गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

एक कहानी कदाचारमुक्त परीक्षा की 
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   लोक हित याचिका पर 1996 में पटना हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.पी.बाधवा और न्यायमूत्र्ति बी.एन.अग्रवाल की खंड  पीठ ने यह आदेश दिया कि जिलाधिकारी और प्रमंडलीय आयुक्त राज्य में कदाचारमुक्त परीक्षाएं आयोजित कराने के लिए जिम्मेदार होंगे।साथ ही, हाई कोर्ट ने जिला न्यायाधीशों को परीक्षा की निगरानी की जिम्मेदारी दी। 
  इस आदेश के तहत सन् 1996 में बिहार में मैट्रिक और इंटर की सचमुच कदाचारमुक्त परीक्षाएं हुईं।जिलाधिकारी और एस.पी. भी कोई ढिलाई नहीं कर सके क्योंकि जिला न्यायाधीश भी  परीक्षाओं की निगरानी कर रहे थे।
  इस तरह हुई  कदाचारमुक्त परीक्षा की  सर्वत्र तारीफ हुई।
यहां तक कि तत्कालीन शिक्षा मंत्री जय प्रकाश नारायण यादव ने परीक्षा फल आने के बाद 4 जून 1996 को मीडिया को बताया कि ‘मैट्रिक और इंटर परीक्षाओं के परिणाम से यह जाहिर हो गया है कि बिहार में शिक्षा माफियाओं के पांव उखड़ गए हैं।फर्जी शिक्षण संस्थान अब स्वतः बंद हो जाएंगे।’
  पर शिक्षा माफियाओं के पांव उखाड़ना इतना आसान काम नहीं था।वे आखिरकार विजयी रहे और अगले साल से दोगुने उत्साह से वे कदाचारयुक्त परीक्षाओं को आयोजित कराने के काम मंे फिर लग गए।
   पिछले साल बिहार सरकार ने कदाचारमुक्त परीक्षा आयोजित करने की भरपूर कोशिश की।
फिर भी सरकार को आंशिक सफलता ही मिल सकी।
  यदि 1996 की तरह एक  बार फिर पटना हाई कोर्ट जिला जज की निगरानी में परीक्षाएं आयोजित करने का आदेश दे तो 1996 जैसी सफलता मिल सकती हैं।ऐसा हुआ तो  राज्य की अगली पीढि़यां बर्बाद होने से बचेंगी।ध्यान रहे कि हाई कोर्ट तभी आदेश देगा जब कोई लोकहित याचिका दायर करे।
@ संदर्भ......6 फरवरी 2018 से बिहार में इंटर की परीक्षा होने जा रही है@

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