बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

 बिहार सरकार की अपनी खुद की आय इन दिनों करीब 30 हजार करोड़ रुपए से अधिक है।
यदि 2001-02 में राज्य सरकार टैक्स के रूप में 8 हजार करोड़ रुपए भी जुटा रही होती तो मेरा अपना परिवार नहीं बिखरता।
 पर 2001- 02 में राज्य सरकार की अपनी आय सिर्फ करीब  2 हजार करोड़ रुपए थी।
 इतने कम पैसों से न तो जरूरी विकास हो सकता था  और न ही सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन देना संभव था।
जब मेरे भाई और भतीजे को ,जो सरकारी सेवक थे, कई -कई महीने देर से वेतन मिलने लगा तो उन दोनों ने अपने लिए झारखंड राज्य का चयन कर लिया।सन 2000 में बिहार का बंटवारा हुआ था।
मैंने जब उन्हें मना किया तो उन्होंने कहा कि क्या आप चाहते हैं कि हमलोगों को पेंशन भी नसीब न हो ?
उन्हीं दिनों आंध्र प्रदेश सरकार को बिक्री कर से करीब छह हजार करोड़ रुपए मिलते थे।पर तब बिहार में तो टैक्स चोरों की भी चांदी थी।
एक हद तक चांदी तो अब भी है,पर  जरूरी खर्चे व विकास के लिए पहले की अपेक्षा बिहार सरकार के पास पर्याप्त  धन उपलब्ध हैं।
  यदि तब आज जैसी सरकार बिहार में होती तो हमारा अविभाजित परिवार एक साथ ही रहता।सब एक -दूसरे के दुःख-सुख में शामिल होते।अब तो देखा-देखी भी यदा -कदा ही हो पाती है। 
आज मेरे परिवार के करीब आधे सदस्य रांची में हैं और बाकी हम लोग पटना और गांव में।
  सरकार का काम प्रकृति की तरह का ही होता है।गर्मी के कारण पानी वाष्प बनकर आकाश में पहुंचता  है। बरसात में वाष्प पानी बन कर तपती जमीन को ठंडक पहुंचाता है।उससे फसलें लहलहाती भी हैं।
 इसी तरह सरकार का भी काम है  कि जिनके यहां टैक्स देय है,उनसे कड़ाई से टैक्स वसूलो।फिर वे पैसे जरूरतमंद जनता के बीच उदारतापूर्वक खर्च करो।


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