बुधवार, 30 मई 2018

 पहले मेरी यह धारणा थी कि यदि कोई धन बटोरू 
नेता प्रधान मंत्री पद पर नहीं बैठा होगा तो सरकारी भ्रष्टाचार में काफी हद तक कमी आ जाएगी।जैसी कमी जवाहर लाल नेहरू-लाल बहादुर शास्त्री  के कार्यकाल में थी।
आज नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी भी यह आरोप नहीं लगा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी अपनी या अपने करीबी रिश्तेदारों की सरकारी मदद से निजी संपत्ति बढ़ा रहे हैं।
यही नहीं,जिस तरह मन मोहन सरकार के मंत्रियों के खिलाफ एक से एक महा घाटाले के आरोप लग रहे थे,वैसे आरोप भी मोदी मंत्रिमंडल के सदस्यांे के खिलाफ नहीं लग रहे हैं।
  इसके बावजूद आम लोगों को सरकारी भ्रष्टाचार से राहत नहीं मिल रही है।इसके क्या कारण हंै ?
 इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार हंै ?
क्या आई.ए.एस.अफसर जिम्मेदार हैं ?
क्या केंद्रीय सचिवालय के बाबू ?
क्या वहां के चपरासी ?
या कोई और ?
कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
आप ही कुछ समझाइए। 

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