गुरुवार, 17 मई 2018

ब्रिटिश प्रधान मंत्री के पोते बटे्र्रंड रसेल ने बोअर युद्ध में अपने ही देश का किया था विरोध




         
सन 1899 में दक्षिण अफ्रीका में बोअर-ब्रिटिश युद्ध हुआ था।ब्रिटिश प्रधान मंत्री अर्ल रसेल के पोता औन नोबेल पुरस्कार विजेता बर्टेंड  रसेल  तब बोअर स्वतंत्रता का समर्थक बन गये थे।
  इतना ही नहीं,  बट्र्रेंड उर्फ बर्टी युद्ध विरोध व साम्राज्यवाद विरोधी अभियान के एक प्रमुख कार्यकत्र्ता भी थे।
   ब्रिटेन जैसे अमीर और साम्राज्यवादी देश के 
दार्शनिक,गणितज्ञ व तर्क शास्त्री  बर्टी दुनिया की गरीबों की पीड़ा से दग्ध होते रहते थे।
साठ के दशक की  हिंदी फिल्म ‘अमन’ में शांतिदूत बट्र्रेंड रसेल से अभिनेता राजेंद्र कुमार को  बातचीत करते हुए देखा जा सकता है--अमन व शांति का संदेश देते हुए।
फिल्म में राजेंद्र कुमार डाॅक्टर बने थे जो युद्धपीडि़तों की सेवा के लिए जापान जाना चाहते थे।वे रसेल का आशीर्वाद लेने उनके पास गए थे।
   सत्तर के दशक में जब रसेल की जीवनी छपकर आई तो लोगों ने इस अनूठे व्यक्तित्व स्वामी के कई अनजाने पहलुओं को जाना।
  रसेल ने  लिखा  कि उन्होंने अनेक बार अपने जीवन का अंत करना चाहा ,किंतु ज्ञान की पिपासा ने उन्हें जीने की प्रेरणा दी।
  अत्यंत बेबाक तरीके से लिखी गई  चर्चित  आत्म कथा में उन्होंने यह भी लिखा कि मेरे जीवन को जिन तीन बड़ी ही नैसर्गिक किंतु दुर्दम्य वासनाओं ने  अनुप्राणित किया ,वे हैं प्रेम की लालसा,सत्य की खोज तथा मानव वेदना के प्रति गहन सहानुभूति ।युद्ध और परमाणु हथियारों के सख्त विरोधी रसेल ने लिखा कि वे अभी सोलह साल के भी नहीं हुए थे कि उनकी इच्छा अनेक बार आत्म हत्या करने की हुई।पर गणित के प्यार ने उन्हंे ऐसा करने से रोक दिया।
       18 मई ,1872 को  जन्मे रसेल का 2 फरवरी  1970 को  निधन हो गया।उनके दादा अर्ल रसेल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रह चुके थे।बचपन में ही रसेल के माता-पिता का निधन हो चुका था।उनकी दादी ने उन्हें पाला।रसेल  युद्ध के इतने खिलाफ थे कि उन्होंने बोअर युद्ध के भी खिलाफ
विचार प्रकट किया था।याद रहे कि दक्षिण अफ्रीका में बोअर-ब्रिटिश युद्ध चल रहा था।इस संबंध में ‘धर्मयुग’ ने तब लिखा था कि यह एक ऐतिहासिक बिडंबना ही है कि रसेल जब बोअर स्वतंत्रता के समर्थक बन गये तब गांधी जी ने ब्रिटिश पक्ष का सक्रिय समर्थन किया था।   
  बर्टी कभी लोकप्रिय नहीं बन सके,हालांकि वे हमेशा जनहित कार्यों में सक्रिय रहे।वैसे भी किसी भी समाज में सच बोलने वाला भला लोकप्रिय कैसे बन सकता है !
  सबसे अनोखी बात  बर्टी ने अपनी माता के बारे लिखी ।वैसी  बात लिखने की हिम्मत शायद ही किसी अन्य जीवनी लेखक ने कभी की हो।
