एक बार कर्पूरी ठाकुर ने पटना के एक पैसे वाले को फोन किया, ‘ ........ जी, पार्टी के लिए कुछ पैसों की जरूरत है।
मैं आ रहा हूंं।तैयार रखिएगा।’
उसने कहा कि ‘ठीक है ठाकुर जी ।’
फिर एक रिक्शे पर सवार होकर अपने एक सहयोगी के साथ पूर्व मुख्य मंत्री कर्पूरी जी वहां गए।यहां मैं पूर्व मुख्य मंत्री शब्द जान बूझकर लिख रहा हूंं।
उसने पूछा कि ‘मुझे कितना करना होगा ?’
कर्पूरी जी ने कहा कि ‘यदि आप पांच हजार दे देंगे तो हमारा काम चल जाएगा।’ बोलते समय कर्पूरी जी ने पांच हजार शब्द पर इतना जोर डाला था जैसे वह पांच लाख हो !
उसने तुरंत लाकर दे दिया।
कर्पूरी जी जब वहां से निकलने लगे तो उस व्यक्ति ने उनके सहयोगी को अलग हटा कर कहा कि ‘ कैसे हैं आपके नेता जी ! मैंने तो 50 हजार तैयार रखा था।
लौटते समय सहयोगी ने रिक्शे पर उनसे कहा कि पार्टी को पैसे की इतनी दिक्कत है और आपने उससे सिर्फ पांच हजार मांगा ? वह तो 50 देने को तैयार था।
इस पर कर्पूरी जी कहा कि ‘.........जी, 5 हजार चंदा होता है और 50 हजार घूस। क्या मुझे एडवांस घूस वसूलते फिरना चाहिए ?’ बेचारा सहयोगी चुप हो गया।ऐसे थे कर्पूरी जी ।
उनकी यह ईमानदारी उन्हें एक बार उप मुख्य मंत्री और दो बार मुख्य मंत्री बनाने के काम में बाधक तो नहीं बनी।किसी मजबूत जातीय वोट बैंक के अभाव में भी वे सिर्फ एक अपवाद को छोड़ कर 1952 से लगातार चुनाव जीतते गए।
और इधर आज के अधिकतर नेताओं को देखिए !
ऐसा नहीं है कि कर्पूरी जी के जमाने में काले धन के बल पर राजनीति करने वाले नहीं थे।ऐसा भी नहीं है कि आज ईमानदार नेता नहीं हैं।
पर पहले बेईमान कम थे और आज ईमानदार कम हैं।इस अनुपात को बदलना चाहिए।
सत्तर के दशक में बिहार में हुए एक लोक सभा उप चुनाव में सत्ताधारी उम्मीदवार ने 32 लाख रुपए खर्च किए थे।
एक अन्य नेता बीच के कुछ वर्षों को छोड़कर आजादी के बाद से 1966 तक लगातार मंत्री रहे।उनके बैंक खाते में 1946 में 600 रुपए थे। 1966 में बढ़कर 6 लाख हो गये।
साथ ही उन्होंने राज्य में 12 प्लाॅट और मकान अर्जित किए।
आज भी इस देश में ऐेसे सत्ताधारी नेता मौजूद हैं जो नाजायज तरीके से अपनी निजी संपत्ति नहीं बढ़ाते।
उनका भी काम चल ही रहा है।
यह सब लिखने का उद्देश्य यह है कि राजनीति कर रहे लोग ऐसा न समझें कि वे बिना अपार नाजायज धन के सफलता नहीं हासिल कर सकते।
कर सकते हैं।इसलिए ईमानदारी से रहें।जनता की सेवा करें।लोगों का मन जीतें।सराहना पाएं।इससे आपके वंशजों को भी लोग इज्जत की नजर से देखेंगे।
राज्य व देश से गरीबी कम करने में मदद करें।कम नहीं होगी तो उससे आने वाले दिनों में अन्य अनेक भीषण समस्याएं पैदा होंगी।उससे आपके वंशज भी चैन से नहीं जी पाएंगे।
बेईमानी छोड़ें, ईमानदारी अंगीकार करें।अन्यथा अंततः क्या होगा, उसकी भी कल्पना कर लें !
