गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

    मर्ज गहरा ,दवा बेअसर

   कौन करेगा भ्रष्टाचार को पराजित ?!!

    ....................................

    --सुरेंद्र किशोर --

     .......................................

हाल में दिल्ली के एक जानकार व्यक्ति से मैंने पूछा कि 

एक ईमानदार प्रधान मंत्री के रहते हुए भी केंद्र सरकार के अधिकतर दफ्तरों में इतना अधिक भ्रष्टाचार अब भी क्यों जारी हैं ?

उन्होंने कहा कि जब भी किसी भ्रष्ट कर्मचारी या अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई शुरू होती है तो तुरंत उस दोषी की जाति  के प्रभावशाली लोग सरकार पर भीषण दबाव शुरू कर देते हैं।

कहने लगते हैं कि हमारी जाति के साथ भारी अन्याय हो रहा है।

  कार्रवाई करने की जिम्मेवारी जिन पर है,अधिकतर मामलों में वे दबाव में आ जाते हैं।

...............................

  बिहार में भी यह देखा जाता है कि भ्रष्टाचार के आरोप में अफसरों -कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई तो शुरू जरूर होती है,किंतु उनमें से अधिकतर मामलों में कार्रवाई तार्किक परिणति तक पहुंचती है या नहीं ,यह कम ही लोग जान पाते हैं।

  आम लोग रोज ब रोज भ्रष्टाचार से पीड़ित होते रहते हैं।

भ्रष्ट कर्मी नए -नए तरीके ढूंढ़ते रहते हैं।

हाल में पता चला कि पटना में ट्रैफिक नियम भंजकों से रिश्वत वसूलने के लिए पुलिस ने बगल की मिठाई दुकान को अपना घूस काउंटर बना रखा था।

............................

   पटना में अतिक्रमण हटाने का काम जरूर होता है,पर हटाने के कुछ ही घंटे बाद फिर वहां अतिक्रमण हो जाता है।

कहते हैं कि अतिक्रमण से भारी कमाई करने वाले सरकारी व गैर सरकारी लोग इतने ताकतवर हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ता।

.....................................

  दरअसल भ्रष्टाचार की जकड़न इतनी मजबूत है कि कार्रवाइयां कारगर नहीं हो पाती । 

कांग्रेसी राज के भ्रष्टाचार का तो कहना ही क्या !

पर 1977 में बिहार में जनता सरकार बनी तो उम्मीद जगी कि फर्क पड़ेगा।

  फर्क पड़ा भी ,पर उम्मीद से काफी कम।

उस समय के मुख्य सचिव पी.एस.अप्पू का 23 अप्रैल, 2005 के प्रभात खबर में संस्मरणात्मक लेख छपा था।

  उस लेख में अप्पू ने कर्पूरी ठाकुर मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों के बारे में लिखा ‘‘......मंत्री वैसे अफसरों (खासकर आई.ए.एस.अफसरों ) की ताक में रहते थे ,जो या तो उनकी जाति का हो या फिर उनकी हर वाजिब -गैर वाजिब मांग को पूरा करने में किसी तरह ना-नुकुर न करे।

मंत्रियों द्वारा प्रायः दक्ष और बेहतर रिकार्ड वाले अफसरों की अनदेखी कर दी जाती थी।

भ्रष्ट व अकुशल अफसरों को पसंद किया जाता था।...’’

(--प्रभात खबर-23 अप्रैल 2005)


कोई टिप्पणी नहीं: