
बहरहाल असल फैसला नरेंद्र मोदी को तब करना होगा जब निधि स्थगन के दो साल की अवधि पूरी हो जाएगी।
हालांकि एक बात तो तय है कि सांसद निधि की राशि नहीं बढ़ेगी,परंतु शासन में शुचिता लाने के लिए इसको पूरी तरह समाप्त करने का काम होगा या नहीं ?
तब तक यह यक्ष प्रश्न कायम रहेगा ।
वैसे देश के तमाम विवेकशील लोगों की यह राय है कि नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार की पर्याय बनी सांसद निधि पर जरूर सर्जिकल स्ट्राइक करेंगे।
इससे शासन में शुचिता लाने के मोदी के प्रयास को भारी बल मिल जाएगा।
साथ ही, सरकारी खजाने को भी राहत मिलेगी।
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दैनिक जागरण,15 दिसंबर 20
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