मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

--15 साल पुराने वाहनों को कड़ाई से सड़कों से हटाने की सख्त जरूरत--



सुप्रीम कोर्ट ने पिछले ही साल यह निदेश जारी किया था कि 
15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों और दस साल पुराने डीजल 
वाहनों को सड़कों से हटा दिया जाए।
 बढ़ते प्रदूषण की पृष्ठभूमि में ऐसा आदेश दिया था।  अब जब पटना देश के उन तीन चार नगरों में शामिल हो चुका है जहां सर्वाधिक प्रदूषण है तो इस आदेश के पालन की सख्त जरूरत है।
  पटना हाईकोर्ट भी प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के खिलाफ समय -समय पर सख्त टिप्पणियां करता रहा है।बिहार सरकार और राज्य प्रदूषण बोर्ड ने भी इसकी जरूरत बताई है।वैकल्पिक ऊर्जा सीएनजी की पटना में उपलब्धता की व्यवस्था की जा रही है।
  पर  राज्य सरकार को इस समस्या को लेकर और भी गंभीर होने की जरूरत है।
प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों यहां तक कि मोटे मोटे काले धुण्ं छोड़ने वाले वाहनों के खिलाफ भी कार्रवाई में यहां भारी ढिलाई हो रही है।यह चिंताजनक स्थिति है।
  जहां लोगों की जान पर आ रही हो,वहां तो राज्य सरकार को समस्या के अनुपात में गंभीर होना ही पड़ेगा।
 वैसे पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने का काम किसी सरकार के लिए आसान नहीं होता।
पर जब प्रदूषण से लोगों की आयु कम होने लगे और तरह तरह की बीमारियां बढ़ने लगें तब तो सरकार को तो जगना पड़ेगा।
भले कुछ लोग नाखुश होंगे।पर प्रदूषण के कारण आम लोगों की सेहत के बिगड़ने की रफ्तार कम हो जाएगी।
स्वास्थ्य सेवा पर भी दबाव घटेगा।
 प्रदूषण के अन्य अनेक कारण हैं।
पर जिस कारण को शासन अधिक आसानी से दूर कर सकता है,वह यह है कि पुराने वाहनों को तुरंत हटा दिया जाए।
दिल्ली में इस दिशा में ठोस काम हुए हैं।
 हां,पुराने वाहनों से सरकारी तंत्र के एक हिस्से की  अच्छी -खासी ऊपरी आय हो जाती है।क्या उस पर रोक लगाना 
राज्य सरकार के लिए बहुत मुश्किल काम है ? होना तो नहीं चाहिए।
    --विश्वसनीय अस्पताल की ऐसी कमी !--
देश के वित्त मंत्री अरूण जेटली ने अपने पैर के ट्यूमर का आपरेशन विदेश में कराया।सफल आपरेशन के लिए उन्हें बधाई !
 जेटली जैसे मेधावी नेता की लंबी आयु की कामना है।
पर, इसके साथ एक सवाल भी है।
हमारे देश में आज भी एक ऐसा विश्वसनीय अस्पताल क्यों नहीं है जहां कोई प्रधान मंत्री या केंद्रीय  मंत्री अपने पैर के ट्यूमर का इलाज करवा सके ? 
 इस मामले में जेटली अकेले नहीं हैं।
सोनिया गांधी का इलाज भी विदेश में होता है।
 नेता गण तो  विदेश में अपना इलाज करवा सकते हैं।
पर सामान्य लोग कहां जाएं ?
इस देश के अधिकतर अस्पतालों की विश्वसनीयता घटती जा रही है।
सबसे बड़ी समस्या मेडिकल की गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई की है।
क्यों नहीं सरकार देश के निजी व सरकारी मेडिकल काॅलेजों में हो रही पढ़ाई की गुणवत्ता की जांच के लिए अलग से उड़न दस्तों का गठन करती ?
क्या जब चीजें पूरी तरह बिगड़ जाएंगी,तभी  कार्रवाई होगी ?
अपवादों को छोड़ कर मेडिकल शिक्षा के बारे में अपुष्ट सूत्रों से जो सूचनाएं मिल रही हैं,वे काफी चिंताजनक हैं।
--चिट फंड घोटाला और मुकुल राय--
जिस तरह की प्रारंभिक पूछताछ के लिए  कोलकाता के पुलिस कमिश्नर तैयार ही नहीं हो रहे थे,उस तरह की पूछताछ मकुल राय की पहले ही हो चुकी है।
तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए घोटाले के आरोपी मुकुल राय यदि समझ रहे हों कि ऐसा करने से वे बच जाएंगे तो शायद ही यह संभव हो सके।
 उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा का उदाहरण सामने है।
नेशनल रूरल हेल्थ मिशन घोटाले के इस आरोपी ने खुद को बचाने के लिए दल भी बदले थे।
पर उनकी करोड़ों की संपत्ति जब्त होने से नहीं बच सकी।
दरअसल सी.बी.आई. जिस केस की जांच अदालत के आदेश से और उसकी निगरानी में कर रही होती है,उसमें इधर -उधर करने की उसके लिए गुंजाइश बहुत ही कम होती है।
