मंगलवार, 1 मई 2018

हंगामे के बिना ही संसद को हिलाया था बिहार से सांसद मधु लिमये ने

उनके जन्म दिन के अवसर पर मधु लिमये पर लिखा अपना एक पुराना लेख मैं यहां प्रस्तुत  कर रहा हूं।
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बिहार के मुंगेर व बांका से बारी- बारी से लोकसभा में चार बार गये मधु लिमये ने यह सिखाया था कि किसी हंगामे के बिना भी विधायका में किस तरह कटु सत्य भी प्रभावकारी तरीके से बोले जा सकते हैं।

 पर इसके लिए सदन के नियमों की बेहतर जानकारी होनी चाहिए और उसके इस्तेमाल की सलाहियत भी।यह सब सन 1964 में बिहार से पहली बार लोक सभा में गये मधु लिमये को अच्छी तरह आता था।दुःख की बात है कि आज विधायिकाओं में अपनी बातें  कहने के लिए भाजपा व कांग्रेस जैसे बड़े दलों को भी  अक्सर हंगामे का सहारा लेना पड़ता है।जबकि, मधु लिमये तो ‘वन मैन आर्मी’ थे।संसद व विधान सभाओं  की गरिमा का अवमूल्यन आज की तरह ही  जारी रहा तो इस देश की लोकतांित्रक व्यवस्था के प्रति ही लोगों के मन में इज्जत घट जाएगी।यह और भी दुःख की बात है कि आज संसद या फिर विधायिका की गरिमा घटाने में करीब- करीब सभी दलों का योगदान है।ऐसे में मधु लिमये जैसे सभा -चतुर नेता अधिक ही याद आते है।

वैसे बिहार से चुनाव जीत कर संसद के दोनों सदनों में बारी -बारी से  गये नामी -गिरामी राष्ट्रीय नेताओं  नेताओं की भी कमी नहीं रही।उन बड़े नेताओं व काबिल पार्लियामेंटेरियनों में बिहारी भी थे और गैर बिहारी भी।पर सबमें मधु लिमये का स्थान बेजोड़ था।आजादी के बाद बिहार से लोक सभा व राज्य सभा के संदस्य बने नेताओं में जे.बी.कृपलानी, अशेाक मेहता, जार्ज फर्नाडिस, आई.के.गुजराल, युनूस सलीम, कपिल सिब्बल, रवींद्र वर्मा, नीतीश भारद्वाज, मीनू मसानी, लक्ष्मी मेनन और एम.एस. ओबराय प्रमुख थे। पर इनमें मधु लिमये का स्थान अलग था।

इनके कारण भी बिहार और मुंगेर के नाम दुनिया भर में गौरवान्वित हुए।मधु लिमये का बिहार से कुछ खास तरह का लगाव भी रहा।वे बिहार से मात्र सांसद ही नहीं थे बल्कि वे राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के साथ-साथ   बिहार की समस्याओं को भी समान ऊर्जा व मनोयोग से संसद के भीतर व बाहर उजागर करते थे।बिहार पर उनके लेखन व भाषण  चर्चित हुए। 

हंगामे के बिना आज जिन छोटे -बड़े सांसदों व दलों के लिए अपनी बातें कह पाना कठिन होता है,उन्हें मधु लिमये की संसदीय शैली से इस मामले में अब भी कुछ सूत्र सीख लेना चाहिए । हालांकि यह थोड़ा कठिन दिमागी कसरत का काम है जिससे हमारे अधिकतर नेता जरा दूर ही रहना चाहते हैं।

समाजवादी विचारक व सभा चतुर मधु लिमये का जन्म 1 मई 1922 को पूणे में हुआ था।उनका निधन 8 जनवरी 1995 को दिल्ली में हुआ।वे दो बार मुंगेर (1964 और 1967) और दो बार बांका (1973 और 1977) से लोकसभा सदस्य चुने गये। सांसद के रूप में मधु लिमये ने तत्कालीन केंद्र सरकार को इतना हिला दिया था कि इंदिरा गांधी ने 1971 में तत्कालीन बलशाली कांग्रेसी नेता व शेरे बिहार के नाम से चर्चित राम लखन सिंह यादव के सामने अपनी आंचल पसार कर उनसे यह आग्रह किया था कि  आप मुंगेर और बाढ़ की  सीटें हमें विशेष तौर पर उपहार में दे दीजिए।

