गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

अररिया लोक सभा उप चुनाव नतीजे से तय होगी बिहार की अगली राजनीति की दशा-दिशा



           
अररिया लोक सभा उप चुनाव नतीजा बिहार की राजनीति की दशा-दिशा लगभग तय कर देगा।
 वहां 11 मार्च को उप चुनाव होगा।राजद के मोहम्मद तसलीमुद्दीन के निधन के कारण यह सीट खाली हुई है।उसके साथ उसी दिन दक्षिण बिहार के दो विधान सभा चुनाव क्षेत्रों में भी उप चुनाव होने हैं।वे क्षेत्र हैं जहानाबाद और भभुआ।ये सीटें भी जिला मुख्यालय की हैं।
  ये उप चुनाव बिहार में राजनीतिक समीकरण बदलने के बाद हो रहे हैं।गत साल जदयू ने लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले राजद का साथ छोड़कर 
राजग का दामन थाम लिया था।
 इस बीच लालू प्रसाद दूसरी बार चारा घोटाले में सजा पाकर जेल चले गए हैं।यानी, लालू प्रसाद चुनाव प्रचार के लिए उपलब्ध नहीं हैं।उनकी जगह उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने  कमान संभाल ली है।वे बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता भी हैं।
राजद ने इस बार भी यह दावा किया है कि लालू प्रसाद के जेल  जाने के बाद आम जनता में राजद के प्रति समर्थन बढ़ा है।
सन् 2013 में जब लालू प्रसाद को चारा घोटाले के ही एक अन्य केस में सजा हुई थी तो राजद ने तब भी कहा था कि सहानुभूति के कारण बिहार में राजद लोक सभा की सभी 40 सीटें जीतेगा।
पर उसे 2014 के लोक सभा चुनाव में सिर्फ 4 सीटें मिलीं।देखना है कि इस बार राजद के लिए यह चुनाव  कैसा रहता है। 
 उप चुनाव नतीजे उस दावे की असलियत बता देंगे।
 याद रहे कि 2015 के  बिहार विधान सभा चुनाव के समय जदयू राजद के साथ था।
अब जदयू भाजपा के साथ है।सन 2014 के लोक सभा चुनाव में  तीनों दल अलग -अलग चुनाव लड़े थे।
दलीय समीकरण में आए बदलाव का सरजमीन पर कैसा असर पड़ा है ? उप चुनाव नतीजे इस सवाल का भी जवब दे दंेगे।
वैसे राजद ने जब सन 2010 में लोजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो उसे बिहार विधान सभा की कुल 243 सीटों में से सिर्फ 23 सीटें मिली थीं।लोजपा की 2 सीटें मिलीं।इन  ताजा उप चुनावों में राजद के साथ कांग्रेस है।भभुआ सीट पर कांग्रेस लड़ेगी।भभुआ कांग्रेस के आधार वोट वाली सीट मानी जाती है।
भाजपा के साथ तो जदयू है।लोजपा जैसे कुछ अन्य सहयोगी दल भी राजग में हैं।
सन 2014 के लोक सभा के चुनाव में अररिया में राजद के मोहम्मद तसलीमुद्दीन को कड़े़ मुकाबले में करीब 4 लाख 7 हजार  मत मिले थे।
भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह को करीब 2 लाख 61  हजार और जदयू के विजय कुमार मंडल को करीब 2 लाख 21 हजार वोट मिले थे।
 इस बार अररिया में राजद और भाजपा के बीच  सीधा मुकाबला होगा।जदयू भाजपा का समर्थन कर रहा है।
 पिछले लोक सभा चुनाव में अररिया में प्रमुुख उम्मीदवारों को  मिले मतों को
ध्यान में रखें तो राजद के लिए यह सीट जीतना इस बार कठिन होगा।
पर इसके साथ कुछ अन्य तत्व भी चुनाव में काम कर सकते हैं।
लालू प्रसाद के परिवार की कानूनी परेशानियों से मतदाता कितने द्रवित होते हैं,यह देखना दिलचस्प होगा।या फिर उसका कोई असर नहीं पड़ता है ! यदि असर नहीं पड़ेगा तो राजद का राजनीतिक भविष्य अनिश्चित हो सकता है।
साथ ही केंद्र सरकार की उपलब्धियां भी कसौटी पर होंगी।
ताजा बैंक घोटाले को मतदाताओं ने किस रूप में लिया है ?
इस सवाल का भी जवाब इस उप चुनाव में मिल सकता है।  
तसलीमुद्दीन के पुत्र सरफराज आलम हाल तक जदयू के विधायक थे।उन्होंने अररिया लोक सभा उप चुनाव लड़ने के लिए विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
अब वे राजद में हैं।आलम अररिया जिले के ही जोकीहाट विधान सभा क्षेत्र से विधायक थे।वे अररिया में राजद उम्मीदवार हैं।
 पिता के निधन के बाद पुत्र के पक्ष में सहानुभूति मत कितना मिलता है,यह देखना भी दिलचस्प होगा। 
  तसलीमुददीन दबंग नेता थे।प्रधान मंत्री एच.डी.देवगौड़ा के कार्यकाल में तसलीमुददीन गृह राज्य मंत्री बनाये गए थे।
पर विवादास्पद परिस्थितियों में उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
तसलीमुददीन  आठ बार विधायक और 5 बार सांसद थे।  
   दक्षिण बिहार के जहानाबाद से राजद विधायक मुन्द्रिका सिंह यादव के निधन के कारण वह विधान सभा  सीट खाली हुई ।
वहां राजद और राजग के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना है।भाजपा ने कहा कि इस सीट पर जदयू ल़ड़े।
मुंद्रिका यादव के पुत्र वहां राजद उम्मीदवार हैं। 
गत विधान सभा चुनाव में राजद ने रालोसपा के प्रवीण कुमार को करीब 30 हजार मतों से हराया था।
तब राजद और जदयू मिल कर चुनाव लड़ रहे थे।
रालोसपा राजग का घटक दल है।
अगला उप चुनाव नतीजा  वहां राजग की ताकत का हाल बता देगा।
 भभुआ में पिछले चुनाव में भाजपा के आनंद भूषण पांडेय ने जदयू के प्रमोद सिंह  को हराया था।
देखना है कि इस बार बदले समीकरण में कैसा नतीजा आता है।
इन चुनाव क्षेत्रों के सारे  उम्मीदवार तय हो जाने के बाद स्थिति अधिक स्पष्ट होगी।
@मेरा यह लेख फस्र्टपोस्ट हिंदी पर प्रकाशित@



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