 वैसे तो वह सरकारी तोता खुद को कई बार साबित कर चुकी है।जो गड़बड़ी सी.बी.आई. ने ललित नारायण मिश्र हत्याकांड में की थी,वैसा ही गड़बड ़झाला उसने बाॅबी हत्याकांड में किया।
पर पटना हाईकोर्ट की सतत निगरानी के कारण चारा घोटाले में सी.बी.आई.आरोपितों को नहीं बचा सकी।जबकि तत्कालीन प्रधान मंत्री की ओर से भी उस पर भारी दबाव था।
   -- प्लांटेड खबरों से सावधान !--
2012 में एक अखबार ने यह खबर दी थी कि तब के सेनाध्यक्ष वी.के.सिंह सैनिक क्रांति के जरिए राज सत्ता पर कब्जा करना चाहते थे।
अपनी खोजबीन के बाद हाल में नई दिल्ली से प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्रिका ने लिखा है कि वह खबर बिलकुल गलत थी जो तब की केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों के दिमाग की उपज थी।
हालांकि तब के रक्षा मंत्री ए.के.एंटोनी ने भी तब सैनिक क्रांति की ऐसी किसी आशंका को खारिज किया था।
 अब सवाल है कि  बिना सिर पैर की ऐसी खबरों पर विश्वास करके  कुछ नामी गिरामी पत्रकार भी उसे क्यों छाप देते हैं ?
इसी तरह की एक खबर अस्सी के दशक में प्लांट की गयी थी।वह खबर वी.पी.सिंह के पुत्र अजेय सिंह के सेंट किट्स के बैंक में खाते से संबंधित थी।
 वी.पी.सिंह को बदनाम करने के लिए कुछ निहित स्वार्थी नेताओं ने ही अजेय सिंह के नाम पर खुद खाता खोलवा कर उसमें पैसा डाल दिया था।
ऐसी खबरें लिखने वाले पत्रकारों की बाद में काफी बदनामी हुई थी।हालांकि उनमें से एक पत्रकार लोक सभा में भी गया।
इस तरह के कई अन्य उदाहरण भी समय -समय पर आते रहते हैं।मुख्य धारा  मीडिया के लिए यह अच्छा है कि इस देश के  जिम्मेवार पत्रकार ऐसी खबरों से दूर ही रहते हैं।
   --भूली बिसरी याद--
सन 1989 का लोक सभा चुनाव !
तीस साल पहले की बात है।यह जानना  दिलचस्प होगा कि तब  लोक सभा चुनाव के समय  अखिल भारतीय स्तर पर कांग्रेस का चुनाव अभियान कैसे चल रहा था। 
 उन दिनों राजीव गांधी प्रधान मंत्री थे।
‘बैकरूम ब्वायज’ नाम से एक छोटा समूह परदे के पीछे से तब सक्रिय था।
उस समूह के  अधिकतर ‘ब्वाय’ राजीव गांधी के दोस्त व सहपाठी थे।
उन लोगों ने प्रचार व आंकड़े जुटाने का काम संभाला था।
दून स्कूल में सहपाठी रहे विश्वजीत पृथ्वीजीत सिंह केंद्रीय चुनाव कार्यालय में समन्वयकारी की भूमिका में थे।वे राज्यों को प्रचार सामग्री भेजने  का बंदोबस्त कर रहे थे।
राजीव गांधी के अन्य स्कूली दोस्तांे में रोमी चोपड़ा और एक विज्ञापन एजेंसी के प्रबंध निदेशक अरूण नंदा भी इस काम में लगे थे।
उन पर यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वे चुनाव प्रचार का तेवर तीखा बनाएं।
हाल में भारतीय विदेश सेवा से इस्तीफा देकर अभियान से   जुड़े मणि शंकर अय्यर राजीव गांधी के चुनाव दौरों के कार्यक्रम तय कर रहे थे।
राज्य सभा सदस्य एस.एस.अहलूवालिया पार्टी मुख्यालय नियंत्रण कक्ष के प्रभारी थे जो राज्य इकाइयों से संपर्क रख रहे थे।
कांग्रेस मुख्यालय में 30 हाॅटलाइनें लगा दी गयी थीं।
सीताराम केसरी संसाधन वितरण का काम कर रहे थे।
सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आर.के.धवन और सतीश शर्मा को सौंपी गई थी।
उन्हें विपक्षी खेमे के इक्के -दुक्के नेताओं को फुसलाने का काम मिला था।आनंद शर्मा प्रवक्ता का काम देख रहे थे।
      --और अंत में-
डा.प्रवीण तोगडि़या ने ‘हिन्दुस्तान निर्माण दल’ का गठन किया है।
उन्होंने घोषणा की है कि उनकी यह पार्टी गुजरात और उत्तर प्रदेश की सारी लोक सभा सीटों से  उम्मीदवार खड़ा करेगी।
साथ ही, देश के अधिकतर चुनाव क्षेत्रों में उनके उम्मीदवार होंगे।
 डा.तोगडि़या नरेंद्र मोदी से खार खाए हुए हैं।इसी तरह कभी बलराज मधोक, अटल बिहारी वाजपेयी से खार खाए रहते  थे।
देखना है कि बलराज मधोक के इस नए ‘अवतार’ के साथ मतदाता कैसा सलूक करते हैं।
@ मेरा यह काॅलम ‘कानोंकान’ 8 फरवरी, 2019 के प्रभात खबर-बिहार-में प्रकाशित@









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