यदि इस देश के पक्ष -विपक्ष के नेता ईमानदार होंगे तो अफसर, व्यापारी तथा अन्य लोग भी ईमानदार होने पर मजबूर हो जाएंगे।
सवार ठीक रहेगा तो घोड़ा भी ठीक से दौड़ेगा।
@ 1 फरवरी 2018@
मैं आ रहा हूंं।तैयार रखिएगा।’
उसने कहा कि ‘ठीक है ठाकुर जी ।’
फिर एक रिक्शे पर सवार होकर अपने एक सहयोगी के साथ पूर्व मुख्य मंत्री कर्पूरी जी वहां गए।यहां मैं पूर्व मुख्य मंत्री शब्द जान बूझकर लिख रहा हूंं।
उसने पूछा कि ‘मुझे कितना करना होगा ?’
कर्पूरी जी ने कहा कि ‘यदि आप पांच हजार दे देंगे तो हमारा काम चल जाएगा।’ बोलते समय कर्पूरी जी ने पांच हजार शब्द पर इतना जोर डाला था जैसे वह पांच लाख हो !
उसने तुरंत लाकर दे दिया।
कर्पूरी जी जब वहां से निकलने लगे तो उस व्यक्ति ने उनके सहयोगी को अलग हटा कर कहा कि ‘ कैसे हैं आपके नेता जी ! मैंने तो 50 हजार तैयार रखा था।
लौटते समय सहयोगी ने रिक्शे पर उनसे कहा कि पार्टी को पैसे की इतनी दिक्कत है और आपने उससे सिर्फ पांच हजार मांगा ? वह तो 50 देने को तैयार था।
इस पर कर्पूरी जी कहा कि ‘.........जी, 5 हजार चंदा होता है और 50 हजार घूस। क्या मुझे एडवांस घूस वसूलते फिरना चाहिए ?’ बेचारा सहयोगी चुप हो गया।ऐसे थे कर्पूरी जी ।
उनकी यह ईमानदारी उन्हें एक बार उप मुख्य मंत्री और दो बार मुख्य मंत्री बनाने के काम में बाधक तो नहीं बनी।किसी मजबूत जातीय वोट बैंक के अभाव में भी वे सिर्फ एक अपवाद को छोड़ कर 1952 से लगातार चुनाव जीतते गए।
और इधर आज के अधिकतर नेताओं को देखिए !
ऐसा नहीं है कि कर्पूरी जी के जमाने में काले धन के बल पर राजनीति करने वाले नहीं थे।ऐसा भी नहीं है कि आज ईमानदार नेता नहीं हैं।
पर पहले बेईमान कम थे और आज ईमानदार कम हैं।इस अनुपात को बदलना चाहिए।
सत्तर के दशक में बिहार में हुए एक लोक सभा उप चुनाव में सत्ताधारी उम्मीदवार ने 32 लाख रुपए खर्च किए थे।
एक अन्य नेता बीच के कुछ वर्षों को छोड़कर आजादी के बाद से 1966 तक लगातार मंत्री रहे।उनके बैंक खाते में 1946 में 600 रुपए थे। 1966 में बढ़कर 6 लाख हो गये।
साथ ही उन्होंने राज्य में 12 प्लाॅट और मकान अर्जित किए।
आज भी इस देश में ऐेसे सत्ताधारी नेता मौजूद हैं जो नाजायज तरीके से अपनी निजी संपत्ति नहीं बढ़ाते।
उनका भी काम चल ही रहा है।
यह सब लिखने का उद्देश्य यह है कि राजनीति कर रहे लोग ऐसा न समझें कि वे बिना अपार नाजायज धन के सफलता नहीं हासिल कर सकते।
कर सकते हैं।इसलिए ईमानदारी से रहें।जनता की सेवा करें।लोगों का मन जीतें।सराहना पाएं।इससे आपके वंशजों को भी लोग इज्जत की नजर से देखेंगे।
राज्य व देश से गरीबी कम करने में मदद करें।कम नहीं होगी तो उससे आने वाले दिनों में अन्य अनेक भीषण समस्याएं पैदा होंगी।उससे आपके वंशज भी चैन से नहीं जी पाएंगे।
बेईमानी छोड़ें, ईमानदारी अंगीकार करें।अन्यथा अंततः क्या होगा, उसकी भी कल्पना कर लें !
यदि इस देश के पक्ष -विपक्ष के नेता ईमानदार होंगे तो अफसर, व्यापारी तथा अन्य लोग भी ईमानदार होने पर मजबूर हो जाएंगे।
सवार ठीक रहेगा तो घोड़ा भी ठीक से दौड़ेगा।
@ 1 फरवरी 2018@
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