16 अगस्त, 1990 को कलकत्ता में पुलिस की मौजूदगी में ममता बनर्जी को लाठियों से इस तरह बेरहमी से पीटा गया था कि उनके सिर पर 16 टांके लगाने पड़े।मरते-मरते बची थीं।
ममता की टूटी बांह में प्लास्टर लगा था।
पूर्व सांसद ममता बनर्जी के साथ इंदिरा कांग्रेस के जिन कुछ अन्य नेताओं को भी उस दिन माकपा बाहुबलियों की हिंसा का शिकार होना पड़ा ,उनमें इंटक नेता सुब्रत मुखर्जी भी शामिल थे।प्रेस फोटोग्राफर भी बुरी तरह पिट गए थे।
इन दिनों जब पश्चिम बंगाल से आए दिन सत्ता संरक्षित हिंसा की खबरें आती रहती हैं तो वैसे में 1990 की उस घटना को एक बार फिर याद कर लेना मौजूं होगा।
यह घटना तब की है जब ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस नहीं बनायी थीं।वह कांग्रेस @इ@में थीं।वाम मोर्चा सरकार से सहमी कांग्रेस को वह लड़ाकू पार्टी बना रही थीं।
वह 1984-89 में लोक सभा सदस्य रह चुकी थीं।उन्होंने तब सी.पी.एम.के सोमनाथ चटर्जी को हराया था।
ममता तब एक निडर और तेज -तर्राट नेत्री के रूप में उभर रही थीं।
16 अगस्त 1990 को कांग्रेस @आई@ने
सरकारी बस -ट्राम भाड़ा में वृद्धि के विरोध में 12 घंटे का ‘कलकत्ता बंद’ @तब तक कोलकाता नाम नहीं पड़ा था।@का आयोजन किया था।
उधर ज्योति बसु की सरकार किसी भी कीमत पर बंद को विफल करने पर अमादा थी।
कलकत्ता में परिवहन को चालू रखने के लिए उस दिन जहां पुलिस का भारी बंदोबस्त था,वहीं कांग्रेसी आंदोलनकारियों को सबक सिखाने के लिए बाहुबली सी.पी.एम.कार्यकत्र्ता लाठी और अन्य घातक हथियारों के साथ सड़कों पर तैनात कर दिए गए थे।
कलकत्ता व उसके उप नगरों में करीब तीन लाख सी.पी.एम.कार्यकत्र्ताओं को इस ड्यूटी पर लगाया गया था ताकि इंका के लोग बंद न करा सकें।
उस दिन बंद के समर्थन में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाला जुलूस जब कलकत्ता के हाजरा क्रासिंग पर पहुंचा तो बाहुबली जमात उन पर बेरहमी से लाठियां बरसाने लगीं।सी.पी.एम.के बाहुबली कार्यकत्र्ता लालू आलम ने ममता बनर्जी के सिर पर जोरदार लाठियां बरसायी थीं।
जिन लोगों ने ममता को बचाने की कोशिश की ,उन्हें भी हिंसा का शिकार होना पड़ा।याद रहे कि लालू आलम 1972 में कांग्रेस में था।
बाद में सी.पी.एम. में आया।उसका भाई बादशाह तत्कालीन मंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का करीबी था।हालांकि जब ममता बनर्जी मुख्य मंत्री बनीं तो लोगों ने देखा कि लालू आलम मुख्य मंत्री के यहां जाकर उनके सामने अपनी 1990 की गलती के लिए गिड़गिड़ाकर माफी मांग रहा था। याद रहे कि सत्ता बदलने के साथ ही पश्चिम बंगाल में राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं व बाहुबलियों के पक्ष बदलने की परंपरा पुरानी है।
उस दिन जब ममता बनर्जी पर बेरहम लाठियां पड़ रही थीं तो पास में ही बड़ी संख्या में पुलिस बल के साथ सहायक पुलिस कमिश्नर भी खड़ा था।पर पुलिस ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया।
हां, जब बाहुबलियों ने ममता बनर्जी को पीट- पीट कर बेहोश कर दिया, उनके सिर से काफी खून निकलने लगा तो उसके बाद ही पुलिस सक्रिय हुई, वह भी ममता को अस्पताल पहुंचाने के लिए। उन्हें सरकारी अस्पताल एस.एस.के.एम.पहुंचाया गया।वहां उनके सिर में 16 टांके लगाने पड़े।
बाद में उन्हें निजी अस्पताल मेें पहंुचाया गया।वह कई दिनों तक अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच जूझती रहीं।
उसी हमले के दौरान हेलमेट पहने सी.पी.एम. हमलावरों ने प्रेस फोटोग्राफर तारापद बनर्जी और पल्लव दत्ता को भी बुरी तरह पीटा।उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।वे हिंसक घटनाओं की तस्वीरें ले रहे थे।
उधर बाद में मुख्य मंत्री ज्योति बसु ने ईमानदारी दिखाते हुए यह माना कि सी.पी.एम. के कार्यकत्र्ताओं ने हिंसा की।
मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों को चाहिए था कि वे हिंसक तत्वों को तुरंत गिफ्तार करते।साथ ही मुख्य मंत्री ने यह भी माना कि राज्य सचिवालय यानी राइटर्स बिल्डिंग में कर्मचारियों की सिर्फ 30 प्रतिशत ही उपस्थिति थी।
यानी बंद सफल रहा।
पर, सवाल यह था कि सी.पी.एम. के राज्य मुख्यालय से निदेश लेने वाली पुलिस हिंसक तत्वों को गिरफ्तार कैसे करती ?
यह संयोग नहीं था कि बंद के एक दिन पहले ही ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से यह आशंका जाहिर की थी कि ‘मेरी हत्या का षड्यंत्र किया जा रहा है।’इसके बावजूद ममता को बचाने के लिए पुलिस सक्रिय नहीं हुई।
दरअसल ममता से निपटने के तरीके के सवाल पर राज्य सी.पी.एम.में मतभेद की खबरें आ रही थीं।
कलकत्ता बंद के बाद जब मुख्य मंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई तो उनके साथ उनके करीबी मंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य नहीं थे।
जबकि पहले से ही यह चर्चा थी कि ज्योति बसु उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं।उन दिनों ऐसे अन्य अवसरों पर भट्टाचार्य मुख्य मंत्री के साथ देखे जाते थे।
खैर इस घटना के बाद ममता बनर्जी का नेतृत्व भी चमक उठा।उनके वाम का विकल्प बनने में इस घटना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।ठीक उसी तरह भाजपा कार्यकत्र्ता मार खा -खा कर इन दिनों भाजपा को ममता का विकल्प बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं।लगता है कि इतिहास खुद को दुहरा रहा है।
@--साभार फस्र्टपोस्ट हिंदी....21 मई 2018@
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