सजायाफ्ता नेताओं के चुनाव लड़ने
पर केंद्र सरकार का रुख सही नहीं
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केंद्र सरकार ने हाल में सुप्रीम कोर्ट से कहा कि
वह सजायाफ्ता नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध के हक में नहीं है।
यानी, सजा मिलने के बावजूद चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध नहीं लगेगा।
इस मामले में सरकारी कर्मचारियों की बात अलग है।
सजा पूरी होने के छह साल बाद वह चुनाव लड़ सकता है।
मेरी समझ से केंद्र सरकार का यह रुख उसकी अदूरदर्शिता का परिचायक है।
उसे आने वाले समय में अपने इस स्टैंड पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
जब ऐसे -ऐसे लोग भी इस देश में लोस-विस का चुनाव लड़ रहे हैं जो हथियारों के बल पर इस देश की सत्ता पर कब्जा करना चाहते हैं तो वे विधायिका में घुस कर किसी दिन उसे विस्फोटकों से उड़ा भी सकते हैं।
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कोई सजायाफ्ता व्यक्ति सरकारी नौकरी में नहीं रह सकता।
किंतु इस देश में सजायाफ्ता नेता सजा पूरी होने के छह
साल के बाद सांसद या विधायक बन सकता है।
इसी विरोधाभास को समाप्त करने के लिए वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में लोकहित याचिका दायर की है।
उस पर केंद्र सरकार का रुख मेरी समझ से सही नहीं है।
यदि इसी रुख पर कायम रहना है तो सरकारी कर्मचारियों को भी यही सुविधा मिले।
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--सुरेंद्र किशोर-
7 दिसंबर 20
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