शनिवार, 19 मई 2018

 कर्नाटका मेें इस बार 72 दशमलव 36  प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। वहां सन 2013 के विधान सभा चुनाव में 71 दशमलव 45 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया था।
  2015 में हुए बिहार विधान सभा  चुनाव में 56 दशमलव 8 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया था।उससे पहले 2010 में 52 दशमलव 7 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले थे।
यानी मतदान का प्रतिशत बढ़ तो रहा है,पर अत्यंत धीमी गति से।
  जानकार लोग बताते हैं कि यदि इस देश के  हर राज्य में कम से कम 80 -90 प्रतिशत मतदातागण मतदान करने लगें तो  जातीय और सांप्रदायिक वोट बैंक का महत्व व दबाव काफी घट जाएगा।
 जातीय वोट बैंक का दबाव किसी खास कमजोर  जाति के आम कल्याण व विकास के लिए हो तब तो बात समझ में आती है,पर यहां तो अनेक नेता जातीय वोट बैंक का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए करते हैं।इससे देश का नुकसान हो रहा है।अंततः उन जातियों का भी कोई खास भला नहीं होता। 
  यह स्थिति कैसे बदलेगी  ?
 यदि 80 -90 प्रतिशत लोग मतदान करने लगें तो जरूर बदलेगी।कोई भी जातीय वोट बैंक अधिक से अधिक 20 -30 प्रतिशत का ही होता है।
यदि 90 प्रतिशत लोग वोट करने लगेंगे तो उसमें 20-30 प्रतिशत मत अधिकतर मामलों में निर्णायक नहीं रह जाएंगे। 
 सुप्रीम कोर्ट ने भी 5 फरवरी 2017 को कहा था कि ‘यदि आप मतदान नहीं करते तो आपको सरकार को दोष देने और उसके निर्णयों पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है।
उससे पहले एक एन.जी.ओ. से जुड़े  याचिकाकत्र्ता ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहा  था कि ‘मैंने जीवन में कभी मतदान नहीं किया।’ 

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