27 अप्रैल, 2017 को ही सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया था कि लोक सभा में प्रतिपक्ष के नेता का पद खाली रहने के बहाने लोकपाल की नियुक्ति के काम को टालने का कोई औचित्य नहीं है।
याद रहे कि लोकपाल कानून, 2013 के संबंध में 1 जनवरी 2014 को ही अधिसूचना जारी कर दी गयी थी।पर आज तक लोकपाल की बहाली नहीं हो सकी।
केंद्र सरकार का तर्क है कि लोक सभा में प्रति पक्ष के नेता नहीं हैं।इसलिए चयन समिति का गठन नहीं हो पा रहा है।
केंद्र सरकार लोकपाल कानून में संशोधन करना चाहती है ताकि प्रतिपक्ष के नेता के बदले सबसे बड़ी पार्टी के नेता को चयन समिति में शामिल किया जा सके।
पर सवाल है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर जब हरी झंडी दे दी है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने का दावा करने वाली मोदी सरकार लोकपाल की नियुक्ति क्यों नहीं कर रही है।
सरकार की ओर से हो रही इस देरी को लेकर कई मोदी समर्थक भी अचंम्भित हैं।
याद रहे कि लोकपाल कानून के अनुसार जिन पांच व्यक्तियों की चयन समिति लोकपाल का चयन करेगी उनमें प्रधान मंत्री ,लोक सभा के स्पीकर,लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता,सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा मनानेनीत कोई अन्य न्यायाधीश।पांचवें सदस्य होंगे कोई मशहूर न्यायविद्।
किसी को लोक सभा में प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा तभी मिलता है जबकि उसके दल के सदस्यों की संख्या सदन की कुल संख्या के दसवें हिस्से से कम न हो।
याद रहे कि कांग्रेस के सदस्यों की संख्या इससे कम है।
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