अविभाजित बिहार विधान सभा में बगोदर से विधायक हुआ करते थे माले नेता महेंद्र प्रसाद सिंह।
जब वे सदन में बोलते थे तो अन्य सदस्य शांत होकर उन्हें सुनते थे।
आप पूछिएगा कि यह कौन सी नयी बात हो गयी ?
आज लोकतंत्र में यही तो बड़ी बात हो गयी है।आज किस सदन में कितने नेता का भाषण शांत होकर अन्य सदस्य सुनते हैं ?
खैर, महेंद्र सिंह एक और अनोखा काम करते थे।
जैसे ही उन्हें पता चलता था कि किसी सरकारी कर्मी ने उनके चुनाव क्षेत्र के किसी व्यक्ति से किसी जायज काम के लिए घूस ले लिया तो वे उस अफसर के यहां शांतिपूर्ण आंदोलन करने पहुंच जाते थे।
वे घूस लौटाने की मांग करते थे।अधिकतर मामलों में उन्हें सफलता मिल ही जाती थी।
आज यदि कोई नेता या संगठन ‘घूस लौटाओ अभियान’ शुरू कर दे तो उसे आम लोगों का व्यापक
मौन और मुखर समर्थन मिल जाएगा।इस रास्ते में दिक्कतें जरूर आएंगी।पर कुछ दशक पहले तक तो दिक्कतें उठाकर ही तो लोग राजनीतिक कर्म करते थे।
हां, हाल के दशक में राजनीति का स्वरूप जरूर बदल गया है।ऐसा इसलिए भी हो गया है क्योंकि अधिकतर राजनीतिक कार्यकत्र्ता व मझोले कद के नेता दलीय सुप्रीमो के रहमो -करम पर ही निर्भर हो गए हैं।क्योंकि उनमें सर जमीन पर जनता के सुख- दुःख के लिए मरने -जीने का माद्दा नहीं है।अपवादों की बात और है।
हां, महेंद्र सिंह एक गलती जरूर करते थे।वे अपनी सुरक्षा के प्रति अत्यंत लापारवाह थे।मैंने उनसे एक बार कहा था कि आपकी जान पर खतरा है।आप सुरक्षा में चलिए।वे जवाब देते थे कि जनता मेरी रक्षा करेगी जिसके लिए मैं काम करता हूंं।पर अंततः जब उनका अंतिम समय आया तो बेचारी जनता उनकी रक्षा करने के लिए उनके आसपास मौजूद नहीं थी।
एक बहुमूल्य जीवन को राजनीतिक द्वेषवश असमय अंत कर दिया गया।
ऐसे लोगों को अपने लिए नहीं तो जनता के भले के लिए खतरे के अनुपात में अपनी सुरक्षा रखनी चाहिए।
जब वे सदन में बोलते थे तो अन्य सदस्य शांत होकर उन्हें सुनते थे।
आप पूछिएगा कि यह कौन सी नयी बात हो गयी ?
आज लोकतंत्र में यही तो बड़ी बात हो गयी है।आज किस सदन में कितने नेता का भाषण शांत होकर अन्य सदस्य सुनते हैं ?
खैर, महेंद्र सिंह एक और अनोखा काम करते थे।
जैसे ही उन्हें पता चलता था कि किसी सरकारी कर्मी ने उनके चुनाव क्षेत्र के किसी व्यक्ति से किसी जायज काम के लिए घूस ले लिया तो वे उस अफसर के यहां शांतिपूर्ण आंदोलन करने पहुंच जाते थे।
वे घूस लौटाने की मांग करते थे।अधिकतर मामलों में उन्हें सफलता मिल ही जाती थी।
आज यदि कोई नेता या संगठन ‘घूस लौटाओ अभियान’ शुरू कर दे तो उसे आम लोगों का व्यापक
मौन और मुखर समर्थन मिल जाएगा।इस रास्ते में दिक्कतें जरूर आएंगी।पर कुछ दशक पहले तक तो दिक्कतें उठाकर ही तो लोग राजनीतिक कर्म करते थे।
हां, हाल के दशक में राजनीति का स्वरूप जरूर बदल गया है।ऐसा इसलिए भी हो गया है क्योंकि अधिकतर राजनीतिक कार्यकत्र्ता व मझोले कद के नेता दलीय सुप्रीमो के रहमो -करम पर ही निर्भर हो गए हैं।क्योंकि उनमें सर जमीन पर जनता के सुख- दुःख के लिए मरने -जीने का माद्दा नहीं है।अपवादों की बात और है।
हां, महेंद्र सिंह एक गलती जरूर करते थे।वे अपनी सुरक्षा के प्रति अत्यंत लापारवाह थे।मैंने उनसे एक बार कहा था कि आपकी जान पर खतरा है।आप सुरक्षा में चलिए।वे जवाब देते थे कि जनता मेरी रक्षा करेगी जिसके लिए मैं काम करता हूंं।पर अंततः जब उनका अंतिम समय आया तो बेचारी जनता उनकी रक्षा करने के लिए उनके आसपास मौजूद नहीं थी।
एक बहुमूल्य जीवन को राजनीतिक द्वेषवश असमय अंत कर दिया गया।
ऐसे लोगों को अपने लिए नहीं तो जनता के भले के लिए खतरे के अनुपात में अपनी सुरक्षा रखनी चाहिए।
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