तूफान केवट की बरात सोमवार को धूम धाम से निकली,पर वह गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच सकी।बरातियों से भरी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी।
नौ लोगों की दर्दनाक मौत हो गयी।
पटना जिले के गौरी चक में हुई यह बस दुर्घटना
न कोई पहली घटना है और न ही आखिरी।
आम तौर पर चालक नशे में होता है।इस हादसे में भी यही कारण बताया गया।
चालक के साथ बस मालिक पर भी तो कुछ कार्रवाई होनी चाहिए !
ऐसी खबरें लगन में आती ही रहती है।
चालक कभी नशे में होता है तो कभी आधी नींद में।
कई बार ऐसी घटनाएं सरकार व प्रशासन के लिए भी सिरदर्द बन जाती हैं।
इसके बावजूद न तो प्रशासन इसे रोकने के लिए कदम उठाता है न ही खुद वे लोग जो बरात साज कर निकलते हैं।
इस संबंध में कुछ नियम जरूरी है।दुर्घटना होने पर बरात ढोने वाले बसों के पियक्कड़ ड्रायवरों के साथ-साथ बस मालिकों के लिए भी सजा का प्रावधान होना चाहिए।या कम से कम उस बस का परमिट रद हो।
साथ ही बराती पक्ष भी स्थानीय थाने को पहले ही यह लिख कर दे दे कि बरात में शामिल वाहनों के चालकों में से कोई शराबी नहीं है।
यदि बाद में यह वादा गलत साबित हो तो वर पक्ष के अभिभावक को भी घटना के लिए जिम्मेदार बनाया जाए।
यदि पुलिस थानों को समय मिले तो बरात ढो रहे वाहनों को रोक कर कभी उनके चालकों की जांच कर ले कि उसने शराब तो नहीं पी रखी है।
--- अफसरों के साथ कर्पूरी जी का व्यवहार---
दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश ने आरोप लगाया है कि ‘आप विधायकों ने केजरीवाल के सामने मुझे पीटा।’
लोकतंत्र के इतिहास में यह पहली घटना है कि किसी चीफ सक्रेर्टी की मुख्य मंत्री के सामने ही पिटाई हो जाए।
इस सनसनीखेज व शर्मनाक आरोप की सच्चाई की जांच तो होगी ही।
पर आखिर अब ऐसा आरोप क्यों लगने लगा है ?
यदि केजरीवाल ईमानदार हैं और वे समझते हैं कि उनके अफसर बेईमान हैं तो उस समस्या से निपटने का यह कोई रास्ता नहीं है।
अफसरों का यथा योग्य सम्मान किए बिना कहीं कोई सरकार नहीं चल सकती।
कर्पूरी ठाकुर देश के किसी भी अन्य ईमानदार मुख्य मंत्री से कम ईमानदार नहीं थे।
उनके जमाने में भी कुछ अफसर बेईमान थे।
पर वे उनको अपमानित नहीं करते थे।
एक घटना मुझे याद है।
तब कर्पूरी ठाकुर विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।मुख्य मंत्री रह चुके थे। देर शाम हो चुकी थी।एक पैरवीकार किसी आई.ए.एस अफसर को फोन करवाने की जिद कर बैठा।
कर्पूरी जी उसे समझा रहे थे कि किसी बड़े अफसर को देर शाम फोन करना उचित नहीं है।उनका भी पारिवारिक जीवन है।वे काम से थके घर लौटे होंगे।उन्हें आराम करने दीजिए।कल फोन कर दूंगा।
पैरवीकार ने बड़ी जिद की।पर कर्पूरी जी नहीं माने।
पर केजरीवाल के यहां तो मुख्य सचिव को आधी रात को बुलाकर अपमानित किया गया।क्या आधी रात को बुलाने की कोई इमरजेंसी थी ?इमरजेंसी में तो किसी अफसर को कभी भी बुलाया जा सकता है।
----एक कहानी सिंगा पुर की---
बजट जब सरप्लस हुआ तो सिंगा पुर सरकार ने बचे हुए पैसे इस साल आम जनता में बांट देने का निर्णय किया।
अपने इस देश में तो क्वोत्रोचि,माल्या और नीरव मोदी जैसे आधुनिक ‘वारेन हेस्ंिटग्सों’से देश को लूटने की छूट दे दी जाती है और उसकी भरपाई के लिए जनता पर टैक्स बढ़ा दिया जाता है।
अपने देश के लोगों को सिंगापुर की ताजा कहानी सुनकर
अजीब लगेगा।
पर क्या हमारे नये -पुराने हुक्मरानों को शर्म आएगी ?
सिंगा पुर को ऐसा किसने बना दिया जो वहां सरकार का बजट सरप्लस हो जाए ?
