बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

जब वी.सी.डा.जाकिर हुसेन जामिया मिलिया के गेट पर बैठ गए थे छात्रों के बूट पालिश करने


   
डा.जाकिर हुसेन जब वाइस चांसलर थे तो वे एक दिन जामिया मिलिया के गेट पर ब्रश और बुट पालिश  लेकर बैठ गए।
वे आने -जाने वाले छात्रों के जूते पालिश करने लगे।
कुछ देर तक  उन्होंने किया।फिर  तो छात्र शर्मिंदा हो गए। और उनलोगों ने अपने वी.सी. से माफी मांगी।
  उससे पहले शिक्षा विद् डा.जाकिर हुसेन ने कई बार अपने छात्रों से कहा था कि वे साफ-सुथरे कपड़े पहन कर पढ़ने आएं ।जूते भी ठीक से पालिश  किए होने चाहिए।
 पर जब छात्रों ने इस पर  ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने गांधीवादी तरीका अपनाया और उसका भारी असर पड़ा।
  एक बार जामिया मिलिया की सभा में अर्थशास्त्र में पीएच.डी.जाकिर हुसेन ने कहा था कि ‘मैं चााहता हूं कि जो लड़के और लड़कियां यहां से शिक्षा प्राप्त करके जाएं, वे अध्यापक बनें।सबसे पहले उसी की कोशिश होनी चाहिए।
आप कामयाब अध्यापक बन कर देश की सेवा करें।’
  शिक्षा से गहरे लगाव रखने वाले जाकिर साहब को गांधी जी ने 1937 में शिक्षा के राष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष बनाया था ।उसकी स्थापना गांधीवादी पाठ्यक्रम बनाने के लिए हुई थी।
  बुनियादी विद्यालयों की नींव डालनी थी।
 डा.जाकिर हुसेन इस देश के तीसरे सम्मानित राष्ट्रपति थे।वे भारत रत्न से भी सम्मानित किए गए।पर,उनका सिर्फ यही एक परिचय नहीं है।
 जाकिर साहब 23 वर्ष की उम्र में ही जामिया मिलिया के स्थापना दल के सदस्य बने।सन 1969 में निधन के बाद उन्हें उसी परिसर में दफनाया गया जहां वे 1926 से 1948 तक वाइस चांसलर थे।
विनोदप्रिय, विनम्र और मृदुभाषी जाकिर साहब का जन्म 8 फरवरी , 1897 को हैदरा बाद में हुआ था।
उनके पिता हैदराबाद में वकालत करते थे । साथ में कानून की पत्रिका ‘आइने  दक्कन’ का संपादन भी।
उनके पूर्वज अफगान के बहादुर सैनिक थे।
पर जाकिर साहब के  पिता फिदा हुसेन खान ने परंपरा तोड़ कर वकालत शुरू की।
जाकिर हुसेन नौ साल के ही थे कि उनके पिता गुजर गए।
उनका परिवार 1907 में इटावा पहुंच गया।
जाकिर साहब ने अपने तीन भाइयों के साथ इस्लामिया हाई स्कूल में शिक्षा ग्रहण की।अलीगढ़ विश्व विद्यालय से अर्थशास़्त्र में एम.ए.करने के बाद 
जाकिर साहब 1923 में जर्मनी चले गये।बर्लिन विश्व विद्यालय से उन्होंने पीएच.डी.की।बाद में जाकिर साहब 1948 में  अली गढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय के भी वी.सी.बने।वे सन 1956 तक उस पद पर रहे।
अलीगढ़ विश्व विद्यालय पहले मोहमडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज कहा जाता था जब जाकिर साहब वहां छात्र थे।तभी
एक बार गांधी जी ने वहां छात्रों-अध्यापकों को संबोधित किया था।गांधी जी ने कहा था कि भारतीयों को ऐसी शिक्षा संस्थाओं  का बहिष्कार करना चाहिए जिन पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण है।
इसका असर जाकिर हुसेन पर भी पड़ा।
बुनियादी शिक्षा की जो कल्पना गांधी की थी,उसका क्र्रमिक विकास जाकिर हुसेन ने किया।जामिया मिलिया को उन्होंने इसका एक नमूना बनाया था।
सन 1967 मेें राष्ट्रपति बनने के बाद डा.हुसेन ने कहा कि देशवासियों ने इतना बड़ा सम्मान उस व्यक्ति को दिया है जिसका राष्ट्रीय शिक्षा से 47 वर्षों तक संबंध रहा।
मैंने अपना जीवन गांधी जी के चरणों में बैठकर शुरू किया जो मेरे गुरू और प्रेरक थे।
  कम ही लोग जानते होंगे कि जाकिर साहब  बच्चों की कहानियां भी लिखते थे।
उन्होंने प्लेटो की  प्रसिद्ध पुस्तक रिपब्लिक का भी उर्दू अनुवाद किया था।
अपने अंतिम समय में वे रिपब्लिक का हिंदी में अनुवाद करवा रहे थे।उनके अनुवाद पर तब एक विद्वान ने टिप्पणी की थी कि यदि खुद प्लेटो को उर्दू में रिपब्लिक लिखनी होती तो वे भी वैसे ही लिखते जैसा जाकिर साहब ने अनुवाद किया है।
उनकी चित्रकला, नाटक तथा कुछ अन्य विधाओं में भी गहरी रूचि थी।किंतु इन बातों का अधिक प्रचार नहीं हो सका।
वे सन 1957 में बिहार के राज्यपाल बने।
1962 तक राज्यपाल रहे।
सन 1962 में उप राष्ट्रपति बने जब राष्ट्रपति डा.एस.राधाकृष्णन थे।
सन 1967 में राष्ट्रपति बने।पर 3 मई 1969 को  उनका निधन हो गया।
  खुर्शीद आलम खान जाकिर हुसेन के दामाद थे।
कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद, खुर्शीद आलम खान के पुत्र हंै।
  जाकिर हुसेन अपने दामाद को हर ईद पर ईदी के रूप् में एक छोटी रकम देते थे।
एक बार उनसे कहा गया कि महंगाई बढ़ रही है,ईदी बढ़ा दीजिए।
इस पर जाकिर साहब ने कहा कि मैं तो  इतना ही दूंगा। 

   @--सुरेंद्र किशोर, फस्र्टपोस्टहिंदी@       

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