शनिवार, 12 मई 2018

  कल एक दुःखद खबर मुम्बई से आई ।महाराष्ट्र के योग्य व बहादुर आई.पी.एस.अफसर हिमांशु राय ने आत्म हत्या कर ली। वे कैंसर की असह्य पीड़ा को सह नहीं सके।
 इस घटना पर मुझे आरा के प्रो.केशव प्रसाद सिंह की कहानी याद आ गयी।उनकी कहानी 11 अप्रैल, 1994 के टाइम्स आॅफ इंडिया @पटना@में छपी थी।बाद में मैं एक मरीज के साथ आरा जाकर उनसे मिला भी था।लाभ हुआ था।
केशव बाबू आरा जैन काॅलेज में राजनीतिक शास्त्र विभाग के अध्यक्ष थे।
 वे मुंह के कैंसर से ग्रस्त हो गए।
मुम्बई के टाटा स्मारक अस्पताल में इलाज कराया।ठीक नहीं हुए।
मर्ज थर्ड स्टेज में था।
प्रो.सिंह ने हार कर मूत्र चिकित्सा शुरू की।
1978 में ठीक हो गए।
चेक अप कराने मुम्बई गए।
उनकी केस फाइल पर टाटा अस्पताल के डा.जस्सावाला ने लिखा कि ‘यह चमत्कार से कम नहीं है।’
बाद में प्रो. सिंह खुद प्राकृतिक चिकित्सक यानी मूत्र चिकित्सक बन गए।
उन्होंने कई लोगों के कैंसर ठीक किए।
वे कहते थे कि यदि कैंसर लीवर में न हो तो किसी अन्य अंग के कैंसर को मैं ठीक कर सकता हूं।
प्रो.सिंह पूरी आयु जिए।
दरअसल मूत्र चिकित्सा के बारे मंे अपने देश में बड़ी झिझक है।
मूत्र चिकित्सा अपनाने वाले मोरार देसाई का कुछ लोग इसी आधार मजाक भी उड़ाते थे।जब देसाई प्रधान मंत्री थे  तो उनके कुछ राजनीतिक विरोधियों व मीडिया के एक हिस्से के पास उनकी आलोचना का यह सबसे बड़ा हथियार होता था।पर वे उसकी परवाह नहीं करते थे।  
जापान के चिकित्सक हाशीबारा ने देसाई को  1991 में लिखा था कि जापान में 20 लाख लोग इस मूत्र चिकित्सा को अपना रहे हैं।
उन्हीं दिनों ताइवान की ऐसी ही  खबर अखबार में छपी थी।

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