उस देश को ऐसा बनाने वाले का नाम था ली कुआन यू @1923-2015@।
ली कुआन कहा करते थे कि भारत में अपार संभावनाएं हैं ।पर उसे घिसे -पिटे समाजवादी नीतियों से बाहर निकलना होगा।
1959 से 1990 तक ली कुआन सिंगा पुर के प्रधान मंत्री थे।उन्होंने दूरदर्शिता और कठोर परिश्रम से सिंगा पुर को एक अमीर देश बना दिया।वे कहा करते थे कि व्यक्तिगत अधिकारों से अधिक जरूरी है सार्वजनिक कल्याण।उन्होंने थोड़ी कड़ाई जरूर की ,पर उनमें कम्युनिस्ट तानाशाह वाली क्रूरता नहीं थी।एक विश्लेषणकत्र्ता के अनुसार
सिंगा पुर का उदाहरण देख कर भारत को यह तय करना होगा कि वह आधुनिक ‘वारेन हेस्टिंग्सों’ को लूट की छूट देता रहेगा या सिंगा पुर की तरह कुछ कड़ाई करके उन्हें रोकेगा ?
---कुछ न करने के बहुत बहाने--
2015 में ली कुआन यू के निधन के बाद अपने देश के राजनीतिक विश्लेषकों ने तरह -तरह के लेख लिखे।
लिखा गया कि सिंगा पुर जैसे छोटे देश में ही ऐसा चमत्कार संभव है।भारत में नहीं।
सवाल है कि केरल में क्यों आरोपितों में से 77 प्रतिशत अपराधियों को अदालतांंे से सजा दिलवा दी जाती है,पर पश्चिम बंगाल में यह प्रतिशत मात्र 11 है ?
क्यों दशकों के कम्युनिस्ट शासन के बावजूद कोलकाता के ग्रेट इस्टर्न होटल को निजी हाथों में दे देने को ज्योति बसु सरकार मजबूर हो गयी थी ?
क्यों इसी देश में एक बस से शुरू करके निजी आपरेटर कुछ ही साल में दर्जनों बसों का मालिक हो जाता है और राज्य पथ परिवहन घाटे में रहता है ?दरअसल करने के बहुत रास्ते होते हैं औ न करने के अनेक बहाने !
--- एक भूली बिसरी याद---
मशहूर कम्युनिस्ट नेता जगन्नाथ सरकार ने लिखा था कि राज कुमार पूर्वे के संस्मरणों से गुजरना एक दिलचस्प अनुभव है।दिवंगत पूर्वे की संस्मरणात्मक पुस्तक ‘स्मृति शेष’ का एक प्रकरण में सामान्य पाठकों
की भी दिलचस्पी हो सकती है।
यह प्रकरण है भारत पर चीन के हमले का प्रकरण।
स्वतंत्रता सेनानी व विधायक रहे दिवंगत पूर्वे के अनुसार, चीन ने भारत पर 1962 में आक्रमण कर दिया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आक्रमण का विरोध किया।
पार्टी में बहस होने लगी।
कुछ नेताओं का कहना था कि चीनी हमला हमें पूंजीवादी सरकार से मुक्त कराने के लिए है।दूसरों का कहना था कि माक्र्सवाद हमें यही सिखाता है कि क्रांति का आयात नहीं होता।
देश की जनता खुद अपने संघर्ष से पूंजीवादी व्यवस्था और सरकार से अपने देश को मुक्त करा सकती है।
पार्टी के अंदर एक वर्ष से कुछ ज्यादा दिनों तक बहस चलती रही।
लिबरेशन या एग्रेशन का ?
इसी कारण कम्ुयनिस्ट पार्टी, जो राष्ट्रीय धारा के साथ आगे बढ़ रही थी और विकास कर रही थी, पिछड़ गयी।
लोगों में देश पर चीनी आक्रमण से रोष था।
यह स्वाभाविक था ,देशभक्त ,राष्ट्रभक्त की सच्ची भावना थी।
यह हमारे खिलाफ पड़ गया।कई जगह पर हमारे राजनीतिक विरोधियों ने लोगों को संगठित कर हमारे आॅफिसों और नेताओं पर हमला भी किया।
हमें चीनी दलाल कहा गया।
आखिर में उस समय 101 सदस्यों की केंद्रीय कमेटी में से 31 सदस्य पार्टी से 1964 में निकल गए।
उन्होंने अपनी पार्टी का नाम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी@माक्र्सवादी @रखा।सिर्फ भारत में ही नहीं,कम्युनिस्ट पार्टी के इस अंतर्राष्ट्रीय फूट ने पूरे विश्व में पार्टी के बढ़ाव को रोका और अनेक देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों में फूट पड़ गयी।
----- और अंत में---
उत्तर प्रदेश के खूंखार अपराधी अब पुलिस की गोली खाने के बदले जेल की खिचड़ी खाना पसंद कर रहे हैं।उन्हें लगता है कि वहां जाने पर कम से कम जान तो बच जाएगी।
क्योंकि वहां की सरकार ने पुलिस बल को निदेश दे दिया है कि वह खुद पहल करके अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करे।ऐसा न हो कि अपराधी पहल करें और आप उसका सिर्फ जवाब भर दें।बिहार में पुलिस पहल कब करेगी ?
@ 23 फरवरी, 2018 को प्रभात खबर-बिहार -में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से@
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