बर्टी की आत्म कथा के अनुसार ‘बर्टी के बड़े भाई को पढ़ाने के लिए एक विद्वान ट्यूटर रखे गये थे,जो अविवाहित और दुर्बल थे।राजयक्ष्मा के कारण ,जो उन दिनों असाध्य रोग माना जाता था,इस विद्वान का विवाह अवांछनीय था।इस प्रकार वे बेचारे विवशता से ब्रह्मचारी रह गये थे। रसेल के माता-पिता बड़े भावुक मानवतावादी थे।और केवल सैद्धांतिक दष्टि से उन्हें यह बात बड़ी निष्ठुरतापूर्ण लगी कि कोई बेचारा सहज यौन संबंध सुख से वंचित रहे।रोग के कारण उसका संतानहीन होना तो अभीष्ट था,किंतु ब्रह्मचर्य आचरण की अपेक्षा करना क्रूरता।बर्टी लिखते हैं कि उदार दृष्टि अपनाते हुए उनके पिता ने उनकी माता से उनके भाई के टयूटर के सहवास की अनुमति दे दी। उन्हें इसका पता बाद में पिता के कागज पत्रों,डायरी आदि से लगा ।यह तो वास्तव में एक विवश मानव के प्रति सहानुभूतिपरक कत्र्तव्यात्मक कर्म मात्र था।
  रसेल ने इस घटना का वर्णन बड़े ही निर्लिप्त भाव से एक तटस्थ पर्यवेक्षक के रूप में किया है।किसमें साहस है कि अपनी जननी के ऐसे रहस्य का दार्शनिक विश्लेषण दुनिया के सामने इस सहज भाव से लिख डाले ? लेकिन बर्टेंड रसेल तो हमारी धरती की लोकलाज के मापदंडों से परे थे।
    आज जब आधुनिक राजनीति में अपनी चमड़ी बचाने के लिए अधिकतर नेता रोज -रोज  मीडिया के सामने सफेद झूठ बेशर्मी से उगलते रहते है,ऐसे में स्पष्टवादी रसेल याद आते हैं।रसेल ने सत्य को देशहित और परिवारहित से भी ऊपर रखा।
  बर्टेंड रसेल ने प्यार,करूणा और गणित के बारे में कुछ अदभुत बातें लिखी हैं।उन्होंने लिखा कि मैंने प्यार चाहा है क्योंकि वह उल्लास देता है।इतना महान उल्लास कि कभी- कभी मुझे लगा कि उस आनंद की चंद घडि़यों के लिए मैं अपना शेष सारा जीवन न्योछावर कर सकता हूं।
  उन्होंने लिखा कि उतने ही मनोवेग के साथ मैंने ज्ञान की खोज की है।मैंने लोगों के हदय में पैठकर उन्हें जानना चाहा है।मैंने जानना चाहा है कि सितारे क्यों चमकते हैं और गणित के ब्रहमांण्डीय रहस्य भी जानना चाहा है।
  प्यार और गणित जहां तक मुझे प्राप्य थे,मुझे हमेशा धरती से ऊपर सितारों की ओर ले जाते रहे।लेकिन करूणा मुझे सदा धरती पर वापस ले आती थी। 
जहां कहीं भी पीड़ा की चीत्कार थी,उसकी गूंज मेरे मन में उठने लगती थी।अकाल में दम तोड़ते बच्चे ,अत्याचारी के अत्याचार से पिसते निर्बल,गरीबी और अकेलेपन ।मैं चाहता हूं कि सारी बुराई मिटा दूं।पर मिटा नहीं सकता,इसलिए खुद पीड़ा से दग्ध होता रहता हूं।’
  ब्रिटेन जैसे अमीर और साम्राज्यवादी देश के रसेल दुनिया की गरीबों की पीड़ा से दग्ध होते रहते थे।पर हमारे ही देश के मौजूदा अधिकतर नेतागण ! ?----Surendra kishore .
@ द राइटर डाॅट इन से साभार@

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