यानी इंदिरा जी मधु लिमये और तारकेश्वरी सिंहा को किसी भी कीमत पर हरवाना चाहती थीं।इस काम में यादव जी ने उनकी भारी मदद भी की थी। दोनों हार गए थे।लालू प्रसाद से पहले राम लखन जी ही बिहार के यादवांें के सबसे बड़े नेता थे।
 वैसे भी तब गरीबी हटाओ का नारे का इंदिरा जी के पास बल  था।  पर दो साल बाद ही यदि मधु लिमये एक उप चुनाव के जरिए बिहार के ही बांका से लोकसभा मे ंचले गये थे तो यह उनके प्रति बिहारी कृतज्ञ मानस का उपकार का भाव ही था। मधु ने बिहार का नाम ऊंचा ही किया था। मधु लिमये की चर्चा करने पर कुछ  विदेशी राजनयिक भी दिल्ली में यह पूछते थे कि वे कहां से चुनाव जीतते हैं ? याद रहे कि मुंगेर या बांका  चुनाव क्षेत्र ब्राहमण बहुल नहीं माना जाता।इस सूचना  के बाद कई विदेशी राजनयिकों  के मन में यह बात भी कुलबुलाने लगती थी कि तब क्यों बिहार को जातिवादी राज्य कहा जाता है ? 

मधु लिमये ने ऐसे समय में लोक सभा में अपनी संसदीय योग्यता की धाक जमाई थी जब के स्पीकर सरदार हुकुम सिंह लोहियावादी समाजवादी सांसदों के सदन में खड़ा होने के साथ ही उन्हें  तत्काल बैठा देने की कोशिश करने लगते थे। क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वे जवाहर लाल नेहरू या इंदिरा गांधी  के खिलाफ कोई कटु बात बोल दंे। नेहरू 1964 तक प्रधान मंत्री थे।नेहरू के कटु आलोचक व अदमनीय समाजवादी नेता डा.राम मनोहर लोहिया ने 1963 में लोक सभा में प्रवेश करने के साथ ही नेहरू पर ऐसे कठोर प्रहार शुरू कर दिये थे कि स्पीकर सदा सतर्क रहते थे।

पर यदि मधु के पास संसदीय फोरम के इस्तेमाल की चतुराई थी, तो उन्हें अपनी बात कहने से 
 स्पीकर रोक भी नहीं सकते थे। स्पीकर उन दिनों  लोक लाज का काफी ध्यान रखने वाले नेता हुआ करते  थे।संविधान व लोक सभा की कार्य संचालन नियमावली का सहारा लेकर जब मधु लिमये  प्रस्ताव व सूचनाएं देते थे तो उन पर चर्चाएं कराने पर स्पीकर मजबूर हो जाते थे। इस तरह संसदीय ज्ञानों का उपयोग करके मधु लिमये देश व समाज के लिए काफी कुछ कर पायेे।

उनसे सकारात्मक ईष्र्या रखने वाले एक अन्य समाजवादी चिंतक व पूर्व सांसद किशन पटनायक ने मधु लिमये के बारे में उनके निधन के बाद  लिखा था कि ‘एक श्रेष्ठ कोटि के सांसद के रूप में मधु की प्रतिष्ठा हुई।मंत्रियों के भ्रष्टाचार के विरोध में उनका हमला इतना कारगर होने लगा था कि बड़े नेताओं में उनके प्रति भय हुआ। सन 1964 से 1967 के बीच सांसद के रूप में उनका जो उत्थान हुआ ,उसका मैं सदन के भीतर प्रत्यक्षदर्शी था। संसदीय प्रणाली व संविधान के बारे में उनका ज्ञान अद्वितीय था। मधु लिमये शुरू से मेरे लिए आदर, ईष्र्या व असंतोष के पात्र रहे। मेरे स्वभाव में है कि ईष्र्या उस व्यक्ति के लिए होती है जिसके लिए मेरे मन प्यार होता है।’
   गौरव की बात है कि मधु लिमये जैसे संसदीय महारथि सिफ्र्र बिहार से ही सांसद रहे। काश ! बिहार को वैसा गौरव  एक बार फिर मिल पाता ।   

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