2004 में ‘हिन्दुस्तान’ में छपा मस्तराम कपूर का एक लेख मैंने अभी -अभी पढ़ा है।
मार्मिक लेख तो उर्मिलेश झा पर है,पर उसमें नई दिल्ली के निर्माणाधीन लोहिया भवन की चर्चा है।
डा.राम मनोहर लोहिया के निजी सचिव रहे उर्मिलेश झा उस भवन के निर्माण की देखरेख कर रहे थे।
दिवंगत कपूर के अनुसार उर्मिलेश झा की इच्छा थी कि जल्द से जल्द वह भवन तैयार हो जाए जो नेलशन मंडेला रोड पर बन रहा था।उस भवन में संदर्भ ग्रंथालय स्थापित होना था ।उसके लिए डा.हरिदेव शर्मा 60 हजार पुस्तकों का अपना निजी संग्रह दे गए थे।
मस्तराम जी ने जिस भवन और संदर्भ ग्रंथालय की चर्चा की है ,उसके बारे में बाद में कभी कहीं न सुना, न पढ़ा।
शायद दिल्ली में रह रहे लोहियावादियों -समाजवादियों को इस बारे में जानकारी हो !
याद रहे कि उर्मिलेश झा बिहार के सहरसा जिले के बनगांव के रहने वाले थे।
स्वतंत्रता सेनानी थे।
खुद के लिए उन्होंने कोई दौलत नहीं जोड़ी।
जब उनका निधन हुआ तो श्मशान घाट पर सिर्फ दो समाजवादी पहुंच सके थे ! चलिए दो तो थे ! !
मार्मिक लेख तो उर्मिलेश झा पर है,पर उसमें नई दिल्ली के निर्माणाधीन लोहिया भवन की चर्चा है।
डा.राम मनोहर लोहिया के निजी सचिव रहे उर्मिलेश झा उस भवन के निर्माण की देखरेख कर रहे थे।
दिवंगत कपूर के अनुसार उर्मिलेश झा की इच्छा थी कि जल्द से जल्द वह भवन तैयार हो जाए जो नेलशन मंडेला रोड पर बन रहा था।उस भवन में संदर्भ ग्रंथालय स्थापित होना था ।उसके लिए डा.हरिदेव शर्मा 60 हजार पुस्तकों का अपना निजी संग्रह दे गए थे।
मस्तराम जी ने जिस भवन और संदर्भ ग्रंथालय की चर्चा की है ,उसके बारे में बाद में कभी कहीं न सुना, न पढ़ा।
शायद दिल्ली में रह रहे लोहियावादियों -समाजवादियों को इस बारे में जानकारी हो !
याद रहे कि उर्मिलेश झा बिहार के सहरसा जिले के बनगांव के रहने वाले थे।
स्वतंत्रता सेनानी थे।
खुद के लिए उन्होंने कोई दौलत नहीं जोड़ी।
जब उनका निधन हुआ तो श्मशान घाट पर सिर्फ दो समाजवादी पहुंच सके थे ! चलिए दो तो थे ! !
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