‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ पर मैं खुशवंत सिंह को याद कर रहा हूंं। पर, उन्हें ही क्यों ? इसलिए कि वे आपने पाठकों की भी स्वतंत्रता के प्रबल पक्षधर थे। जब वे ‘इलेस्ट्रेटेड वीकली आॅफ इंडिया के संपादक थे तो उन्होंने अपने पाठकों की उन चिट्ठियों को भी छापा जिनमें उन्हें खुशामद सिंह, संजय गांधी के चमचा और न जाने क्या -क्या लिखा रहता था।
2005 में खुशवंत सिंह ने ‘आउटलुक’ को दिए गए इंटरव्यू में कहा भी था कि ‘ संजय गांधी के कहने पर मैं दुबारा संपादक बना था।’ सरदार जी 1969 से 1977 तक इलेस्ट्रेटेड विकली आॅफ इंडिया के संपादक थे। बाद में वे ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के संपादक बने।
इंदिरा गांधी के एक बार फिर 1980 में सत्ता में आ जाने के बाद संजय गांधी ने खुशवंत सिंह को कुछ आॅफर दिए। खुशवंत सिंह के अनुसार, संजय ने कहा ‘आप ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त या दुनिया में कहीं के राजदूत बनना चाहते हों या फिर राज्यसभा के सदस्य और हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक ।’ खुशवंत जी ने कहा कि मुझे बाद वाला प्रस्ताव बेहतर लगा।
खुशवंत ने कहा कि एक दो बार प्रधान मंत्री (इंदिरा गांधी) के दफ्तर से संदेश आया कि मैं ऐसा करूं, या ऐसा न करूं, लेकिन मैंने उसकी परवाह नहीं की।
इंदिरा जी के बारे में उन्होंने लिखा कि इंदिरा मुझे पसंद करने लगी थीं। क्योंकि मैं संजय का समर्थन कर रहा था। दरअसल संजय पर गलत आरोप लगा कर आक्रमण किए जा रहे थे। मैं सभी आरोपों की तह में गया, उन्हें गलत पाया।
यानी खुशवंत सिंह अपनी शर्तों पर काम करते थे। अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। पर अनेक लोग यह मानते हैं कि वे एक अत्यंत योग्य लेखक व पत्रकार थे। हालांकि उन्हें पत्रकार रहना अधिक पसंद था। वे उन कुछ लोगों के कथन से असहमत थे कि ‘पत्रकारिता साहित्य की हरामी औलाद है।’ वे कहते थे कि आज मेरी जो प्रसिद्धि है, वह पत्रकारिता के कारण है।
यूनेस्को की अपनी नौकरी छोड़कर लेखक पत्रकार के अनजाने से पेशे में खुशवंत सिंह आ गए थे। पर वीकली के संपादक के रूप में उन्होंने कमाल किया था।
इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनीं तो न्यूयार्क टाइम्स ने उन पर लिखने के लिए कहा था। सरदार जी ने लिखा कि इंदिरा गांधी सरकार में एक क्लर्क का काम करने लायक भी नहीं हैं क्योंकि वह मैट्रिक पास भी नहीं हैं।
सम्पादकों के बारे में खुशवंत ने कहा था कि ‘संपादक जो सबसे बड़ी गलती करते हैं, वह यह कि वे अपना उत्तराधिकारी तैयार नहीं करते।’
2005 में खुशवंत सिंह ने ‘आउटलुक’ को दिए गए इंटरव्यू में कहा भी था कि ‘ संजय गांधी के कहने पर मैं दुबारा संपादक बना था।’ सरदार जी 1969 से 1977 तक इलेस्ट्रेटेड विकली आॅफ इंडिया के संपादक थे। बाद में वे ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के संपादक बने।
इंदिरा गांधी के एक बार फिर 1980 में सत्ता में आ जाने के बाद संजय गांधी ने खुशवंत सिंह को कुछ आॅफर दिए। खुशवंत सिंह के अनुसार, संजय ने कहा ‘आप ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त या दुनिया में कहीं के राजदूत बनना चाहते हों या फिर राज्यसभा के सदस्य और हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक ।’ खुशवंत जी ने कहा कि मुझे बाद वाला प्रस्ताव बेहतर लगा।
खुशवंत ने कहा कि एक दो बार प्रधान मंत्री (इंदिरा गांधी) के दफ्तर से संदेश आया कि मैं ऐसा करूं, या ऐसा न करूं, लेकिन मैंने उसकी परवाह नहीं की।
इंदिरा जी के बारे में उन्होंने लिखा कि इंदिरा मुझे पसंद करने लगी थीं। क्योंकि मैं संजय का समर्थन कर रहा था। दरअसल संजय पर गलत आरोप लगा कर आक्रमण किए जा रहे थे। मैं सभी आरोपों की तह में गया, उन्हें गलत पाया।
यानी खुशवंत सिंह अपनी शर्तों पर काम करते थे। अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। पर अनेक लोग यह मानते हैं कि वे एक अत्यंत योग्य लेखक व पत्रकार थे। हालांकि उन्हें पत्रकार रहना अधिक पसंद था। वे उन कुछ लोगों के कथन से असहमत थे कि ‘पत्रकारिता साहित्य की हरामी औलाद है।’ वे कहते थे कि आज मेरी जो प्रसिद्धि है, वह पत्रकारिता के कारण है।
यूनेस्को की अपनी नौकरी छोड़कर लेखक पत्रकार के अनजाने से पेशे में खुशवंत सिंह आ गए थे। पर वीकली के संपादक के रूप में उन्होंने कमाल किया था।
इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनीं तो न्यूयार्क टाइम्स ने उन पर लिखने के लिए कहा था। सरदार जी ने लिखा कि इंदिरा गांधी सरकार में एक क्लर्क का काम करने लायक भी नहीं हैं क्योंकि वह मैट्रिक पास भी नहीं हैं।
सम्पादकों के बारे में खुशवंत ने कहा था कि ‘संपादक जो सबसे बड़ी गलती करते हैं, वह यह कि वे अपना उत्तराधिकारी तैयार नहीं करते।’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें