रविवार, 27 मई 2018

 पहले फ्रेंड ! फिर फेसबुक फ्रेंंड !! तब फेसबुक फाइटर !!!
फिर दोस्ती खत्म !!!! मनमुटाव शुरू ।
अरे भई, इससे बेहतर तो यही था कि फेसबुक फ्रंेड  बने ही नहीं होते।
  क्यों किसी मोदी या किसी राहुल के लिए आपस में लड़ते हो ?
अगले चुनाव में  मोदी के विजयी हो जाने से कोई आपके ऊपर आसमान नहीं गिर जाएगा।न ही राहुल के जीत जाने से आपके नीचे की जमीन खिसक जाएगी।
लोकतंत्र में तो हर पांच साल पर चुनाव होना है।किसी न किसी को हर कोई वोट देता ही है।दो मित्र दो अलग -अलग दलों को वोट दे ही सकते हैं।
देने दीजिए।इसके लिए दोस्ती या स्नेह की पूंजी क्यों गंवा रहे हो ? क्यों किसी को अपने विचार का दास बनाना चााहते हो  ?
क्यों फासीवाद चलाना चाहते हो ? जीवन में राजनीति ही सब कुछ नहीं है।कितने अच्छे थे जब दो दोस्त आपस में हिलमिल कर अपना सुख -दुःख बतियाते थे ! अधिकतर गैर फेसबुकिए लोग अब भी बतियाते हैं ।पर मुझे अनेक फेसबुकिए पर अब शक है कि  ऐसा वे अब भी कर रहे हैं !
@26 मई 2018@


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