पूर्व सांसद प्रो.रंजन प्रसाद यादव के संरक्षकत्व वाले गैर राजनीतिक संगठन ‘यादव जागरण मंच’ के सम्मेलन ने समाज को शिक्षित करने का कल एक प्रस्ताव पारित किया। यह एक जरूरी पहल है। किसी भी जाति के जिन परिवारों में पहली बार शिक्षा आयी, उन परिवारों को विकसित होते मैंने देखा है।
यादवों के साथ -साथ कुछ अन्य जातियों में भी शिक्षा का उतना फैलाव नहीं हुआ है जितना आजादी के बाद हो जाना चाहिए था।
मेरी राय है कि जो लोग अपनी जाति के कल्याण की बातें विभिन्न मंचों से करते रहते हैं, उन्हें पहले अपनी -अपनी जातियों में शिक्षा के फैलाव और व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
जिन जातियों में कई कारणों से अब भी शिक्षा के प्रति अपेक्षाकृत अधिक अरूचि है,उनके बीच काम करने की अधिक जरूरत है।
इस संबंध में ‘ डा.आम्बेडकर संपूर्ण ’ में एक प्रकरण आता है। वह प्रकरण सन 1858 का है। बंबई प्रेसिडेंसी के शिक्षा विभाग की एक रपट के अनुसार सरकार ने चार जातियों के बीच शिक्षा के प्रसार की कोशिश की थी।
तीन जातियों में तो शिक्षा के प्रति उत्साह देखा गया। पर एक खास जाति के बारे में पता चला कि उनकी रूचि नहीं है।वे अपने पूर्वजों की वीर गाथा में डूबे हुए थे।
बाद के वर्षों में भी शिथिलता रही थी। हालांकि अब वैसी स्थिति नहीं है।काफी बदलाव आया है।फिर भी कुछ अन्य जातियों के साथ-साथ उस जाति में भी इस दिशा में काम करने की अभी जरूरत है।
यादवों के साथ -साथ कुछ अन्य जातियों में भी शिक्षा का उतना फैलाव नहीं हुआ है जितना आजादी के बाद हो जाना चाहिए था।
मेरी राय है कि जो लोग अपनी जाति के कल्याण की बातें विभिन्न मंचों से करते रहते हैं, उन्हें पहले अपनी -अपनी जातियों में शिक्षा के फैलाव और व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
जिन जातियों में कई कारणों से अब भी शिक्षा के प्रति अपेक्षाकृत अधिक अरूचि है,उनके बीच काम करने की अधिक जरूरत है।
इस संबंध में ‘ डा.आम्बेडकर संपूर्ण ’ में एक प्रकरण आता है। वह प्रकरण सन 1858 का है। बंबई प्रेसिडेंसी के शिक्षा विभाग की एक रपट के अनुसार सरकार ने चार जातियों के बीच शिक्षा के प्रसार की कोशिश की थी।
तीन जातियों में तो शिक्षा के प्रति उत्साह देखा गया। पर एक खास जाति के बारे में पता चला कि उनकी रूचि नहीं है।वे अपने पूर्वजों की वीर गाथा में डूबे हुए थे।
बाद के वर्षों में भी शिथिलता रही थी। हालांकि अब वैसी स्थिति नहीं है।काफी बदलाव आया है।फिर भी कुछ अन्य जातियों के साथ-साथ उस जाति में भी इस दिशा में काम करने की अभी जरूरत है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें