रविवार, 13 मई 2018

   बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने ‘हिन्दुस्तान’ के आशीष कुमार मिश्र से बातचीत में कहा है कि ‘मैंने बीएड की पढ़ाई को दुरुस्त करने का रिस्क भरा निर्णय किया है।’
 मेरा मानना है कि महामहिम ने सही जगह से शुरूआत की है।
इस काम में किसी भले आदमी के लिए कोई रिस्क नहीं है।गेन ही गेन है।
यदि नियम-कानून तोड़कों के खिलाफ बिना किसी भेदभाव के कार्रवाई होती है तो उस काम में आम जनता से  मदद मिलती है।उनकी दुआएं मिलती हैं।बिना भेदभाव के कार्रवाई करने की अपनी मंशा राज्यपाल प्रकट कर भी चुके हैं।
जिसके साथ आम लोग होंगे,उसे किसी बात की चिंता नहीं करनी चाहिए।यह एक ऐतिहासिक काम है जो लगता है कि मौजूदा राज्यपाल के लिए ही रुका पड़ा था।
दरअसल आज  बिहार की सबसे बड़ी समस्या यह है कि योग्य शिक्षकों की भारी कमी हो गयी है।बीएड में दाखिला ईमानदारी से हो और उसमें पढ़ाई भी ठीक-ठाक  हो जाए तो योग्य शिक्षक मिलने लग जाएंगे।
 यदि योग्य शिक्षक मिल जाएंगे और साथ ही सरकार शालाओं को  बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया करा दे तो शैक्षणिक स्थिति में भारी सुधार होने लगेगा।कालेजों -विश्व विद्यालयों में पढ़ने में रूचि रखने वाले छात्र अधिक पहुंचने लगेंगे।
  अभी तो हर स्तर पर शिक्षा का भगवान ही मालिक है।
वैसे तो यह हाल पूरे देश का है,पर बिहार की हालत अधिक खराब है।
नतीजतन ऐसे डिग्रीधारियों की संख्या अत्यंत कम होती जा रही है जिन्हें कोई किसी काम में लगा सके।
यह अकारण नहीं है कि इंफोसिस के सह संस्थापक  और मानद अध्यक्ष एन.आर. नाराण मूत्र्ति ने  कहा  कि ‘हमारे 85 प्रतिशत युवा नौकरी के लायक नहीं।उन्होंने यह भी कहा कि देश में बेरोजगारी भी तभी कम होगी जब लोग बिजनेस को प्राथमिकता देंगे।’
  इस विषम स्थिति के लिए वे लोग अधिक जिम्मेदार हैं जिनकी चर्चा राज्यपाल ने पिछले दिनों एएन काॅलेज के मंच से की थी।क्या कारण है कि बिहार के ही नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं में चोरी नहीं होती है कि अन्य जगहों में कोई भी परीक्षा बिना चोरी के संभव ही नहीं हो पाती ?अपवादों की बात और है।
  जिस राज्य में टाॅपर छात्र अवैध आग्नेयास्त्र लेकर चलते हैं,उस राज्य की शिक्षा-परीक्षा की दयनीय स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।


    

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