शिष्टाचारवश जो बातें आमने-सामने बैठकर नहीं कही जा सकतीं, उसके लिए आजकल फेसबुक एक अच्छा जरिया बन गया है।
मुझे भी ऐसी ही एक बात कहनी है जो मैं किसी को सामने बैठकर नहीं कह सकता।
कई बार हम ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जिनकी आदत लगातार एकालाप करने की होती है।
चाहे आप उनके घर जाएं या वे आपके यहां आएं।मिलते ही वे शुरू हो जाएंगे तो बिछुड़ने तक जारी रहेंगे।
खुद के बारे में, अपने बाल -बच्चों के बारे में, अपने दफ्तर में अपनी हैसियत के बारे में और न जाने क्या क्या !
इस बीच आपसे एक बार भी नहीं पूछेंगे कि आप कैसे हो ?
आपके बाल -बच्चे क्या कर रहे हैं ?
इस बीच आप कहां -कहां गए ? क्या-क्या देखा ?
इन दिनों क्या पढ़ रहे हैं ?
शालीन व्यक्ति तो उनके एकालाप को झेल लेता है।पर यदि कोई उन्हीं की तरह का उन्हें मिल गया तब तो ईगो का टकराव शुरू हो जाता है। और, बातचीत जल्द ही समाप्त हो जाती है।
हालांकि कुल मिलाकर घाटा एकालापियों को ही होता है।
ऐसे लोगों की बातों पर बाद में कम ही लोग ध्यान देने लगते हैं जिनसे वे उपेक्षित महसूस करने लगते हैं।इसलिए एकालापियो, सावधान हो जाओ ! थोड़ा दूसरों की भी सुनो !
मुझे भी ऐसी ही एक बात कहनी है जो मैं किसी को सामने बैठकर नहीं कह सकता।
कई बार हम ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जिनकी आदत लगातार एकालाप करने की होती है।
चाहे आप उनके घर जाएं या वे आपके यहां आएं।मिलते ही वे शुरू हो जाएंगे तो बिछुड़ने तक जारी रहेंगे।
खुद के बारे में, अपने बाल -बच्चों के बारे में, अपने दफ्तर में अपनी हैसियत के बारे में और न जाने क्या क्या !
इस बीच आपसे एक बार भी नहीं पूछेंगे कि आप कैसे हो ?
आपके बाल -बच्चे क्या कर रहे हैं ?
इस बीच आप कहां -कहां गए ? क्या-क्या देखा ?
इन दिनों क्या पढ़ रहे हैं ?
शालीन व्यक्ति तो उनके एकालाप को झेल लेता है।पर यदि कोई उन्हीं की तरह का उन्हें मिल गया तब तो ईगो का टकराव शुरू हो जाता है। और, बातचीत जल्द ही समाप्त हो जाती है।
हालांकि कुल मिलाकर घाटा एकालापियों को ही होता है।
ऐसे लोगों की बातों पर बाद में कम ही लोग ध्यान देने लगते हैं जिनसे वे उपेक्षित महसूस करने लगते हैं।इसलिए एकालापियो, सावधान हो जाओ ! थोड़ा दूसरों की भी सुनो !
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