बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

सी.पी.एम. 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस से तालमेल 
नहीं करेगी।पार्टी की केंद्रीय कमेटी ने रविवार को इस बारे में बहुमत से यह निर्णय  किया।
 मेरी समझ से सी.पी.एम. का यह निर्णय सही है।
उसे तो पूरे देश में सिर्फ वाम दलों के साथ मिल कर चुनाव लड़ा चाहिए और जन संघर्ष चलाना चाहिए।
  सी.पी.एम. के पास अब भी किसी भी अन्य दल से अधिक ईमानदार कार्यकत्र्ता और नेता हैं।लगातार सत्ता में रहने के कारण पार्टी काॅडर में कुछ भटकाव जरूर आया है,पर उसे दुरूस्त कर लेने की गुंजाइश इस पार्टी में अधिक है।
 जिन दलों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं,उन  दलों के साथ मिल कर भाजपा को रोकने की सी.पी.एम.की रणनीति फेल कर चुकी है।
यदि वह सचमुच भाजपा को कमजोर करना चाहती है कि उसे अपना ‘अंतरराष्ट्रीयतावाद’ छोड़ कर राष्ट्र हित में सोचना होगा।
सामाजिक न्याय की जरूरत उसे समझनी होगी और मुस्लिम तुष्टिकरण का त्याग करना होगा।क्योंकि इस काम में ममता बनर्जी जैसी गैर जिम्मेदार नेता आगे निकल जाती हंै।
मुस्लिम तुष्टिकरण से मेरा मतलब है मुसलमानों के बीच के अतिवादी तत्वों का तुष्टिकरण।
 सी.पी.एम. आम मुसलमानों की बेहतरी के लिए अधिक काम करे।सच्चर कमेटी की रपट को ध्यान में रखे।
देश के जिन इलाकों में मुस्लिम अल्प संख्या में हैं उनकी सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहे।उन्हें हिन्दुओं के बीच के अतिवादी तत्वों से बचाए।यही काम वह देश के उन इलाकों में भी करे जहां मुस्लिम बहुसंख्या में हैं ।
 खबर आती रहती है कि वैसे इलाकों में वे सरस्वती पूजा और दुर्गापूजा तक नहीं होने देते। 
 कई साल पहले इंडियन एक्सप्रेस में मैंने एक रपट पढ़ी थी।तब पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार थी।रपट अल्पसंख्यक कल्याण के लिए केंद्र सरकार से मिले फंड के खर्चे का तुलनात्मक विवरण था।
 मोदी की गुजरात सरकार ने उस फंड का पूरा इस्तेमाल किया था।पर वाम सरकार तब पीछे रह गयी थी।  

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